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Tag: रशीद अहमद शेख ‘रशीद’

आँधियाँ-तूफ़ान आए
गीत

आँधियाँ-तूफ़ान आए

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आँधियाँ-तूफ़ान आए, फँस गए मझधार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। छा गई है महा मारी, कौन अब पीड़ित नहीं है? वेदनापूरित कहानी, किस हृदय अंकित नहीं है? कष्ट के कारण दुखी हैं, मेदिनी परिवार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। रोक है, पाबन्दियाँ हैं, बन्द सब अपने घरों में। रास्ते सूने पड़े हैं, शून्य जन हैं दफ्तरों में। रुक गए व्यवसाय सारे, थम गए व्यापार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। फिर सजें बाज़ार सारे, फिर खुले हर पाठशाला। तिमिर जाए आपदा का, लौट आए सुख-उजाला। कब तलक जीवित रहेंगे, लटकती तलवार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०...
प्रेरणा गीत
कविता

प्रेरणा गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुखद सफलता के सपनों को, यत्नों से साकार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। साहस हो धीरज हो मन में, संकल्पित अभियान रहे। बाधा बन गंतव्य-डगर पर जो आए दीवार ढहे। पर्वत आएँ राहों में तो हँसते-हँसते पार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। कभी-कभी मिलती हैं हमको, असफलताएँ जीवन में। भाव निराशा के भरती हैं, पीड़ित-विचलित तन-मन में। सकारात्मक सोच रखें नित, शुभ को बारम्बार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। अच्छे कर्मों का प्रायः जग, आलोचक बन जाता है। ''करे या नहीं करे' हृदय में, महा द्वंद ठन जाता है। हिम्मत हारें नहीं कभी भी, आशा का संचार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ ...
घर में बैठी ईद
दोहा

घर में बैठी ईद

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तालाबन्दी हो गई, घर में बैठी ईद। कोरोना ने कर दिए, लाखों लोग शहीद। कोरोनावश हो गया , मेले पर प्रतिबंध। चिमटे का कैसे करे, बालक महा प्रबंध। मुनिया रोती ही रही, सिले नहीं परिधान। कोरोना से ईद पर, लुप्त हुई मुस्कान। सन्नाटा पसरा रहा, घर-आँगन के पास। आया कोई भी नहीं, परिजन रहे उदास। एक अकेली ईद क्या, मौन सभी त्योहार। कोरोना के वार से, पीड़ित है संसार। कोरोना में ईद है, बंदिश है हर देश। मोबाइल द्वारा सभी, भेज रहे संदेश। घर सूना-सूना लगे, बिटिया बिना 'रशीद'। बिटिया है तो पर्व है, बिटिया है तो ईद। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी...
आदिकाल से इस धरती पर
गीत

आदिकाल से इस धरती पर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आदिकाल से इस धरती पर, जो भी आया यायावर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। पाकर ईशादेश आत्मा, देह-वसन धारण करती है। पंचतत्व की देह अंत में, मिले इन्हीं में जब मरती है। चले छोड़ कर देह आत्मा, कहें लोग जाए ऊपर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। मानव काया मंदिर सम है, करे आत्मा वहाँ वास है। रुक जाती है जब धड़कन तो, उड़े आत्मा अनायास है। सांसें थम जाएँगी किस क्षण, किसे ज्ञात है किसे ख़बर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। नीड़ शरीर आत्मा पक्षी, वह उड़ जाएगा जाने कब। जगत वृक्ष रूपी शाखा पर, सन्नाटा हो जाएगा तब। जन्म हुआ है जिसका जग में, मिटता उसका तन मरकर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। नहीं आत्मा जलती-कटती, क्षरण-मरण से नहीं प्रभावित। प्राणशक्ति है ...
अंतर्मन
गीत

अंतर्मन

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या कहूँ बात उलझन की। मत पूछो अंतर्मन की। छा गया बहुत कोरोना। पीड़ित जग का हर कोना। दृग झड़ी लगी सावन की। मत पूछो अंतर्मन की। लगता कर्फ्यू कोरोना। दुर्भर है जगना-सोना। सीमा है घर-आँगन की। मत पूछो अंतर्मन की। सूने बाज़ार सभी हैं। धीमे व्यापार अभी है। दुर्दशा हुई जन-जन की। मत पूछो अंतर्मन की। नव विवाहिता थी सोना। ले गया कंत कोरोना। है दशा बुरी विरहन की। मत पूछो अंतर्मन की। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत...
सजल
कविता

