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Tag: रागिनी सिंह परिहार

आपको इश्क हो गया है …
कविता

आपको इश्क हो गया है …

रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** जब किसी के पास अच्छा लगने लगे जब किसी का साथ अच्छा लगने लगे जब किसी की बाते अच्छी लगने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी की खामोशी खलने लगे जब किसी के अल्फाज सताने लगे जब नजर की नजर से बात होने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी के आने से फर्क पड़ने लगे जब किसी के जाने से डर लगने लगे जब किसी के ठहरने का इंतजार होने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी के पास आने से हलचल होने लगे जब किसी के छूने से जज्बात मचलने लगे जब किसी के होंठों से शबाब झलकने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी की बातें हंसाने लगे जब किसी की यादें रुलाने लगे जब किसी का ख्वाब आने लगे तो समझ लेना आपकों इश्क हो गया। जब अपने पराए लगने लगे जब पराए अपने लगने लगे जब मां-बाप की बातें चुभने लगे तो समझ ले...
स्वातंत्र्य राष्ट्र
कविता

स्वातंत्र्य राष्ट्र

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** जाने कितने वीरों ने अपनी जान गवाई होगी, तब जाकर के भारत ने आजादी पाई होगी भारत की माटी का शत-शत वंदन करते हैं, बलिवेदी पर मिटने वालो का दिल से अभिनंदन करते, हैं, कली कली खिल रही यहां पर रहे फूल मुस्कुरा, जन गण मन से गूंज रहा है सारा हिंदुस्ता वंदेमातरम भारत माता के गीतों को हम गाते हैं, भारत भू की शुचिता का हर पल गुणगान सुनाते हैं हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई रहते हैं यहां प्रेम से, आजाद हो या आरती गाते हैं सब प्रेम से देवभूमि यह स्वर्ग से प्यारी वीरों की परिपाटी हैं, जहां हुए बलिदान लाडले वीरों की यह माटी हैं देश के खुशियों के खातिर वीरों ने जान गवाई हैं, रह सके सब मिलजुल कर इससे प्रेरणा पाई हैं परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह ...
नारी की वेदना… नदी से
कविता

नारी की वेदना… नदी से

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** सरिता सी सर-सर बहती हो, जाने कितनी वेदना सहती हो, जब सागर से जा मिलती हो। तब नारी की उपमा बनती हो।। सुख-दुःख भी तुझमे सारा है, जीवन की तु परिभाषा है, हर नारी की तुम आशा हो। सुख-दुःख जीवन का साया है।। नारी ममता की धारा है, तीनो पक्षो को लेकर जब चलती है, सात पुस्तो का नाम रोशन करती है। हे, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी, कुलंकषा, अपगा तुमसे मेरी ये विनती है, जीवन की धार नदी करदो, सागर से जाकर मिल जाऊं। साहिल में जाकर लग जाऊं।। ये झील सी आँखों में लेकर पीड़ा, मीरा की वेदना बन जाऊं, गिरधर गोपाला मैं गाऊ। नदियाँ हूँ सागर से मिल जाऊं।। तेरे प्यार के रंग में रंग जाऊं।।। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) लिखती हूँ पाती नैनन से, आ जाओ अब मेरे मोहन। बहुत बर्ष बीत गए हैं अब, याद बहुत सताती हैं। दो दिन तक कह कर गये थे तुम, अब तक सावरे तुम नही आये। ये प्रीत की पाती लिख लिख कर, नैनन से अश्क बहाती हूँ मोहन। आ जाओ अब मेरे दिलवर, तेरी याद बहुत तडपाती है। जब चिड़िया करलव करती है, नदिया जब कल कल बहती है। तब याद तुम्हारी आती मोहन। आ जाओ अब मेरे मोहन, तेरी याद बहुत तडपाती है। मैं प्रीत की पाती लिख लिख कर, मनमीत तुम्हे भेजवाती हूँ। हृदय वेदना लिख कर, नाथ तुम्हे बुलाती हूँ। नैनन से नीर बरसता हैं, आ जाओ अब मेरे मोहन। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्ष...
फागुन बसंती
गीत

