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Tag: योगेश पंथी

खपरैल में हीरे जड़े हैं
कविता

खपरैल में हीरे जड़े हैं

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़ें हें, क्या बताऊँ वो मेरी महनत की कमाई से चढ़े हें ! दफ्तर में बैठकर हवा नहीं खाई साहब, उनमें मेरे पसीने के कतरे पड़े हैं। उनके बंगले की छत लाखों की हें मगर मेरे घर के साये भी, मेरे लिये महंगे बड़े हैं। आप भी क्या दे सकोगे आपके बच्चों को सु:ख बरसात में तिरपाल लेकर सारी रात हम खड़े हें महंगि बहुत हैं मेरे घर की, यह कच्ची जमीन क्या कहूँ जिसमें मेरे अनगिनत आंसू पड़े हैं। हौसलों से हैं खड़ी दीवारें मेरे घर की जनाब बल्लियों पर चारों तरफ टाट के फट्टे चढ़े हैं। किसी बड़े होटल से भी, महंगे निवाले हें मेरे जिनको पाने के लिये, कीचड़ में मेरे कपड़े भिड़े हैं। क्या मोल लगाओगे मेरे बच्चों की, एक मुस्कान का ये आपकी दिखावटी मुस्कान से, बिल्कुल परे हैं। मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़े हैं, ...
ज्ञान की ज्योति
कविता

ज्ञान की ज्योति

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ज्ञान की जोत न जलती तो जीवन उजियार नही होता प्रथम शिक्षक कौन होता गर माँ का प्यार नही होता कानो मे लोरी गा गा कर जिसने मुझको दीक्षा दी प्रथम गुरु तो माँ ही है जिसने शब्दो की शिक्षा दी जिसके ममता दुलार से मन मे भाव यही आया मेरे होटों पे सबसे प्यारा पहला अक्षर माँ आया उसके शिक्षक होने का उसको ये परीणाम मीला मुझे मिली माँ गुरु रूप मे उसको माँ का मान मिला उसकी सूरत के भावो से मैने हंसना रोना सीखा उसकी उंगली थाम के ही धरती पर चलना सीखा क्या होता है सही गलत माँ ने ही सिखलाया है हर पथ पर हर एक जगह जीने का ढंग बतलाया है हर विपदा हर एक खुशी सहना माँ से ही सीखा है माता से ही इस जग मे जीने का समान मिला है माता ने ही तो मन मे मेरे सुंदर शब्द उगाए है मेरे सम्मुख स्नेह भरे सिर्फ शब्द ही लाये है ...
मन की आँखे खोल
कविता

मन की आँखे खोल

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** चहरे का तो रंग उड़ा है नस नस में है कपट भरा। चला ठाट से तीरथ करने घरमें है अंधकार पड़ा॥ चार जीव का दिल जलता हैं चला है शान दिखाने को। यारों के संग मौज मनाता घर में नही हैं खाने को॥ घर की परवाह उसे कहाँ सिर्फ दिखावा प्यारा है। जब पैसे की खनक बड़े तब हो जाता न्यारा है॥ लगा सके न जहा रुपईया तंग हाल में, वो घर प्यारा हैं। सिर छुपाने जगह नही तो तब होता वहीं गुज़ारा है॥ कटे विधुत खंडहर हो घर उसकी आँख नही झुकती। नाक कटे दुनिया भर में पर डिन्गा फांक नही रुकती॥ दिल दुखते हो लोगों के तो खुद खुशहाल नही होते। तीरथ कर लेने से केवल खुश भगवान नही होते॥ दुराचार की संगत से तो यज्ञ भी नष्ट हो जाते हैं। मन मे छल हो तीरथ से क्या दूर कष्ट हो जाते हैं॥ जितना कष्ट देता सब को तेरा परिवार भी झेल रहा। ईश्वर खेल ...
प्यारी बहना
कविता