सजल

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** धरती पर कुछ लोग अभागे मारे-मारे फिरते हैं। शरण नहीं मिल पाती उनको बिना सहारे फिरते हैं। परिणय बंधन के शुभ अवसर कहाँ सभी को मिल पाते यहाँ-वहाँ जग में कितने ही युवा कुआँरे फिरते हैं। नहीं विश्व में साध सभी की पूरी होने पाती है अगणित नर-नारी मन में अभिलाषा धारे फिरते हैं। माता-पिता दुखी होते हैं वे छिप-छिपकर हैं रोते इधर-उधर जग में नित भूखे उनके प्यारे फिरते हैं। एक इंदु है फिर भी उसका मान बहुत है सब कहते गगन पटल पर यूँ तो प्रति क्षण अगणित तारे फिरते हैं। अब असत्य की बाढ़ धरा पर सभी ओर आ पहुंची है सत्य खोजने दिशा-दिशा में नयन हमारे फिरते हैं। 'रशीद' अविरल पूछ रहा है तनिक आप उत्तर तो दें "सकल धरा पर युगों-युगों से क्यों बंजारे फिरते हैं?" परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़...
होली गीत
गीत

होली गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नित नूतन परिधान पहनकर, सृजित करे रंगोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। सूरज की सोने-सी किरणें, चारु चाँदनी रजत लगे। विस्मित विस्फारित नयनों को, नैसर्गिक सौंदर्य ठगे। कभी तिमिर तो कभी उजाला, अद्भुत आँख मिचोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। इन्द्रधनुष सातों रंगों से, अपनी शोभा बिखराए। रंग नहीं कम अंबर में भी, धरती को यह दिखलाए। बादल गरजें, बिजली चमकें, वर्षा करे ठिठोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही नित होली है। कानन में फूले पलाश हैं, उपवन-उपवन सुमन खिले। खेतों में सरसों है पीली, नए-नए पत्ते निकले। मनमोही व्यापक होली से, सबकी काया डोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्...
विरह गीत
गीत

विरह गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** बन गया बैरी सुखद अनुराग है! जल रही अविरल विरह की आग है! सजन-पथ सूना पड़ा है। क्लेश माथे पर चड़ा है। नयन भी पथरा गए हैं, लग रहा हर क्षण बड़ा है। देह को डसता प्रतीक्षा-नाग है! जल रही अविरल विरह की आग है! कहीं आहट है न दस्तक। पत्र भी आया न अब तक। मानता है मन नहीं कुछ, राह देखें नयन कब तक। भ्रमित क्यों करता निरन्तर काग है! जल रही अविरल विरह की आग है! निकेतन,छत,डगर,परिसर। जी नहीं लगता कहीं पर। पर्व या त्यौहार कोई, रुलाते हैं दुखद बनकर। उदासी है सतत फीका फाग है! जल रही अविरल विरह की आग है! तन नहीं श्रृंगार करता। मन हमेशा आह भरता। ढंग कोई भी जगत का, वेदना को नहीं हरता। कर चुका मनवा सभी सुख त्याग है! जल रही अविरल विरह की आग है! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म...
भक्ति गीत
गीत

भक्ति गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आदि-अंत से परे निरन्तर, गुण में अपरम्पार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालनहार हो। जड़-चेतन के हो निर्माता, ॠणी सकल संसार है। धन्य नहीं है कौन सृष्टि में, कहाँ नहीं आभार है। दीन दयाल न तुम-सा कोई, करुणा-पारावार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। वेद-पुराण भागवत गीता, ग्रंथ और क़ुरआन में। पावन पद या कथन व्यस्त्त हैं, तेरे ही गुणगान में। कुछ कहते हैं निराकार हो, कुछ कहते साकार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। तुम हो एक सभी के स्वामी, लेकिन नाम अनेक हैं। होना एक तुम्हारा फिर भी, जग में धाम अनेक हैं। कहीं भक्त हैं कहीं नास्तिक , सबके तारनहार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
वासंती गीत
गीत

