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Tag: रशीद अहमद शेख ‘रशीद’

रामचरित मानस जगती पर
कविता

रामचरित मानस जगती पर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** रामचरित मानस जगती पर, हर युग में सुखदाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। रघुकुल के आदर्श पुरुष के, कोटि-कोटि अनुयायी हैं। चाहे कितने भी रावण हों, हर युग में भूशायी हैं। श्रीराम का शैशव अद्भुत, अतुलनीय तरुणाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। जनकसुता भी राजमहल तज, साथ नाथ के वन आईं। रहीं सतत प्रतिकूल दशा में, कष्ट सहे पर मुस्काईं। सीता जी-सी गरिमा जग में , नहीं किसी ने पाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। रही उर्मिला राजमहल में, सहती रही विरह के पल। उधर लक्ष्मण निज भ्राता की सेवा मे रत थे अविरल। दुर्लभ इस धरती पर अब तो मिलना ऐसा भाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। श्रद्धावान सुखद सेवा में, नतमस्तक संलग्न रहे। दशा-दिशा भी भूल गए वे, सहज भाव में मग्न रहे। शबरी-केवट की श्र...
रावण
कविता

रावण

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जलता अन्दर-बाहर रावण! जीवित होता मरकर रावण! वह बुराइयों का प्रतीक है, करता जादू मन पर रावण! "व्यापक है मेरा अस्तित्व" जग से कहता हँस कर रावण! बौना हो अथवा नभचुम्बी कुछ पल मिटता जलकर रावण! छलता है सबको मायावी अपना रूप बदलकर रावण! अभिमानी है बलशाली भी जाता रहता घर-घर रावण! दस आनन थे मगर राम से हुआ पराजित लड़कर रावण! मारो, काटो, उसे जलाओ नष्ट नहीं होता पर रावण! रशीद' आप सच्चे बन जाओ भग जाएगा डरकर रावण! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा...
मृगतृष्णा
कविता

मृगतृष्णा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सागर की गहराई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! निर्धन-निर्बल है परिवार! कुटिया है आवासाधार! परिणय योग्य आत्मजा सहित, कुल सदस्य संख्या है चार! आँगन की शहनाई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! कानन में काटे सब वृक्ष! बना उपनगर व्यापे कक्ष! पर्यावरण हुआ आहत, मौन ही रहे पक्ष-विपक्ष! बस्ती में अमराई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! नभस्पर्शी बने भवन हैं! बढ़ती जाती और लगन है! नियमित भू से दूर हो रहे, लटकन जैसा अब जीवन है! सदन संग अँगनाई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! स्वार्थकेन्द्रित है अब मानव! अंतर में रहता है दानव! पर परिचय की बात करें क्या, आत्मबोध हो गया असंभव! अपनी ही परछाई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रश...
महात्मा गाँधी
कविता

महात्मा गाँधी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पावन पोरबंदर के परम प्रिय पुत्र गुजरात के गर्व और गौरव भारतभू के परिचायक भारतीय संस्कृति के गुणगायक भारतीय भाषाओँ के संरक्षक हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के अभिलाषी विश्वदृष्टा ऐतिहासिक युग-पुरुष मनसा वाचा कर्मणा सत्याग्रही अहिंसा के ध्वजवाहक प्रेम के पोषक-प्रचारक कुशल वक्ता लेखक संपादक विश्वबंधुत्व के पक्षधर साबरमती के 'बापू' गुरुदेव के शब्दानुसार 'महात्मा' नेताजी के मतानुसार 'राष्ट्रपिता' राजनीतिज्ञों में संत संतों में राजनीतिज्ञ रंगभेद नीति विरोधी महान मानवतावादी दलित-पीड़ित-शोषित के अभिभाषक स्वदेशी जागरण के प्रणेता सशक्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राष्ट्रीय आंदोलनों के सूत्रधार राष्ट्रीय एकता के संदेशवाहक "सादा जीवन उच्च विचार" के अनुकरणीय उदाहरण महादर्शवादी महानायक जिनका जन्म दिवस 'अहिंसा दिवस' और पुण्य तिथि 'शहीद दिवस' उन्हें शत-शत प्र...
विद्या का विस्तारक शिक्षक
कविता

