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ज़वानी में क्या रखा है
ग़ज़ल

ज़वानी में क्या रखा है

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** तू मेरी आँखों के सामने है तो माज़ी में क्या रखा है तेरी फ़लसफ़ी तस्लीम करूँ कहानी में क्या रखा है। ज़हनी नफ़सियाती का कोई मर्ज़ नहीं दर्द क्यों ज़र्द तो टूटे दिल–ए–मशरिक़ की रवानी में क्या रखा है। मेरी साँसें इतनी आरिज़ी थी जितनी बेकल थी बेख़ुदी तेरी आँखों में तैर जाऊँ तो फिर सूनामी में क्या रखा है। कोहिनूर क्या है पत्थर है तू तो जीता जागता हुस्न है तेरे इश्क़ में डूब न जाऊँ तो सुहानी में क्या रखा है। तेरी निगाहों की जाज़बियत दिल में दवा सा असर करे तुझसे प्यार मैं क्यों न करूँ यूँ बेइमानी में क्या रखा है। सारे आईनों को जंग लग जाए आँखें धुँधली हो जाए तू न बन पाए हमसफ़र तो फिर ज़वानी में क्या रखा है। शब्दार्थ :– माज़ी :– अतीत ज़हनी नफ़सियाती :– दिमाग़ी मनोरोग मशरिक़ :– पूरब, पूर्व दिशा आरिज़ी :– व्यथित सु...
बर्फ़ाब
ग़ज़ल

बर्फ़ाब

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** जो मिल गया सो मिल गया अब तो दिल में ख़्वाब सजा लीजिए ले के मुझे बाँहों में तुम यूँ आँखों में क़दह-ए-शराब बना लीजिए। कहते है जोड़े आसमान में बनते है हमने तो कभी सोचा नहीं ये बात है तो कच्चे डोर में बाँधके मुहब्बत के बाब आ चलिए। इश्क़ में जुर्म कर बैठे कोई बात नहीं इश्क़ की तामीर की जाए अब पीछे भी क्या हटना आप फ़र्द–ए–हिसाब सुना दीजिए। हाए! नाक पे गुस्सा फिर भी बड़े शौक़–हसीं लगते हो तुम तो हमने तो होंठों पे लिया नाम तुम्हारा चलो इताब बना लीजिए। ख़्यालों को ज़ेहन में रखते हैं छोटे से दिल में अरमान बड़े रखते है सुनो मीठे मीठे सवालों का मज़ा अपने ही हिसाब का लीजिए। हल्की हल्की बारिश की बूंदें मेरे गालों पे क्या पड़ने लगी कि जैसे फिज़ा साजिशें करनी लगी बहाके ले जाने को सैलाब बना दीजिए। आ बैठ मेरे सम्त काली नज़...