वासंती गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** वन-उपवन शोभायमान हैं, पर्ण-पर्ण आनन्दित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। हरी-हरी पत्तियाँ झूमकर, पुष्पों से कुछ कहतीं हैं। कलियाँ सुनकर उनकी बातें, भाव सरित् में बहती हैं। डाली-डाली तरु-पादप की, हुई सुसज्जित-शोभित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। रंग-बिरंगी विविध तितलियाँ, फूलों से मिलने आईं। उनका स्वागत हुआ सुखद तो, भावुक होकर मुस्काईं। सुन्दर सुमनों से चर्चा कर, तितली वृंद प्रफुल्लित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। कीट-पतंगो का मेला है, विहग दूर से आए हैं। सुमन समूहों ने सह स्वर में, स्वागत गीत सुनाए हैं। कोयल छेड़ रही है सरगम, भ्रमर गान भी गुंजित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ ...
फागुन गीत
कविता

फागुन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** उर अभिलाषी है रँगों का, इच्छुक है कल्पना गगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। होली की हुड़दंग मची है, दिशा-दिशा मस्ती छाई है। तन-मन में उल्लास बहुत है, सबके मन होली भाई है। झूम रहे हैं सब नर-नारी, खेल रही रँग सकल नगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। मुख रंगीन किया है तूने, गला और कर भी रँग डाले। पाँवों तक पँहुची रँगधारा, वसन हुए सारे रँगवाले। आशंका है मुझे आज तो, लग जाएगी बुरी नजरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। गली-गली में ढोल बज रहे, होली गीतों की सरगम है। नयन उमंगों से पूरित हैं, परिहासों का अगणित क्रम है। दूर हुए सन्नाटे सारे, हुरियारों से भरी डगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०...
वसंत गीत
कविता

वसंत गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मधुर भूतकालीन क्षणों को, मानस पट पर लाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। जब मन प्रिय की यादों में खो, मौन-मुखर संवाद करे। अनुरागी अंतर का उपक्रम, तन-मन का संताप हरे। नयन चमकते हैं उत्साही, हर्षित उर इठलाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। हृदय कल्पना लोक लीन है, धड़कन 'प्रिय-प्रिय' गाती है। हवा वही परिचित प्रिय सौरभ, सांसों में भर जाती है। अभिलाषा-सागर अंतर में, बार-बार लहराता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंतआ जाता है। आदिकाल से प्रीति धरा पर, दिशा-दिशा में छाई है। मनुज ही नहीं जड़-चेतन ने, इसकी महिमा गाई है। सुखद प्रेम का धरा-गगन से, युगों-युगों से नाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान...
मन का गीत
कविता

मन का गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** दृश्य सुहाने देख-देखकर, राहों में ही अटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। मन पर निर्भर हैं अच्छे फल, मन से सब कुछ संभव है। मन से होती महा विजय है, मन से सुख है वैभव है। जीवन की सब गतिविधियों में, मन निर्णायक घटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। कभी इधर है कभी उधर यह, रहता है बेचैन सदा। आवारा बन घूमा करता, तन में रहता यदा-कदा। धरती से नभ तक हर पल ही, विचलित होकर सटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। मनमानी करता अक्सर मन, कभी नहीं मेरी सुनता। अपनी ही धुन में रहता है, जाने क्या-क्या है बुनता। पता नहीं क्या भाव सँजोए, मन चंचल नित मटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
ध्वज-गीत
गीत

ध्वज-गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अपने प्यारे ध्वज पर हर पल, गर्वित हिन्दुस्तान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। केसरिया है त्याग प्रदर्शक, श्वेत शांति दिखलाए। हरा रंग है समृध्दि सूचक, चक्र उन्नति गुण गाए। मातृ भूमि का अपना यह ध्वज, गौरव का गुणगान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। यह निशान अपने भारत का, यह तो अपना मान है। यही हमारा सच्चा सुख है, यह अपनी मुस्कान है। प्राणों से प्रिय सतत तिरंगा, आन-बान है, शान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। सदा जिएँगे और मरेंगे, इस झण्डे के वास्ते। आँच न आने देंगे इस पर, कभी किसी भी रास्ते। नर-नारी, बच्चा या बूढ़ा, हर कोई क़ुरबान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
भोर का पंछी
कविता

भोर का पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जागरण संदेश लाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में! मधुर वाणी गूंजती है, व्योम से लेकर धरा तक। गान-पारावार में सब, डूब जाते हैं अचानक। मन सभी का है लुभाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। मनोहर लय ताल सुन्दर, धुन अनोखी गान की है। प्राकृतिक अद्भुत प्रथा यह, जागरण अभियान की है। स्वरों की गंगा बहाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। कुशल है संगीत में वह, जानता आरोह भी है। तान है उसकी सुरीली, समय पर अवरोह भी है। कंठ से सरगम सुनाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक...
भूल जाओ
कविता

