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Tag: मीना सामंत

अपनत्व की पंखुड़ियां
कविता

अपनत्व की पंखुड़ियां

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** चलता है वह खूबसूरत एहसास लेकर, कीचड़ के छीटे गिरते उसी पर! चलता है वह रंगों का गुलाल लेकर, कालिख के रंग उड़ते उसी पर! चलता है वह भरोसे के रोशन दिए लिए, षड्यंत्रो की आंधियां रहती उसी पर! चलता है वह अपनत्व की पंखुड़ियां लिए कांटे बिखेर दिए जाते हैं उसी पर! चलता है वह मुस्कुराहटों की चादर ओढ़कर, कड़वाहटें उड़ेल दी जाती है उसी पर! चलता है वह एक अलग तस्वीर का सपना लिए, धमकियां देकर कैनवास गिरा दिया जाता, क्यों उसी पर! परिचय :- मीना सामंत निवासी : एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच...
कुदरत के फैसले…
कहानी

कुदरत के फैसले…

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ********************                                                      पिछले महीने सितम्बर के आखिरी हफ्ते की बात है, मैं कुछ अनमनी, हैरान,परेशान सी थी, अपने ही लोगों से कुछ आहत थी! जीवन में यह सब नया नही था और ना पहली बार! सब कुछ चलता रहता है यही सोचकर मैं घर के छोटे-मोटे काम निबटा कर नहाई! समय लगभग दिन के एक बज चुके थे, मंदिर में दीप जलाते ही मुझे याद आया कि तुलसी का पौधा सूखने लगा होगा, इसलिए जल चढ़ाने के लिए बाहर गई! मन में संशय था कि कहीं कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...? कि दिन के एक-दो बजे तुलसी में जल चढ़ा रही है, कितनी लापरवाह और आलसी औरत है! यूँ तो सरपट भागती दिल्ली नगरिया में किसी को किसी से कोई विशेष मतलब नहीं रहता है, फिर भी आस पड़ोस की कुछ महिलाएँ दूसरी महिलाओं की कमियाँ और खोट निकाल कर मजे लेने से पीछे नहीं हटती हैं! जो भी हो ले...
दादी अम्मा तुम बहुत याद आती हो!
कविता

दादी अम्मा तुम बहुत याद आती हो!

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** धीर थी, गम्भीर थी, संतुलित सी भाषा थी, तुम आंगन की तुलसी थी, मैं तुम्हारी आशा थी। पहाड़ी नदियों की छल-बल नहीं, सागर सी सूरत थी। खारापन तुमको छू नहीं पाया, विनम्रता की मूरत थी। नदी, नालों से डरने वाली मैं, तुम ही मेरी नौका थी। महानगरों की तपिश नहीं, पहाड़ी हवा का झोंका थी। लंबे धान के खेतों में, सलीके से चलना सिखाती थी, थोड़े-थोड़े पैसों को गिनकर, मुझे दिखाती थी। मेरे स्वाभिमान के साथ, मुझे अपनाती थी। परछाई थी उसकी मै, जहां कहीं वो जाती थी। लाचार, बेबस महिला नहीं, सैनिक कुल की बेटी थी, दस भाई, बहिनों में सबसे दुलारी और चहेती थी। मुंह अंधेरे उठकर, धोती जब वो पहनती है, धोती के कोने में, एक छोटी गांठ लगाती है। चेहरा आज भी चमकता है, "संतोष" से खाती है, दांत आज भी असली हैं, कच्चे चावल चबाती है। परिचय :- मीना सामंत एम.बी...
नारी का सम्मान करो
कविता

नारी का सम्मान करो

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को बंदिशों में जकड़ी एक भोली भाली नारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! तरह-तरह के छल दुनिया में छल से छली गई जीत भरोसा उसका,छली बेंच रहे व्यापारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! नौ दिन देवी समझें फिर जुल्मों अत्याचार करें मंदिर में प्रतिबंधित देखा है भाग्य की मारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! जिसका जो भी मन सब कहकर चलते बनते हैं जब तब कड़वे ताने सुनते पाया उस संसारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! नारी का सम्मान करो,कभी नहीं अपमान करो देख रहा भगवान अत्याचार संग अत्याचारी को! समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को नारी से है देश महान,जिससे बढ़ती देश की शान आंचल में ममता,दया,पलकें अश्कों से भारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न...
मुखौटे की सजा
कविता