फागुन बसंती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** बसंती बहारो में, फागुन के महीन, अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... इतने सारे रंग पहले नहीं देखे, जब होली आयी तोरंगो के रंग देखे अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... ब्रज की गलियो मे, गोकुल नगारियो में, निधिवन में खेलेगे,मोहन संग होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... राधा संग खेलेगे, ललिता संग खेलेगे, गोपियां संग खेले, वृंदावन में होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... मीरा की निराशा मैं, पपिहे की तरह टेरु, बन-बन डोलूं मैं, हर सास तुझे टेरु अब आ जाओ मोहन फागुन के महीन में। बसंती बहारो में, फागुन के महीन में, अब लौटे भी आओ तुम होली के फुहारो में.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, प...
दिखावे की ये दूनियाँ
कविता

दिखावे की ये दूनियाँ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** दिखावे की ये दूनियाँ है, यहा शोहरत भी बिकती हैं। दिलों में दर्द आखो में, सदा खुशियाँ ही दिखती हैं।। मेरे ईस्वर मेरे मालिक, बता दें तु मुझें इतना। मोहब्बत की कहानी क्यूँ सदा गुमनाम रहती हैं।। दिखावे की मोहब्बत हो, तो फिर ज्यादा नहीं टिकती। किसी अपने मे अपनेपन की कोई बात नहीं दिखती।। करे कोई लाख कोशिश पर तुम्हे बतलाती हू यारो। मोहब्बत आज भी बाजार में पैसो से नही बिकती।। कभी तुलसी कभी मीरा कभी रसखान लिखती हूँ। मैं राधा कृष्ण के ही प्रेम का गुनगान लिखतीं हूँ। मेरे मोहन तेरे बंशी के दीवाने तो सभी है। कलम से प्रेम की पाती का हर पर गान लिखती हूँ।। . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी...
तुझे प्यार करती हूँ
कविता

तुझे प्यार करती हूँ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** नतमस्तक होकर प्रणाम करती हूँ, अब आ जाओ मनमोहन तुम्हे याद करती हूँ। बड़ी आस लगी है तुमसे, ये आरजू है मेरी, अब आ जाओ घनश्याम तुम्हे प्यार करती हूँ। दिल की जो बाते मेरी सुन लोगे कनाहिया, मैं बन जाऊँगी मीरा, तुम बन जाओ कबीरा। अब आ जाओ मेरे कबिरा गिरधर गोपाला, हरिदास जी आये थे, कीर्तन सुनाने, मैं "रागिनी" तुम्हारी, तुम मोहन हमारे। अब आ जाओ गिरधर, अब आ जाओ गोपाला। घनानंद की सुजान मैं, सूर का भ्रमर तुम, अब आ जाओ मीरा के गिरधर गोपाला। नतमस्तक होकर तुमको प्रणाम करती हूँ, अब आ जाओ मनमोहन, तुझे "रागिनी" पुकारे। राग नहीं पास मेरे अनुराग तम्हें बुलाये, अब आ जाओ मनमोहन हैं,आरजू तुमसे। नतमस्तक होकर तुमको प्रणाम करती हूँ। अब आ जाओ घनश्याम तुझे प्यार करती हूँ .... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिं...
जीवन का तत्व
कविता

जीवन का तत्व

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** तेरा मेरा करते करते एक दिन चले जाना है, जो भी कमाया यही रह जाना है। करलो कुछ अच्छे कर्म, साथ तेरे यही जाना है। रोने से तो आशू भी पराये हो जाते हैं, लेकिन..... मुस्कुराने से पराये भी अपने हो जाते हैं। मुझें वो रिश्ते प्रसंद हैं, जिसमे मैं नही, हम है। इंसानियत दिल से होती हैं, हैसियत नही। ऊपरवाला कर्म देखता है, वसियल नही... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविता...
जीवन का यथार्थ
कविता