विद्या का विस्तारक शिक्षक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** शिक्षा का उन्नायक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। रखता शब्दों का भण्डार करता उनके अर्थ अपार होता है व्याकरणाचार्य, उसमें भाषा पारावार। भावों का अनुवादक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। शिष्य जायसी अथवा सूर। करता है कठिनाई दूर। सहज-सरल उसकी प्रकृति, कभी नहीं होता वह क्रूर। प्रेरक मार्ग प्रदर्शक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। दयावान है अनुशासक भी निष्पादक है निर्णायक भी संपादक है निर्धारक भी, उद्घाटक है संचालक भी दुष्कर प्रश्न निवारक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। ज्ञान और अनुभव की खान उच्च बहुत उसका स्थान राष्ट्र-रीढ़ कहलाता वह, करे सतत् स्वदेश-गुणगान संस्कृति का परिचायक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र...
सत्यवादियों की बस्ती
कविता

सत्यवादियों की बस्ती

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। देते अपने तर्क अनोखे, सच को झूठ बताते हैं। शब्दों के होते जादूगर, कथनों से मोहित करते। अपनी निजी कुटिल कल्पना, मानव-अंतस में भरते। मायावी शैली से मन में, सबके धाक जमाते हैं। देते अपने तर्क अनोखे, सच को झूठ बताते हैं। पत्थर को हीरा कहते वे, पीतल को कहते सोना। खांसी को क्षय रोग मानते, ज्वर को कहते कोरोना। अपने संभाषण के द्वारा, शब्द बाण बरसातें हैं। सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। उनकी हाँ में हाँ कहते हैं, सीधे-सादे भोले जन। वे झूठी क़समें खाते हैं, जतलाते है अपनापन। चिकनी-चुपड़ी बातों से वे, सबके मन को भाते हैं। सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
पीहर
गीत

पीहर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** साजन के घर तन है पर मन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में है। प्यारी गुड़िया कैसे भूले सपने में भी मन को छू ले सखियों से झगड़े के कारण फुग्गे-से मुँह फूले-फूले सखियों संग झूलों का सावन पीहर में है छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। हरी-भरी तुलसी आँगन की न्यारी सुन्दरता उपवन की त्रुटि अगर कोई हो तो फिर स्नेहसिक्त झिड़की परिजन की मधुर-मधुर यादों का चन्दन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। सुनकर पापा जी की डांट मन होता था कभी उचाट होती थीं मनुहारें भी फिर थे बचपन में कितने ठाट पापा का स्नेहिल अनुशासन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। सर्वाधिक था माँ प्यार करती थी वह बहुत दुलार है असीम माँ का ऋण तो प्रकट करे कैसे आभार माँ के आँचल का सुख पावन पीहर में है। छूट गया दुलहन का बचपन पीहर में है। रोक-टोक भाई...
बहिष्कार
कविता

बहिष्कार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्य, अहिंसा और प्रेम का परिष्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टिकोण का बहिष्कार करना है सब को। जीवन शैली सरस सरल हो। सुधा सुलभ हो लुप्त गरल हो। नहीं विकल हो मानव कोई। स्नेह-शान्ति धारा अविरल हो। कुटिल तामसिकता का जग में तिरस्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। रोटी, कपड़ा और निकेतन। प्राप्त करें जगती पर जन-जन। न हों अभावों की बाधाएँ, सुख-सुविधा पूरित हों जीवन। छोड़ स्वार्थ सब परहित पर भी अब विचार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। निर्मित करने हैं विद्यालय। अधिक बढ़ाने हैं सेवालय। जहाँ विषमता की खाई है, वहाँ बनें उपकार हिमालय। मानव हितकारी शुभ उपक्रम बार-बार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। जन-जन का उत्थान ज़रूरी। जन हित के अभियान ज़रूरी। हो व्य...
अभिमान क्यों करूँ मैं
कविता

अभिमान क्यों करूँ मैं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तत्वों के संगठन पर अभिमान क्यों करूँ मै? माटी के तन-बदन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? थम जाएँ कब, कहाँ पर मुझको ख़बर नहीं है गिनती के कुछ श्वसन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? बिजली है, आंधियाँ हैं, तूफ़ान है, ख़िज़ा है हंसते हुए चमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? कल के महल-हवेली अब हो गए हैं खंडहर अपने किसी भवन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? आएगी जब क़यामत, हो जाएंगे फ़ना सब नश्वर धरा-गगन पर अभिमान क्यों करूँ मै? ओढ़े हुए कफ़न जब रहना है क़ब्र में तो अपने रहन-सहन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? मुरझाएगा कभी तो, उड़ जाएगा कहीं पर सुन्दर सुखद सुमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? टिकता नहीं है जो भी आता है इस जगत में ख़ुशियों के आगमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? जाना 'रशीद' जग से है ख़ाली हाथ आख़िर फिर माल और धन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? परिचय -  रशीद अहमद शेख ...
पिता का करें सम्मान
कविता