मुखौटे की सजा

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** अयोध्या में भव्य 'राम मन्दिर' बनने लगा है, धर्मग्रंथ"रामायण"ज़हन में ताने बाने बुनने लगा है! 'राम 'के साथ ही 'रावण'तुम भी याद आ रहे हो, क्यों? लंका मिट्टी में मिली, समझा रहे हो! इस मन्दिर से भव्य, तुम्हारी लंका रही होगी, आखिर किस 'श्राप' से, लंका तुम्हारी ढही होगी? अकूत धन था, बाहुबल था, सब तुम्हारे पास था, मंदोदरी थी, कुंभकर्ण था, मेघनाथ का 'नाग पाश'था! ज्ञान था, प्रकांड पांडित्य था, शिव वरदान था, दस सिर, नाभि में अमृत, अलौकिक विमान" था! एक ही गलती से, तुम्हारे सारे अलंकरण जल गए, "साधु का मुखौटा पहनकर, 'जानकी' जो छल गए! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक म...
ईमानदार फौजी
कहानी

ईमानदार फौजी

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** लॉक डाउन लगने से पहले भारतीय सेना में सेवारत मेरे पति नरेंद्र जी की छुट्टी मंजूर हो गई थी। वो दिल्ली हम सभी के पास आ गए थे। उनकी वापसी की तिथि भी सुनिश्चित हो चुकी थी। उनको २८ जून ड्यूटी पर बॉर्डर जाना था। लेकिन २८ जून से लगभग कुछ हफ्ते पूर्व ही उनकी तबीयत अचानक से बिगड़ गई। उनको तेज बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया। छोटी बेटी जान्हवी पापा के सिरहाने बैठे कपड़े को गीले करके पट्टी बनाकर पापा के सिर पर रख रही थी। उधर मुझे अंदर ही अंदर यह चिंता खाए जा रही थी कहीं कोई बड़ी समस्या ना हो इनके स्वास्थ्य के प्रति मेरी चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी। हमारी मदद करना हे ईश्वर। मैं परेशान थी हैरान थी। रातों की नींद मेरे आंखों से गायब थी। बुखार इनका लगातार बढ़ता जा रहा था। साथ ही साथ इनका पेट भी खराब हो गया मेरे माथे पर चिंता की लकीरें और त...
कैसी है ये जिद तुम्हारी
कविता

कैसी है ये जिद तुम्हारी

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** उम्र के इस पड़ाव पर मैं भूल गयी थी सब पढ़ा लिखा अब कैसी है ये जिद तुम्हारी कलम देकर कहते हो थोड़ा लिखकर तो दिखा! समझता नही कोई एहसासों को सोचकर यही लिख-लिखकर कभी मन के पन्नों से कभी कापी के पन्नों से कितनी बार देती हूँ मिटा! जिंदगी की उलझनों को एक उम्र न सुलझा पाई कैसी है जिद यह तुम्हारी कलम कापी देकर कहते हो कुछ तो मुझको तू सिखा! लिखे थे जो कभी मैं ने रफ कापी के पन्नों में कुछ टेड़े मेड़े शब्द भाव अपने कैसी है ये जिद तुम्हारी कहते हो उन पन्नों को अब मुझे दिखा! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां...
मेरी माँ
कविता