प्यारी बहना

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** संग रहती थी जब बहना सब कितना मनभावन था। प्यारी बहना संग में थी तो हर दिन जैसे सावन था॥ बचपन से दो दशको तक जो साथ रही संग में खेली। मेरी प्यारी सी बहना की बचपन की यादों की थैली॥ लिए साथ में सोता हूँ करके सारी यादें भेली। चहल पहल सी थी घर में जब बेहना घर रहती थी॥ माँ की प्यारी परी, पिता की सोन चिरैया रहती थी। सब बातों में साथ थी मेरे वो तो मेरी हमजोली थी॥ बात बात पर गुस्सा होती बहना कितनी भोली थी। सजा धजा घर अँगना था वो तो थी घर का गहना॥ बचपन में ये कहाँ पता था कुछ हि दिन हैं संग रहना। हमको ये मालूम नही था शीतल पवन का झोंका हैं॥ जीवन भर वो साथ रहेगी ये तो बस इक धोका हैं। इसी बात को समझा कर होंटों को खोला करते थे॥ वह अमानत गैर की हैं बाबूजी बोला करते थे। विदा हुई तो छूप...
औरत
कविता

औरत

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ईश्वर की अदभुत रचना हे जो कई रुपों में ढलती हैं। हर एक अवस्था में औरत अपना स्वरूप बदलती हे॥ हर नए रिश्ते में औरत अपनी रीत निभाती हैं । कभी तो बनती हैं बेटी कहीं बेहन बन जाति हे॥ कहीं तो हे दादी नानी कहीं तो माँ केहेलाती । कहीं पे बनती राधा प्यारी कहीं अर्धांगि बन जाती हैं ॥ सबसे बड़ा रिश्ता हैं माँ का बच्चो की नीव जो भर्ती है। धूप पढ़े जब बच्चो पर तो शीतल साया करती हैं॥ बेहन बने तो मर्यादा की होती हे इक पावन रेखा । घर को जगमग करे रोशन कोई मित्र नही एन्सा ॥ होती हे जब राधा प्यारी तन्हाई में मन बेहेलाती हे । दिल के वीराने उपवन में यादों के फूल खिलाती हे॥ और बने जब जीवनसाथी घर को वो स्वर्ग बनाती हे। अपना घरबार बसाने को अपना अस्तित्व लुटाती हे॥ पुरुष की खातिर खोती अपना तनमन सुं...
अपना पराया
कविता

अपना पराया

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** पड़ोसी सारे अपने है और घर के है गैर पड़ोसी सांथ है निभा रहे घर को में बैर पड़ोसियों से हो रहा अपनेपन का भान घर में भाई रह रहे जैसे हो अनजान आज घरो से मिट रहा सारा शिष्टाचार भाई भाई के बीच में बनी रहे तकरार मांत पिता से कर रहे बच्चे ऐसे बात बात बात में मारते जैसे जूते लात बाहर के सब लोग तो देते है सम्मान लेकिन घर के भीतर हीं क्षीर्ण हुआ है ज्ञान भीतर भीतर ढूंढ़ते है खुद का सम्मान किसको आदर भाव कब स्वयं नही है ज्ञान छोटो को तो क्षमां नही बढ़ो को न सम्मान आप ही नें बना लिया केसा ये अभिमान बड़ा समझता है खुदको तो झुक कर रहना सीख अभिमानी को तो कभी मांगे मिले न भीख छोटा बन कर देखले हे छोटी सी बात झुकजाने से न कभी घटती अपनी जात पेड़ आम का देखलो देखो पेड़ गुलाब भरे हो फल और फूल से झूटे जा...
तुम बिन जीवन पतझड़ सा
कविता

तुम बिन जीवन पतझड़ सा

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** मेरा जीवन था पतझड़ तुम आई हो बाहर लिए ! जैसे भेजा हो तुम्हे प्रभु ने खुशियों का उपहार लिए ॥ छोड़ आइ हो पीहर को मेरे घर को बसाने को। माता से संस्कार लिए बबूल का मान बढ़ाने को॥ इस दिल को ठंडक मिलती हे जब जब तुम मुस्कती हो । कितने सेह्ज भाव से दोनो कुल की रीत निभाती हो ॥ मेरी खुशी मेरे दुख में हर पल सांथ निभाती हो। जैसे में इक दीपक हूँ और तुम मेरी बाती हो ॥ मेरे चेहरे की रंगत से तूम रंग रूप बदलती हो। दीपक तो संपूर्ण तभी हे जब संग बाती जलती हो॥ धन्न हुआ मेरा जीवन जो तुमने उपकार किया। अपने पूरे जीवन को मेरे जीवन पर बार दिया॥ भूल के अपना सब कुछ सब मेरा तुम करती हो । भोर भई तो जग जाती हो देर रात तक जगती हो ॥ मेरे घर को सवारती हो और मेरे लिए संवरती हो। क्यों न तुम संग प्रीत निभाऊँ इतनी प्रीत जो...
ओ माँ मुझे बतलादे
कविता