पिता का करें सम्मान

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नहीं है दूजा पिता समान। पिता का करें सभी सम्मान। पिता है जनक,पिता पालक। पिता ही होता है रक्षक। पिता गृहशाला का शिक्षक। पिता संयोजक-संचालक। सृष्टि में बहुत पिता का मान। पिता का करें सभी सम्मान। पिता सर्वदा है सुखदाई। पिता के मन में गहराई। पिता से डरती कठिनाई। पिता शंकर सम विषपाई। गगन भी करता है गुणगान। पिता का करें सभी सम्मान। पिता के जीवन का संघर्ष। निकेतन में लाता है हर्ष। साक्षी दिवस साक्षी वर्ष। पिता के श्रम ही से उत्कर्ष। पिता के सफल सभी अभियान। पिता का करें सभी सम्मान । पिता की छाया है वरदान। पिता का होना घर की शान। पिता जीवन-अनुभव की खान। पिता की सेवक हो सन्तान। पिता से मानव की पहचान। पिता का करें सभी सम्मान। पिताश्री जब हो जाएं वृद्ध। या किसी निर्बलता से बद्ध। आप अक्षम हो या समृद्ध। करें सेवा सविनय करबद्ध। नहीं हो वृ...
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!
कविता

पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कथन के शब्द सभी स्नेह के सरोवर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं! प्रगाढ़ प्रेम प्रकाशित प्रत्येक स्वर-व्यंजन निजी ममत्व से सुरभित सुबोध संबोधन सटीक सार समर्पित समस्त उदबोधन अतुल्य आत्मीयता, अनूप अपनापन महाविचार सुमुखरित मधुर मनोहर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं ! वे प्रश्न और निहित उनमें व्याप्त चिन्ताएं सुखद सुझाव की छाया में सुप्त इच्छाएं सुवर्तमान के उपयोग के नियम-संयम भविश्य के लिए अगणित असीम आशाएं जो व्यक्त भाव हुए हैं अमिट यशोधर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं! लगे है जैसे कथन पत्र के रहे हैं बोल प्रतीत होते वे दुर्लभ लगें बहुत अनमोल प्रत्येक वाक्य में अनुभूत सूत्र शक्तिमान रहस्य गूढ़ जगत के विविध रहे हैं खोल अकथ संदेश हैं अगणित मगर अगोचर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं! कहीं है क्रोध प्रकट मे...
अरुणोदय
कविता

अरुणोदय

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** लुप्त हो गया तिमिर घनघोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! भूमि से अंबर तक हैं रंग व्याप्त है जीवन के शुभ ढंग नाद ने किया मौन को भंग उड़ रहे अगणित विविध विहंग दृश्य परिवर्तन है चितचोर। हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर। रश्मियाँ रवि की आईं हैं दिशाओं में सब छाईं हैं भूमिगत हुआ कहीं पर तम उजाला अनुपम लाईं हैं प्रकाशित हुए धरा के छोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर। जागरण के गुंजित हैं गीत हवा में है अद्भुत संगीत जगी है जीवन की नव प्रीत हुई है आशाओं की जीत नृत्यरत है सबके मन मोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! हुए प्रारंभ कई कर्तव्य दृष्टिगत हैं आयोजन भव्य सभी में हैं सहयोगी जन पुरातन हैं कुछ तो कुछ नव्य हुए जड़-चेतन भावविभोर! हुआ अब अरुणोदय चहुँ ओर! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
भोर
कविता

भोर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कालिमा गुम हो गई है आ गई है भोर देखो! लालिमा सूरज की भू पर छा गई हर ओर देखो! प्राकृतिक सौन्दर्य की गुंजित हैं मनमोही कथाएं चारू चलचित्रों से शोभित हो गया हर छोर देखो! गीत हैं विहगों के मुख पर या प्रशंसा ईश की नृत्यरत अब तो लगे है मनुज का मन मोर देखो! जागरण अभियान छेड़ा भास्कर की रश्मियों ने बिस्तरों पर हो गई है नींद अब कमज़ोर देखो! कर्म ने कर से मिलाए कर हुए सक्रिय तन अब शून्य गतिविधियों की मानो कट गई है डोर देखो! क्या पता किस ओर नीरव ने किया प्रस्थान गुपचुप हो रहे हैं अब धरा पर निनादित श्रम शोर देखो! ए 'रशीद' आओ तुम्हारा कर्म भी प्रारंभ हो अब चेतना संग चपलता का आ गया है दौर देखो! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी...
पर्यावरण सुरक्षा
कविता

पर्यावरण सुरक्षा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** असमय मरण नहीं हो,अ समय क्षरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! पर्वत हो अथवा समतल सब जल ज़मीन जंगल रखने हैं नित्य निर्मल करने हैं यत्न अविरल भू पर कहीं भी बोझिल वातावरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! विषहीन हों हवाएं नकली न हों दवाएं जन चेतना अधिक हो आए न आपदाएं हो जो भी जन विरोधी उसका वरण नही हो!! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! शोभित सभी हों उपवन उजड़े न कोई कानन पथ-पथ हो वृक्षारोपण वंचित रहें नआँगन सौन्दर्य पर धरा के कोई ग्रहण नही हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! सर सरित् अथवा सागर पावन रहें निरन्तर मानक हो इनके स्तर पीड़ित नहीं हों जलचर जल में अशुद्धियों को कोई शरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! हो शोर पर नियंत्रण सीमित हों सभी भाषण हो क्षीण नाद विसरण ...
मीठी ईद लगे फीकी है
कविता

मीठी ईद लगे फीकी है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गहरी पीड़ा धरती की है। मीठी ईद लगे फीकी है! कोरोना के जाल बिछे हैं! नयनों से आंसू बरसे हैं ! सारे कारोबार थमे हैं! बन्द सभी बाज़ार हुए हैं! दशा यही हर बस्ती की है! मीठी ईद लगे फीकी है! बेटी गई मुरारी बा की! सखी सिधारी है सुखिया की! लाठी छिनी बनू बाबा की, विधवा हुई पड़ोसन काकी! यही कथा सलमा बी की है! मीठी ईद लगे फीकी है! कई घरों में हैं रमज़ान! हुए कई चूल्हे वीरान! भिन्न उपनगर हैं सुनसान! सीमित हैं भोजन-जलपान! बाहर सख़्ती कर्फ्यू की है! मीठी ईद लगे फीकी है! मस्जिद,मंदिर औ' गुरुद्वारे! बहुत समय से मौन हैं सारे! घर में ही पूजन-अर्चन है, कहाँ जाएँ पीड़ित दुखियारे! आँख सजल हर श्री जी की है! मीठी ईद लगे फीकी है! नहीं लग रहे हैं अब मेले! कहाँ गए लोगों के रैले! उदासीन बन्दी जैसे हैं, घर में ही परिवार अकेले! मेरी क्या चिन्ता सबकी है...
डर ज़रा
गीत

डर ज़रा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** झांक मन में आज अपना आकलन तू कर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! मन में तेरे है मलिनता! स्वार्थ की इसमें बहुलता! क्यों नहीं सच्ची सरलता? पालता हैं क्यों जटिलता? स्वच्छ कर सद्भावना से स्वयं का अन्तर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! 'अहं' में रहता मगन तू! सतत करता है पतन तू! बोलता कड़वे कथन तू! क्यों नहीं करता मनन तू? अपने शब्दों में शहद की मधुरता को भर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! पाप हैं अविराम तेरे! व्यस्त हैं दिन-याम तेरे! अनैतिक सब काम तेरे! दुष्टता है नाम तेरे! सोच क्या ले जाएगा संग अपने यायावर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस...
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ
गीत