भूल जाओ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। जो समय के साथ गुज़रा, वह बवंडर भूल जाओ। समय में बदलाव है अब, कल गया है आज आया, चल दिया तम कष्ट का सब, उजाला अब सुखद छाया। रहे जो भारी हृदय पर, पल भयंकर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। हो सकी आशा न पूरी, अधूरे रह गए सपने। रूठ कर जाने कहाँ पर, चल दिए कुछ लोग अपने। विरह के क्षण भूल पाना, कठिन है पर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। दुखद कोरोना भयानक, प्राणघातक महामारी। कर रहा था विश्व में वह, शवों पर अपनी सवारी। महामारी कम हुई है, रोग का डर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्...
सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में
कविता

सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तन में हो उत्साह और आशाएँ मन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। बाधाओं से हार न मानें। पथ की कठिनाई पहचानें। आवश्यकताओं को जानें। जो करना है मन में ठानें। विजय पताका फहराएं फिर नील गगन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। कवच सुरक्षा का हो सक्षम। रहें नहीं आशंका या भ्रम। न हो आक्रमण कोई निर्मम। चाहे कैसा भी हो मौसम। रहें सुरक्षित सभी विश्व रूपी उपवन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। हो कोई धनवान या निर्धन। आबादी हो या हो कानन। बाहर हो अथवा घर-आँगन। करें सभी नियमों का पालन। रहें मनुज सब अपने-अपने अनुशासन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। नारी हो अथवा वह नर हो। सतत् सत्य ही का सहचर हो। जो अंदर हो वह बाहर हो। सदा ध्यान में परमेश्वर हो। नित्य आचरण में, वचनों में अथवा मन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। भावशून्यता ...
आया नूतन वर्ष
कविता

आया नूतन वर्ष

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** भला मनाए कोई कैसे, दुखद समय में हर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। लाखों लोग हुए हैं पीड़ित, लाखों गए सिधार। लाखों कारोबार हुए ठप, लाखों हैं बेकार। अवरोधित हो गया धरा पर, सभी ओर उत्कर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। वैक्सीन की खोज हो रही, विविध चल रहे शोध। मास्क और नियम पालन का, सबसे है अनुरोध। महारोग से विश्व कर रहा, अविरल है संघर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। कैसे प्रेषित करें बधाई, कैसे हो सुखगान। तन-मन दोनों मलिन हुए हैं, खड़े कई व्यवधान। कोरोना से हुआ जगत में, कहाँ नहीं अपकर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतनवर्ष। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्द...
वर्ष का पारा
कविता

वर्ष का पारा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** उतरता जा रहा है वर्ष का पारा दिसम्बर में। सिमट कर रह गया है वक़्त अब सारा दिसम्बर में। अभी से विश्व में 'इक्कीस' के स्वागत की चर्चा है बिछड़कर जा रहा सन् 'बीस' है प्यारा दिसम्बर में। नए में जोश कितना था, पुराने में उदासी है जो जीता जनवरी में था वही हारा दिसम्बर में। निरन्तर रात-दिन ही जगत में रहता समय अविरल नहीं थमती समय की अनोखी धारा दिसम्बर में। गया शैशव तथा अब ढली है तरुणाई भी उसकी हुआ बूढ़ा है लगता वर्ष बेचारा दिसम्बर में। विविध संगीत स्वर स्वागत में गुंजित जनवरी में थे सुनाता है बिदाई गीत इकतारा दिसम्बर में। "कहाँ रुकता समय संसार में मेरी तरह लोगो" कह रहा 'रशीद' अनमन एक बंजारा दिसम्बर में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, ...
प्यासा पंछी
कविता

प्यासा पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। अपनी प्यारी वाणी में वह, कुछ है बोल रहा। संभवतः कर रहा निवेदन, सुमधुर भाषा है। उसकी कुछ अपनी चाहत है, कुछ अभिलाषा है। सुनने वालों के कानों में, मिसरी घोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। आदि काल से है मानव के, खग से प्रिय नाते। विहग संग पाकर घर-आँगन , सब जन सुख पाते। मानव जीवन में हर नभचर, नित अनमोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। उसके गाने में है सरगम, स्वर है मनमोही। धुन सीधे उर को छूती है, लय है आरोही। मधुर-मधुर स्वर लहरी द्वारा, उर पट खोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और ...
बहिष्कार
गीत