जीवन का यथार्थ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं, तेरी ही देहरीयो में हम अब तो धरना धरे है। कल वो आये थे मिलने को हमसे, हमने कह दिया है, उनसे हम तो रस में है, डूबे हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। बादलों की ओट से रोशनी खोजा है हमने, मन की मंदिर में बसी है, पंखुडी की एक कली। छोटी सी नन्ही सी हैं वो देखना पडता है उसको। हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। ताड़े बैठे है, जी भौरा, कब खिलेगी कलियाँ ये, नन्ही सी कलियों को हमनें पल्को में छिपा लिया है। हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। तेरी ही देहरीयो में हम अब तो धरना धरे हैं।। . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, ...
कृष्ण काव्य
कविता

कृष्ण काव्य

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं कब कहती हूँ कि, तुम प्रकट हो जाओ, लेकिन तुमसे, आरजू बहुत हैं। मोहन मुझे अपने नजर में उठा कर रखना, अपनो के नजर में गिले शिकवे बहुत हैं। मैं रोज मीरा बनना चाहती हूँ, मगर जहर के प्याले में तुम नजर नहीं आते।। मेरा दिल दिनकर की रस्मिरथि जैसा, जितना रूह को हवा दो, उतना मझल जाय। मेरी मोहब्बत को हरिदास की गीत समझो, जितना सुनो बस उतना तो आ जाओ। मैं सूर, रसखान तो लिख नही सकती, मगर आंखो के पल्को के आश्को से तो मोहब्बत बया करती हूँ। हम तो शिकायत करते हैं, कि मोहब्बत मिला नही , हे मोहन.... तेरी मोहब्बत लिखने बैठी तो अँगुलियाँ कापती हैं। तुने राधा को चाहा, मीरा ने तुझे चाहा, और तुम रुक्मिणी के हो गये। मैं कब कहती हूँ कि प्रकट हो जाओ, लेकिन तुमसे आरजू बहुत है.... राधे राधे सिर्फ मोहन.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पि...
मैं तेरे दिल की गुड़िया
कविता

मैं तेरे दिल की गुड़िया

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं तेरे दिल की गुड़िया हूँ, जिसे बाबा ने पाला हैं। अगर माँ की गोदी है, तो बाबा ने दुलारा है। मुझे है प्यार दोनो से, मगर ये भी हकीकत है। मैं चिड़िया हूँ आंगन की, पराये घर जाना है। मैं जब माँ बनती हूँ, तो बेटी की याद आती हैं। जब मैं बेटी बनती हूँ , माँ की याद आती हैं। मैं दोनो की ममता हूँ, मुझे दोनो ही प्यारी है। इधर माँ भी प्यारी है , उधर बेटी भी प्यारी है। मुझें दोनो की हालत एक सी मालुम पडती हैं। इधर माता की ममता है, उधर बेटी दुलारी हैं। मुझे हर बक्त ही नैहर की वो दिन याद आते हैं। कभी आंगन में खेली थी, कभी शाला में पढ़ती थी। इधर ममता की पीड़ा है, उधर बेटी की चिंता है। मैं तेरे दिल की गुड़िया हूँ, जिसे बाबा ने पाला है ..... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा :...
वो याद आते हैं
कविता

वो याद आते हैं

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं अपने दिल की धड़कन में उसी का नाम लिखती हूँ उसी का नाम लिख लिख कर उसी को याद करती हूँ। उसे क्या फर्क पड़ता है मेरे होने न होने से, मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने में। मेरे ही साथ रहने का जो वादा कल किये थे तुम, मुझे वो याद है अब भी.... सदैव तुम दिल में रहते हो। मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने मे.... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...