है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सावधान रहना है प्रेमी प्रेम-यात्रा नियम कड़े। है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ ज़रा संभल कर पाँव पड़े पथ पर पाहन पड़े नुकीले धधक रहे अंगारे हैं। तिमिर अमा का दिशा-दिशा में, ओझल चाँद-सितारे हैं। गहरी दुविधा की सरिता है, कठिनाई के अचल खड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। मन विचलित तन में पीड़ा है, ज्वर से तापित अंग सभी। अंधकार आँखों के सम्मुख, धुंधले-धुंधले रंग सभी। पग घायल, छाले फूटे हैं, अवरोधक हैं बड़े-बड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। नयनों में है फिर भी आशा, अद्भुत है विश्वास बसा। संकल्पित हैं तन-मन दोनों, व्रत है कोई पर्वत-सा। जगत साक्षी है चरणों ने, कितने ही इतिहास घड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मति...
पावन पानी आंसू भी
कविता

पावन पानी आंसू भी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कहते हैं गंभीर कहानी आँसू भी। कहलाते हैं पावन पानी आँसू भी! आँखों को छलकाते आँसू ! पलकों को नहलाते आँसू! उर जब-जब होता है भारी, उसे क्षणिक सहलाते आँसू! करते बातें याद पुरानी ऑंसू भी। कहलाते हैं पावन पानी ऑंसू भी। समाचार दुखदाई आता! अत्याचार हृदय पर ढाता! छिन्न-भिन्न हो जाता आनंद, सुख-सुविधा का भवन ढहाता! करते नीरस शाम सुहानी आँसू भी। कहलाते हैं पावन पानी ऑंसू भी! कभी-कभी आँखों तक आते! पतित नहीं होते रुक जाते! मुख स्मित कर अंतर्मन की, वापस जाकर आग बुझाते! कभी-कभी होते हैं ज्ञानी आँसू भी। कहलाते हैं पावन पानी ऑंसू भी! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी...
सूरज ने
कविता

सूरज ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पूर्व दिशा में उदित हुआ तो तिमिर भगाया सूरज ने! भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगाया सूरज ने! गई निशा कजरारी काली, हुए प्रकाशित जड़-चेतन। छाई शुभ सुखदाई लाली, जाग उठे सोए जीवन। झूम उठे जन, मधुर जागरण गीत सुनाया सूरज ने। भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगा या सूरज ने! उड़े गगन में विहग प्रफुल्लित, ईश-वन्दना विरत हुए। हुए अग्रसर व्योम मार्ग पर, आलस के क्षण विगत हुए। जीव जगत को कर्तव्यों का पाठ पढ़ाया सूरज ने! भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगाया सूरज ने! सुमन बनीं कितनी ही कलियाँ, सूर्य मुखी ने किया प्रणाम। उत्साहित थी अधिक चपलता, उदासीन हो गया विराम। नयन-नयन को सुन्दरता की ओर बुलाया सूरज ने। भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगाया सूरज ने। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज...
प्रीत की पाती: पंचम स्थान प्राप्त रचना
कविता

प्रीत की पाती: पंचम स्थान प्राप्त रचना

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मन मलिन है, सुख नही वैभव नहीं! प्रेम की पाती लिखूँ संभव नहीं! सुप्त है स्वर्णिम सबेरा, दु खों ने डाला है डेरा! हैं नहीं आशा की किरणें, जग में छाया है अंधेरा! जो करे आलोक वह अर्णव नहीं! प्रेम की पाती लिखू संभव नहीं! मौन हैं सब ओर व्यापित, नाद लगता है पराजित! क्षण-प्रतिक्षण है उदासी, दिवस शापित,निशा शापित! कौनसा स्थल है जो नीरव नहीं है! प्रेम की पाती लिखूँ संभव नहीं है! अपने घर में बन्द हैं सब, अनमने आनन्द हैं सब! दृष्टिगत एकल अधिक हैं, अगोचर पथ-वृन्द हैं सब! पूर्ववत अब श्रव्य जन-कलरव नहीं! प्रेम की पाती लिखूँ संभव नहीं! हुए हैं अगणित प्रभावित, काल भी है स्वयं विस्मित! समस्या-पर्वत खड़े हैं, सभी सम्मेलन हैं वर्जित! त्रासदी-पीड़ित कहाँ मानव नहीं! प्रेम की पाती लिखूँ संभव! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद...
पुस्तक
दोहा

पुस्तक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पुस्तक अनुभव-कोष है, पुस्तक ज्ञानागार। जग में किस पर है नहीं,पुस्तक का उपकार। पुस्तक में इतिहास है, पुस्तक में भूगोल। पुस्तक में है सभ्यता, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक में गुर ज्ञान है, पुस्तक में निर्देश। पुस्तक में है सम्मिलित, जीवन के संदेश। मानव के पथ-प्रदर्शक, पुस्तक हों या ग्रंथ। लाभ ग्रहण इनसे करें, जगती के सब पंथ। संस्मरण-अनुभूतियाँ, लेतीं पुस्तक रूप। सकुचातीं इस रूप से, मार्तण्ड की धूप। पुस्तक से है संस्कृति, है आचार-विचार। पुस्तक से बढ़ता सदा, जीवन-शिष्टाचार। पुस्तक है तो ज्ञान है, पुस्तक है तो शान। पुस्तक से मिलता हमें, जीवन में सम्मान। युगों-युगों से पुस्तकें, हमें दिखाएँ राह। अच्छी पुस्तक-पठन की, किसे नहीं है चाह। पुस्तक साथी है परम, परामर्श दे नित्य। जब छाए भ्रम का तिमिर, बने ज्ञान-आदित्य। शब्दों में ढलने लगें, सुन...
यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी
कविता

यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** प्रार्थना है, नमन है, अरदास भी! यत्न है,आशा भी है विश्वास भी! महामारी की लहर है हर जगह है हर डगर है विश्वव्यापी हो गई यह, चाल भी इसकी प्रखर है! था नहीं इसका तनिक आभास भी! यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी! दीन सह धनवान पीड़ित सबल-निर्बल सब प्रभावित संक्रमण कब देखता है निरक्षर अथवा सुशिक्षित स्वामी भी चिन्तित हैं एवं दास भी! यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी! है अधिक गंभीर रोग मरण से अच्छा वियोग लाकडाउन कुछ दिनों का नहीं निकलें घर से लोग कर रहे हैं मूर्ख कुछ उपहास भी! यत्न है, आशा भी है विश्वास भी! प्रार्थना है, नमन है, अरदास भी! यत्न है, आशा भी है विश्वास भी! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ ए...
सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने
कविता

सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कमी दृष्टिगत हुई मुझे कुछ ही क्षण में! सब कुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! कहाँ लगी है कालिख मुख पर! किधर मृदा बैठी है सिर पर! कैसे हैं उलझे से केश, कैसा है नयनों में काजर! कान खड़े कर दिए अनसुने भाषण ने! सब कुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! प्रश्न पूछता मुखमंडल है! जाने क्यों माथे पर बल है! लज्जावश छाई है लाली, गिरने को आतुर दृग-जल है! निन्दा की है मेरी भू के कण-कण ने! सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेर...
शुभ संकल्प
कविता

शुभ संकल्प

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कर्म अगणित हैं जीवन अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! करें कुछ पर हित के भी कर्म! यही तो कहता है हर धर्म! सुनें अपने अंतर की बात, नित्य इंगित करता है मर्म! मनुजता का कुछ नहीं विकल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! मनुज-सक्रियता है अनिवार्य! कथन से उत्तम होता कार्य! क्लांति है जड़ता की सूचक, व्यस्तता प्रकृति को स्वीकार्य! करें सब विश्रामों को अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प गेह में भी संभव है योग! दूर इससे रहते हैं रोग! सुलभ साधन कितने ही हों, रहे मर्यादा में उपभोग! करें अपनी आवश्यकता अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प ! संतुलित-सीमित हों संवाद! निरर्थक हो न वाद-विवाद! निरन्तर शैली हो शालीन, नहीं हो शब्दों में उन्माद! व्यर्थ है मर्यादाधिक जल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०...
मरना अचल-अटल है
ग़ज़ल

मरना अचल-अटल है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जग में कोरोना के डर से ऐसा अदल-बदल है! सड़कों पर सन्नाटा पसरा घर में चहल-पहल है! अब सतर्क हो गया आदमी साये से भी डरता, अपने ही घर-आँगन में अब चलता संभल-संभल है! क़ुर्बत गुमसुम आज हुई दूरी ने जश्न मनाया, तीन-तीन फुट का अन्तर अब सबके अगल-बगल है! औरत हो या मर्द सभी के चेहरों पर है पर्दा, नज़र-नज़र दर्शन को तरसे हसरत विकल-विकल है! 'रशीद' कोरोना है कारण जाना एक दिवस है, जब तक जीवित रहें सुरक्षित, मरना अचल-अटल है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन औ...