ओ माँ मुझे बतलादे

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** तुझको कैसे बतलाउँ तुझे कितना में चाहूँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ अपने मन मंदिर में तेरी मूरत बसाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ तुझे कैसे मनाऊँ तूने जनम् दिया है मुझको तूने मुझको पाला हे हर मुश्किल में हर विपदा में तूने मुझे संभाला हे तू मुझसे रूठी हे सबको कैसे बताऊँँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ नो महीने मुझे रखा पेट में खुद में मझको ढाला हे दुःख सह सह कर आँसू पीकर तूने मुझको पाला हे इतना प्यार दिया हे उसको कैसे भुलाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ जब भी घिरा अंधेरों में माँ तू ही तो उजियारा थी तेरी करुणा की छाती में प्रेम सुधा की धारा थी तेरी हर इक साँस का ऋण मैं कैसे चुकाऊँ ओ माँ मुझे बतलादे तुझे कैसे मनाऊँ मेरे गम में मेरे दुःख में ...
भूली बिसरी यादे
कविता

भूली बिसरी यादे

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** बचपन के खेल भूल गये बच्चो कि रेल भूल गये। आज बने हैं खुद कोलू कोलू का बेल भूल गये॥ ह्र्दय घात अब क्यौ न हो कोलू का तेल भूल गये। ह्रदय स्पंदन बढ़ता घटता नमक पहाड़ी बभूल गये॥ बच्चे होते उदर काट कर घर की चकिया भूल गये। भूले मोगरी कपड़े धोना सिल्ला लुड़ीया भूल गये॥ भरी जवानी सर चाँदी सा आँवला अरीठा भूल गये। भूल गये वो ब्रह्ममुहूर्त शाम सुहानी भूल गये॥ मोबाईल में ऐसे खोये वो खेल पुराने भूल गये। भूल गये वो गिल्ली डंडा वो दौड़ कबड्डी भूल गये॥ लिप्त हैं कई व्याधियों में अपनी दिनचर्या भूल गये। इस विदेश की होड़ में हम खुलकर जीना भूल गये॥ अपने निर्मित उत्पादों को उनकें पेकिट में भर डाला। पोषक और कुपोश्क वस्तु दो पेकिट मे कर डाला॥ अपना सामा अपने घर में वो चार चौगने बेच रहे। तैयार किये क्रांति विरोने ...
प्यारी माँ
कविता

प्यारी माँ

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** माँ जब भी प्यार देती थी अपना सब वार देती थी। मेरी एक मुस्कान पर वो आशीष हजार देती थी॥ और पिता जी ऐसेे थे मानो ईश्वर के जैसे थे। जो मांगा ला देते थे चाहे कम ही पैसे थे॥ हमको सु:ख देने को जो अपने सब सु:ख भूले थे। जब अपनी आँखो मे आँसू उनकी बाहो के झूले थे॥ उनके दामन के साये मे महलो के वैभव भूले थे। सब संभव था बाबु जी को अब लेकिन वो बात कहाँ॥ एक नाता न हमसे संभला वो दस को भी न भुलाते थे। एक चूले आंच पे जब माँ स्वादिष्ठ भोज बनाती थी।। नित प्रेम से भोजन पाते थे अपने हाथो से खिलाती थी। इतने प्रेम से प्यारी माँ सबको भोजन देती थी॥ वो भी अमृत लगती थी जो रूखी सूखी रहती थी। माँ की ममता के आंचल मे प्रेम की धारा बहती थी॥ अपने लाड़ प्यार से वो जब सारे दू:ख हर लेती थी। जब माँत पिता का साया था वो दिन बडे सुहाने थे।। परिचय :- योगेश पंथ...