बहिष्कार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्य, अहिंसा और प्रेम का परिष्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टिकोण का बहिष्कार करना है सब को। जीवन शैली सरस सरल हो। सुधा सुलभ हो लुप्त गरल हो। नहीं विकल हो मानव कोई,। स्नेह-शान्ति धारा अविरल हो। कुटिल तामसिकता का जग में तिरस्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। रोटी, कपड़ा और निकेतन। प्राप्त करें जगती पर जन-जन। न हों अभावों की बाधाएँ, सुख-सुविधा पूरित हों जीवन। छोड़ स्वार्थ सब परहित पर भी अब विचार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। निर्मित करने हैं विद्यालय। अधिक बढ़ाने हैं सेवालय। जहाँ विषमता की खाई है, वहाँ बनें उपकार हिमालय। मानव हितकारी शुभ उपक्रम बार-बार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। जन-जन का उत्थान ज़रूरी। जन हित के अभियान ज़रूरी। हो व्...
आशावादी गीत
गीत

आशावादी गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, बांधे सबको स्नेहिल डोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। अभी आस्था का सागर है, अभी भरोसा मरा नहीं है। सकल विश्व में कोरोना है, फिर भी मानव डरा नहीं है। गीत अभी हैं आशावादी, गेय अभी है घर-घर लोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। नित्य बांसुरी की तानों से, जंगल में मंगल होता है। चंदन चाचा के बाड़े में, मल्लों का दंगल होता है। जीवन सिर पर ले जाती है, गाँवों में पनघट से गोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। राखी लेकर कमली काकी, चाँदू चाचा के घर आती। सलमा आपा दीवाली पर, दीपू से सौग़ातें पाती। पीपल नीचे चर्चा करते, हर दिन हस्सू एवम् होरी। साध मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। संचालित हैं पुण्य कर्म कुछ, चलते हैं सहयोग निरन्तर। जीवित हैं कुछ परम्परा...
सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा
गीत

सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा का, स्वागत करता आँगन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। चाह बढ़ी ऊनी वस्त्रों की, भूले बरसाती-छतरी। शांत हो गए कूलर-ए• सी•, पंखों पर आलस ठहरी! गीज़र का जल अच्छा लगता, हीटर अब मनभावन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। पारे का नित पतन हो रहा, शिष्टाचारी ताप हुआ । काले-काले मेघों का दल, लुप्त कहीं चुपचाप हुआ। अधिक आवरण का अभिलाषी, हुआ आजकल हर तन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। बर्फ़-मलाई कुल्फी शर्बत, घर-घर से निर्वासित हैं। कपड़ों की तो बात करें क्या, बिस्तर भी परिवर्तित हैं। शीतकाल के स्वागत में अब, आतुर बचपन-यौवन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म...
दीपावली
कविता

दीपावली

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आजकल चहुँ ओर है चर्चा चली! आगई फिर प्रतीक्षित दीपावली! गृह सजे,आँगन हैं सज्जित सारे पथ-परिसर सुशोभित देख मन सबके प्रफुल्लित सज गए हैं सब मुहल्ले हर गली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! हुए हैं दीपक प्रकाशित पूर्णतः तम है विलोपित व्याप्त है आलोक असीमित लग रही नगरी दुल्हनिया-सी भली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! किसी ने क्रय की है वाहन किसी ने गृह लिया नूतन कोई लाया है सुसाधन वस्त्र सुन्दर क्रय करेगी श्यामली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! दीप चमकेंगे क्षितिज तक प्रभा देगी नभ में दस्तक यत्न होंगे तम विनाशक जगमगाएगी अमावस साँवली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (ह...
ले गया है सब लुटेरा भीड़ में…
कविता

ले गया है सब लुटेरा भीड़ में…

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** ले गया है सब लुटेरा भीड़ में। लुट गया संसार मेरा भीड़ में। बादलों ने ढँक लिया है सूर्य को सांझ में बदला सवेरा भीड़ में। रूठकर बैठी कहीं है रोशनी शेष है केवल अंधेरा भीड़ में। अजनबी अनजान है इन्सान वो डालकर बैठा जो डेरा भीड़ में। गा रहा है कोई सुन्दर प्रेम गीत रेशमा के साथ शेरा भीड़ में। धातु के बर्तन नहीं,फल-सब्ज़ियाँ बेचता है अब कसेरा भीड़ में। वह अकेला क्या करेगा अब 'रशीद' आफ़तों ने उसको घेरा भीड़ में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेर...