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Tag: रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”

शाला परिदृष्य
कविता

शाला परिदृष्य

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** निर्जीव पड़ी इस शाला में, फिर जीवन का संचार हुआ। बच्चों की कोलाहल से फिर, शाला प्रांगण गुलजार हुआ।। मैदान खेल के थे वही, वही मीठी गोली का बाजार हुआ। स्कूल में आकर पढ़ने का, फिर से सपना साकार हुआ।। एक अंतराल के बाद मिले, आपस में खूब प्यार हुआ। फिर शुरु हुई कट्टी बट्टी, फिर जमकर के तकरार हुआ।। अच्छे खासे हम पढ़ते थे, फिर कोरोना का संचार हुआ। स्कूल खुलते फिर बंद होते, एक बार नहीं कई बार हुआ।। मुँह पर थी पट्टी लेकिन, आंखों से ही प्रतिकार हुआ। सही गलत की थी पहचान, प्रभावित बच्चों का व्यवहार हुआ।। खुली टिफ़िन तो एक रोटी का, हिस्सा फिर से चार हुआ। छीना-झपटी पकड़म-पकड़ी, जो जीता वो सरदार हुआ।। थी मोबाइल पर पाबंदी, इस सूचना का प्रसार हुआ। ऑनलाइन की इस अवधि में, मोबाइल ही तारणहार हुआ।। कापी...
हमारी आज़ादी
कविता

हमारी आज़ादी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** २०० वर्षों तक यहाँ अंग्रेज करते रहें मन मानी हमने भी यह ठान लिया था हार न हमने मानी कुछ खोना पड़ता है जो तुम कुछ भी पाना चाहो वीर शहीदों की दास्ताँ तुम जो बताना चाहो सभी धर्म और रीति रिवाज सिर्फ यहीं मिलते हैं आजाद भारत में रह कर सबके चेहरे खिलते हैं अनेकता में एकता भारत की है विशेषता स्वाभिमान की रक्षा के लिए समस्त भारत एक था तीन रंगो से बना तिरंगा हमको यह सिखलाता हम जो हैं तो भारत माँ पर आँच न आने पाता केशरिया रंग सिखलाता साहस और बलिदान श्वेत रंग ने रखा हमेशा सच्चाई का मान हरा रंग संपन्न बनाये चक्र सदा गतिशील राष्ट्र बने ये श्रेष्ठ हमारा और रहे प्रगतिशील १५ अगस्त है हम सबका प्यारा राष्ट्रीय पर्व जिस पर है हम भारतियों को स्वयं से ज्यादा गर्व उन वीर शहीदों के सर पर आजादी...
मित्रता
कविता

मित्रता

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मित्रता करनी हो तो दोस्त सुदामा कृष्ण सा करना कसम ये खालो तुम आज कि संग है जीना और मरना किसी की हैसियत न आये दरमियां तेरे और मेरे जो आये बीच में दौलत किनारे उसको तुम करना यकीं तुम दोस्त की बातो पर हरदम इस कदर करना जो कह दे आकर खुदा तुमसे तो कहना माफ करना बचपन की है ये दौलत इसे संभाल कर रखना बहुत अनमोल है रिश्ते हमेशा तुम नज़र रखना दुनिया के सारे रिश्तों को तुम जांचना परखना इसे तुमने बनाया है हमेशा याद ये रखना ऐ मेरे दोस्त सुन इस दोस्ती को ऐसे निभाना मिसालों में रहे हम तुम और देखे सारा जमाना परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
कर्म में शर्म कैसी ?
कविता

कर्म में शर्म कैसी ?

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक छोटी सी चीटी भी, करती रहती कर्म यहाँ हाथी को भी मेहनत करने में, आती नहीं है शर्म यहाँ याचक भी जी लेता है, करते-करते कर्म यहाँ राजा को भी कभी न आई, राजपाट में शर्म यहाँ नन्ही चिडिया दानों के लिए, करती रहती कर्म यहाँ जंगल का राजा शिकार में, नहीं किया कभी शर्म यहाँ इस दुनिया मे भगवान ने, आकर किया कर्म यहाँ फिर इन्सान को आती है, क्यो करने में शर्म यहाँ सासें भी तब तक चलती है, हृदय करे जब कर्म यहां निर्जीव हो जायेगी काया, धडकनें करे जो शर्म यहाँ जीवन का है सार यही कि, करते रहो कर्म यहाँ मानवता से बढ़ कर दूजा, "सुकून" नहीं है कोई धर्म यहाँ स्वर्ग नरक का खेला कह कर, छलते रहते कर्म यहाँ यहीं किया है यहीं मिलेगा, जीवन का है यही मर्म यहाँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मु...
चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है
कविता

चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं तुम रानी दीदी बन जाना घराती और राजा भैया बनेंगे बराती ऐसे ही संग संग नाचते और गाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं लाल लाल चुनरी में गुड़िया है सजती पीली पीली पगड़ी गुड्डे को है जंचती मोतियों वाला चलो हार पहनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते है मंडप को मैंने तोरण से सजाया साथ साथ थोड़ा झालर भी लगाया नाच गाने के लिए डीजे लगवाते है गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते है देखो देखो जाकर बारात है आई बैंड बाजे के संग बजी है शहनाई द्वारचार के लिये चौक बनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं गाजर का हलुवा और बाम्बे मिठाई कही पर है गुपचुप, कही रसमलाई दोस्तों के संग चलो पार्टी मनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं मंडप में बैठी है गुम...
जिन्दगी से मुलाकात हो गई
कविता

जिन्दगी से मुलाकात हो गई

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मौतों के शहर में हम रहते थे जहाँ एक रोज जिन्दगी से मुलाकात हो गई हर एक सांसों की होती है गिनतीयाँ जहाँ पैदा हुए थे जिस पल शुरुआत हो गई सूरज की रोशनी से चकाचौंध थी आँखें जब देखने लगे तो फ़िर रात हो गई सारी उम्र बूँदों के लिये तरसते रहे हम आंखें जो बंद हुई तो बरसात हो गई देखकर हर तरफ बरबादियों का मंजर लगता है आज खफा कायनात हो गई इस दिल को मैंने लाख समझा रखा था पर सामने जो देखा तो वही बात हो गई पूछने चला था मैं पता "सुकून" का लोग कहने लगे कि तहकीकात हो गई परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
भजन

हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हे रघुकुल के दीपक श्री राम तुम्हें फिर आना होगा सतयुग वापस लाना होगा हे कौशल्या नंदन श्री राम इस धरती पर लोगों को अकाल मृत्यु से बचाना होगा तुम्हें फिर आना होगा हे जानकी वल्लभ श्री राम चल रही विनाश लीला में विराम लगाना होगा तुम्हें फिर आना होगा हे रघुनंदन हे श्री राम जीवन मृत्यु के इस खेल में जीवन को जीत दिलाना होगा तुम्हें फिर आना होगा हे भरताग्रज हे श्री राम डरे और सहमे लोगों में साहस भरना होगा इस डर को भगाना होगा तुम्हें फिर आना होगा हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम इस जीवन के अँधियारे में आशा के दीप जलाना होगा तुम्हें फिर आना होगा सतयुग वापस लाना होगा परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त...
और कुछ नहीं जिन्दगी
कविता

और कुछ नहीं जिन्दगी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छायी हर तरफ हाहाकारी समय अब पड़ रहा भारी बंद है काम धंधे सब कैसे हो बन्दोबस्त अब कैसे कट रही जिन्दगी बस कट रही जिन्दगी बस डर है बस खौफ है और कुछ नहीं जिन्दगी घर के अन्दर है बैचैनी बाहर है मौत का पहरा ऊपर वाला क्या सोंचे क्या पता इंसान तो इंसान ठहरा विपदा की इस घड़ी में कुछ लोग ऐसे हैं हर हाल में जिनको कमाने सिर्फ पैसे हैं किस बात का गुरुर इन्सान तू करता है यहीं सब छूट जाना है जो जमा तू करता है बस तेरी नेकी जायेगी बस तेरे ये कर्म जायेंगे यहाँ न कुछ लेकर आये थे न ही कुछ लेकर जायेंगे दो पल का "सुकून" किसी को देकर तू देख फिर बदले में ऊपर वाला तूझे क्या देता है तू देख परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।...
असली रंग
लघुकथा

असली रंग

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सोमेश जैसे ही ऑफिस से घर पहुँचा सीमा ने कहा चाय रेडी है पहले आप फ्रेश हो जाओ फिर बुलबुल को आज रंग गुलाल दिला लाना कब से यही रट लगाये बैठी है सोमेश ने कहा ठीक है बुलबुल से कहो रेडी होने मैं ले चलता हूं उसे। बुलबुल झट से तैयार हो कर आ गयी और बहुत खुश नजर आ रही थी। सोमेश बुलबुल के साथ मार्केट गये। वहाँ उसने बुलबुल की पसंद का सारा सामान खरीदा पर सोमेश ने एक बात नोटिस किया कि बुलबुल जो भी सामान लेती पापा एक और प्लीज कहकर सारा सामान का एक और सेट खरीद लिया और अलग-अलग कैरी बेग में रख लिया। लौटते वक्त पापा ने देखा कि आज बुलबुल बहुत खुश लग रही थी और उसे खुश देखकर पापा भी खुश थे। घर पहुँच कर सोमेश ने सीमा से कहा- पता है आज हमारी बुलबुल बहुत खुश है उसने सारा रंग गुलाल पिचकारी मास्क और भोपू के दो-दो सेट खरीदे हैं। इसी बीच ...
नारी तुम नारायणी
कविता

नारी तुम नारायणी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नारी तुम नारायणी हो हे दयामूर्ति हे आत्मशक्ति हे यशाकीर्ति तुम सदाचारिणी हो नारी तुम नारायणी हो तुम देती संबल फैलाकर आंचल पल पल हर पल तुम दुखहारिणी हो नारी तुम नारायणी हो ममता की मूरत भगवान सी सूरत गहना है अस्मत तुम ज्ञानदायनी हो नारी तुम नारायणी हो तुममें है वो साहस करते हैं आभास देवता भी अनायास तुम दुर्गनाशिनी हो नारी तुम नारायणी हो लेना है लड़कर चाहे हँस कर चाहे रो कर जिसकी तुम अधिकारिणी हो नारी तुम नारायणी हो परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
बसंत ऋतुराज है आया
कविता

बसंत ऋतुराज है आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कहीँ भौरो की गुंजन है कही कोयल की कूके है कही बौराये है जो आम कही महकी हुईं हर शाम कभी आलस्य ने घेरे है खालीपन कही छाया कही सूनी है दुपहरी कही अति धूप कहीं छाया कही कुछ छूटा सा लगता कही कुछ खोया सा लगता पहेली लाख सुलझा लौ मगर उलझा हुआ लगता चिड़ियों की मस्ती भी झलकती साफ ऐसी है सामने आईना रख दो झपटती गिद्ध जैसी है खेतों में खलिहानों में आबादी में वीरानों में इधर देखो उधर देखो बसंत ऋतुराज है आया सभी ऋतुओं में उत्तम है असर इसका कुछ ऐसा है चले जहाँ बात जब इसकी तो चलती सांस मद्धम है सुनहरी गेहूँ की बाली पलाश और टेसू की लाली मदमस्त कर डाली बसंती बयार निराली परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अप...
गणतन्त्र कहाँ है
कविता

गणतन्त्र कहाँ है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ऐ मेरे भारत बता तेरा वो गणतन्त्र कहाँ है आजादी भले मिली हो पर हम स्वतंत्र कहाँ है हर जगह दिखती यहाँ पर लाचारी और बेबसी झूठ का है बोलबाला सच में कोई दम नहीं इंसानियत के दाव पर हो रहा षडयंत्र यहाँ है ऐ मेरे भारत बता तेरा वो गणतन्त्र कहाँ है कहाँ गये वो कस्मे वादे हमने खायी थी कभी हाथ में लेकर तिरंगा गा रहे थे हम सभी सपनों सा सुंदर वो मेरा लोकतंत्र कहाँ है ऐ मेरे भारत बता तेरा वो गणतन्त्र कहाँ है संविधान की वो बाते पुस्तकों में रह गई जिसने भी आवाज उठाई वो वही पर दब गई सच्ची बातों को समझाये ऐसा वो मंत्र कहाँ है ऐ मेरे भारत बता तेरा वो गणतन्त्र कहाँ है कही देखो शिखर पर जा रही है बेटियाँ कही देखो बर्बरता की शिकार हो रही है बेटियाँ इस्पात के साँचे मे जो ढाले ऐसा वो सयंत्र कहाँ है ऐ मेरे भारत बता तेरा वो गणतन्त्र कहाँ है...
मकर सक्रांति
कविता

मकर सक्रांति

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सूर्य के उत्तरायण का पर्व जिस पर सब करते हैं गर्व जैसे आता मकर-संक्रांति जीवन में लाता है कान्ति गुड़ और चाशनी की खुशबू रिश्तों में मिठास हुबहू खलबट्टे मे कुटे तिल बिना कहे छू जाते दिल सुबह सुबह का वह पवित्र स्नान सूर्य को अर्ध्य देकर करना दान गरम गरम वो घी और खिचड़ी जैसे छप्पन भोग पर भारी पड़ी कहीं इठलाति कही बलखाती कही डालियों में उलझती नीले पीले हरे नारंगी लाल गुलाबी रंग बिरंगी उड़ती है चहुँ ओर पतंग इंद्रधनुषी है जिसके रंग चलो एक ऐसी पतंग बनाये जो आसमान की सैर कराये परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
नया साल
कविता

नया साल

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चलो फिर से एक नया साल आ गया उम्मीदें जगाने जैसे ख्वाब आ गया गुजरे हुए कल का जवाब आ गया ये साल कैसा होगा ये सवाल आ गया गये साल में जो नाकाम हुये थे उनके लिए उम्मीदों का सैलाब आ गया वक्त की मार से जो लहू-लुहान है उनके लिए जैसे ईलाज आ गया दो वक्त की रोटी जिनको नहीं नसीब जैसे पुराना वैसा नया साल आ गया रुपयों और पैसों का बिछौना हो जहाँ जैसा पुराना वैसा नया साल आ गया जिसका जैसा दिन था वैसा साल आ गया नया कुछ नहीं फिर भी नया साल आ गया लिखा है जो किस्मत में वो मिलेगा 'सुकून' नये साल का तो बस नाम आ गया चलो फिर से एक नया साल आ गया उम्मीदें जगाने जैसे ख्व़ाब आ गया परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी ...
अखण्ड ज्योति
कविता

अखण्ड ज्योति

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अमावस्या की रात में जब हजारों दिये जलते हैं तो अन्धेरा मालूम नहीं कहाँ खो जाता है व्यक्ति चाह कर भी अन्धेरे से दो चार नहीं हो पाता है उस अंधेरी रात में भी पूर्णमासी की झलक मिलती है दीया और बाती के जलने मे भी बर्फ की ठंडक मिलती हैं व्यक्ति चाहे तो.... जिन्दगी की अमावास की रात में दीवाली की जगमग ला सकता है निराशा की अँधेरी रात में आशा के दीप जला सकता है बस हमें.... जिन्दगी के इस दीये में इंसानियत की तेल और शराफत की बाती चाहिए फिर जिंदगी की लौ शायद ही कभी झिलमिलाये और जिन्दगी एक अखंड ज्योति बन जाए परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच ...
देखो वो चांद आया
कविता

देखो वो चांद आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देखो वो चांद आया करवा का चांद आया कही बदलो में छुपता कही डूबता निकलता वो देखो चांद आया करवा का चांद आया खेले छुपन छुपाई देते तूझे दहाई वो देखो चांद आया इठलाता चांद आया बलखाता चांद आया उसका गुरुर देखो उसको जरूर देखो कैसा सलोना दिखता वो देखो चांद आया करवा का चांद आया साजो श्रृंगार देखो रूपसी का हार देखो वो चांद सा है दिखता पर चांद को है तकता देखो वो चांद आया करवा का चांद आया सोलह श्रृंगार करके व्रत और उपवास करके निर्जल बिताये है दिन गिन गिनकर ये पल छिन तब जाकर कहीं वो आया वो देखो चांद आया करवा का चांद आया सखियों ये अर्ध्य देकर नैवैद्य से सजाकर कर लो यही विनती सौभाग्य की हो वृद्घि कर लो ये व्रत अब पूरी सब कामना हो पूरी देखो वो चांद आया करवा का चांद आया परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर द...
मै राष्ट्र भाषा हिन्दी
कविता

मै राष्ट्र भाषा हिन्दी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मै राष्ट्र भाषा हिन्दी आजाद भारत में जन्म लेकर बहुत प्रफुल्लित हुई इस गंगा जमुनी संस्कृति में घुटनों के बल चलकर बड़ी हुई धीरे-धीरे यौवन की दहलीज पर कदम रखने लगी फिर अन्य भाषाओ की बुरी नजर मुझ पर पड़ने लगी अंग्रेजी तो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन निकला उसने मेरी बहन संस्कृत को डरा धमकाकर उसे सलाखों के पीछे डालकर मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने लगा मै भाषाओं की भीड़ में पंजे के बल खड़े होकर अपने होने का अहसास कराती हूँ कहीँ आगे कर दी जाती हूँ कहीं पीछे धकेल दी जाती हूँ अब तो साल में सिर्फ एक दिन मान सम्मान मिलता है बाकी के दिनॉ में सिर्फ दोयम दर्जे का मान मिलता है आजादी के इतने वर्षों के बाद भी अपने आजाद अस्तित्व के लिये संघर्ष करती देखी जाती हूँ हिन्दी है तो हिंदोस्तां है यह सबक याद दिलाती हूँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सु...
जाओ खेलो बेटियों
कविता

जाओ खेलो बेटियों

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** स्तब्ध है यह मन मेरा कहीं प्राण भी अशक्त है खो न जाए इस जहाँ में मन में अन्तर्द्वन्द है जन्म से ही मन है शंकित धडकनें अब मंद है हाथ उसके रक्त रंजित फिर भी वह स्वच्छंद है कहा न जाए सुना न जाएं ऐसी उसकी दर्द गाथा शोर पर है शोर होता पर जहाँ निशब्द है इस जहाँ में “सुकून” कही भी ढूंढ दे ऐसी जगह जहाँ उसको छू न पाए हाथ जो उद्दंड है जाओ खेलो बेटियों तुम भी जहाँ में पारियां जान जाए मान जाए हो रही अब शिकस्त है परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
अंतिम निर्णय
लघुकथा

अंतिम निर्णय

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सपना के पापा की पहली बरसी थी मम्मी के कहने पर सपना वृध्दाश्रम में भोजन की व्यवस्था कराने पहुंची थी, प्रवेश करते समय सामने आफिस मे बैठे कबीर अंकल कीओर सपना की नजर पड़ी। सपना ने कहा अरे ! कबीर अंकल आप यहाँ? अंकल कहने लगे बिटिया अब तो यही अपना घर है बेटा मैं अब यहीं रहने लगा हूँ कहकर तेजी से उठकर चल दिए जैसे अपना दर्द छुपा रहे हो। सपना भी अपने काम में व्यस्त हो गयी। यहाँ की व्यस्तता के बीच सपना की नजरें लगातर कबीर अंकल पर थी जो लगातार सपना से छुपने की कोशिश में थे। वृध्दाश्रम के सभी सदस्यों के भोजन का कार्य अच्छे से सम्पन्न कराकर सपना समान गाड़ी में रखवाकर घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में उन्हें कबीर अंकल की बात याद आ गयी अब तो यही अपना घर है। सपना ने सोचना शुरू किया कि कबीर अंकल के घर पर दो बेटे और एक बेटी का हँसता खे...
अनमोल तोहफा
लघुकथा

अनमोल तोहफा

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ५ सितंबर यानि शिक्षक दिवस आज पूरा दिन स्कूल में बच्चों की शुभकामनाएं और ढेर सारी टाफीया उपहार गुल्दस्ते ग्रिटींग कार्ड। इसके अलावा शाला प्रबंधन की ओर से विषेश कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें उत्कृष्ट शिक्षा नवाचार के लिए सुषमा को विषेश पुरस्कार प्रदान किया गया। सुषमा जब घर लौटी तो उसके बैग बच्चों द्वारा दिये गये उपहार से भरे हुए थे और हाथ में शाला प्रबंधन की ओर से दिया गया स्मृति चिन्ह ।घर पहुँच कर सुषमा पूरी तरह थक कर चूर हो चुकी थी। पीछे से आवाज आई मैडम जी...मैडम जी... सुषमा निन्नी को देख कर अतीत में खो गयी। उसके लिए ये जगह नयी थी अभी अभी उसने शिक्षाकर्मी वर्ग एक के लिए पोस्टिंग कोंडागाँव में हुआ था । घर के सामने सड़क के उस पार झोंपड़ी नजर आती थी। स्कूल जाते समय रास्ते में निन्नी दिख जाया करती थी उसकी उम्र को...
बेटियाँ आती है
कविता

बेटियाँ आती है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने कोई इसे चाहे माने या ना माने जो खो गया बचपन उसे तलाशने जो छूट गया रिश्ता उसे निभाने स्नेह का बन्धन फिर से बांधने बेटियाँ आती है पीहर... देहरी पर फिर से दीपक जलाने रंगोली और अल्पना से आगंन सजाने वो रस्म और रिवाज निभाने बेटियाँ आती है पीहर... फिर से घर आगंन को महकाने भर-भरकर झोली ममता लुटाने फिर अल्हड़ सी वो राग सुनाने बेटियाँ आती है पीहर... माँ की गोद का सिरहाना बनाने पिता से अनदेखा प्यार जताने नोक झोंक में भाई से हार मनवाने बेटियाँ आती है पीहर... सखियों के संग फिर से बतियाने कुछ उनका सुनकर कुछ अपना सुनाने हो जाए मन हल्का इसी बहाने बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने कोई इसे चाहे माने या ना माने परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं य...
माँ की वीरता
कविता

माँ की वीरता

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बच्चे की एक चोट देख कर माँ का कलेजा मुंह को आये माँ की वीरता से ही कोई बेटा सीमा पर जाए जहाँ बच्चे को धूप से बचाने ओदनी बन जाती है माँ वहाँ तपते रेतीले टीलों पर करते रहते गश्तिया जवाँ बर्फीली घाटी में जब जब शीत लहर चलती है माँ की रजाई और दुशाले की वो गर्माहट कहाँ मिलती हैं स्कूल से आने में देरी वो पांच मिनट का होता है जाबांजो के माओ के जीवन में अनवरत प्रतीक्षा होता है उन बहनों की हम बात करे जिनका कोई भाई नही पर भाई होकर भी बहनों की राखी को नसीब कलाई नही छाती चौड़ी हो जाती है जब बेटा सेना में जाता है गर शहीद हो जाए तो फिर नाम अमर हो जाता है सेना के लाखो जवानों में भी किस्मत की ही चलती है वो शहीद हो जाता है जिसे भारत माता चुनती है तुम धन्य हो तुम महान हो तुम पर हमको भी नाज है तुम जैसों के बलबुते से ही भारत में ‘सुकू...
अस्तित्व
कविता

अस्तित्व

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बरसात की अंधेरी रातों में जब भी गूंजती खामोशियो को पानी की बूँदें तोडती है ऐसा लगता है जैसे रोशनी में शायद पानी अपना अस्तित्व खो देता डरती हूँ मैं भी खो न जाए कही अस्तित्व मेरा आधुनिकता के उस रोशनी में तोड़ न दे मेरी खामोशी को पाश्चात्य देशो का ये शोर और एक दिन मै भी अपने अस्तित्व को पाने के लिए रोशनी और शोर शराबे से दूर शांत एकांत अँधेरी रातों को तलाशते फिरूँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
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आलेख

धन्यवाद कोरोना

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आप सब सोंच रहे होंगे कि जहां एक ओर पूरी दुनिया इस कोरोना नमक महामारी से हड़कंप मची हुई है लोग कोरोना के नाम से डरे सहमे नज़र आ रहे हैं वहाँ इसे क्या सूझी जो कोरोना के लिए धन्यवाद ज्ञापन किया जा रहा है। हम सभी यह अच्छी तरह जानते एवं मानते हैं की हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हमने कोरोना के नकारात्मक पहलू को देखा, सुना और समझा पर इसके दूसरे पहलू पर यदि गौर फरमाएँ तो इसके कुछ फायदे हमें दिखते हैं। आइये देखते हैं कैसे :- प्रकृति का शुद्धि करण हुआ – पूर्ण लॉक डाउन के चलते जब सारे फैक्ट्री, कारखाने, मोटर गाड़ी वो सारी चीजें पूरी तरह बंद हो गई जिनसे हमारे वातावरण में प्रदूषण फैल रहा है और रिपोर्ट बताते हैं की ५० साल के इतिहास में इतनी स्वच्छ न ही नदियां रहीं और न ही इतनी प्रदूषण मुक्त हवाएँ जिसमे खुलकर सांस लिया जा सके। फिज...
हाँ मैं भी अब लिखने लगी
कविता

हाँ मैं भी अब लिखने लगी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मैं गुमसुम सी धीर गंभीर सी उन्मुक्त होकर खुलने लगी मुख्यधारा से अब जुडने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। कहीं डर और शंका मन में लिए कहीं हीन भावना से जकड़े हुए खुद को बेहतरीन कहने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। जिंदगी के कुछ पहलू थे अनछूए कुछ सवाल ऐसे थे अनसुलझे उन सवालों में ही हल ढूँढने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। दर्द ऐसा किसी से कहा ना गया कहीं चुप रह गई कहीं कराया गया अब हाल-ए-दिल अपना कहने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। जंजीरों ने पाँव जकड़ रखे थे हर कदम पर सवाल खड़े कर रखे थे अब कदम दर कदम मैं बढ़ने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। कभी दौर ऐसा भी आया था जहां खुद को मैंने अकेला पाया था अब हौसलों के कारवां बनाने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। बिना गलतियों के सज़ा पायी है जमानत मुझे रब ने दिलाई है अब इंसाफ के लिये लड़ने लगी हाँ म...