मेरी माँ

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** अपनी जन्म दात्री माँ को कायनात के हर एक रंग में उतरते देखा है,, गाँव की पहाडियों पे दिन का सूरज रात चांदनी की तरह गुजरते देखा है। हमारी खुशियों की खातिर ब्रम्ह मुहूर्त में पीपल को जल चढ़ाते देखा है, वो स्कूल तो नहीं गई थी कभी मगर जीवन का पाठ बच्चों को पढ़ाते देखा है। लय, तुक, ताल, सा, रे, गा, मा, का ज्ञान नहीं था बिलकुल भी मेरी जननी को, बोझिल जिंदगी के आंगन में मैंने उसे थिरकते संग सुर में सुर से गाते देखा है। माँ मेरी थी सैनिक की जीवन संगिनी रंजो गम सभी उसे छिपाते देखा है, पल्लू में ढककर दर्द सभी जीवन के आंखों से माँ को मुस्काते देखा है। तिनका-तिनका सहेज कर नीड़ बना के सफेद, लाल मिट्टी से दीवार लीपते देखा है, जंगल, खेत, खलिहान संग गृहस्थी की बगिया को पसीने से सींचते देखा है। . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्य...
जज्बात छलकते हैं
कविता

जज्बात छलकते हैं

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** जिंदा हूं खिलौना समझकर, यूँ ना हमसे खेलिए जिंदगी जो दांव लगाये, उससे क्या हिसाब कीजिए ! कड़वे घूंट पिए हों जिसने, उसको शर्बत क्या दीजिए जज्बात छलकते हैं आंखों से, शब्द जाया क्यों कीजिए! आदत हो जिद्दी आज भी, तो क्या कर लीजिए क्या पाएंगे इस झूठे खेल में, फुर्सत से जीने दीजिए! खुशी के लिए ही सही, हारकर हमसे खेलिए, सब खेल खुद जीतकर, ऐसा जुल्म ना कीजिए! बच्चे की तरह हम भी मान जाएंगे, मनाकर देखिए यकीन ना हो तो मेरी माँ से पूछ लीजिए! बड़े बनकर हंस लिए बहुत, अब ना हमको रोकिए, जमाने से डरना क्या? बच्ची बनकर खिलखिलाने दीजिए! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
माँ गाँधारी
कविता

माँ गाँधारी

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** सुनो हे गाँधारी माँ तुम से कुछ कहना चाहती हूँ, महाभारत खत्म जीवन की,खुश रहना चाहती हूँ! महाभारत सी घटना घटी है, मेरे भी इस जीवन में, जिसकी थकन अभी तक बाकी हैं मेरे तन मन में! जल्दी ही गुजरा मेरा बचपन और जवानी पूरी हुई, आधी अधूरी और एक कड़वी सी कहानी पूरी हुई! जीवन में यूँ कभी किसी के ऐसे भी दुर्दिन फिरे नहीं, किसी और का दुखड़ा किसी और हिस्से गिरे नहीं! मन की चिड़िया उड़कर देखती है मुझको चहुंओर, ऐसे लगता अंबर नाप रहा है नैनों से धरती का छोर! है जीवन का यह तृतीय चरण मेरी सेवा का मोल दो, सांसरिक मोह माया की पट्टी इन नयनों से खोल दो! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर ...
अक्षर ज्ञान
कविता

अक्षर ज्ञान

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** लेकर चल कोयल मुझे भी तू गाँव के द्ववारे, छोड़ आई जहाँ बचपन के गुड्डी गुड़िया सारे! वह सेमल का पेड़ और जमीं से उपजा पानी, चैत्र माह मिलने आती उजले रंगत वाली नानी! खेतों की मेंड़ो पर मैं चलती रहती थी तीरे-तीरे, वहीं बूढ़ी सी गौ माता चरती रहती थी धीरे धीरे! ऐसे-ऐसे दिन भी देखे जीवन की परवाह नहीं है, अनगिन पीड़ा दबी हृदयतल में पर आह नही है! पता नहीं था अक्षर ज्ञान इतना बेबस कर देगा, ऊंची उड़ान की लालसा, बंद पिजरे में भर देगा! सबको सब वहीं जो मिलता होता न अलगाव, यूँ कोई दौड़ा शहर ना आता सबको भाता गाँव! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
कोयल
कविता

कोयल

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** सुबह-सुबह ही कोयल क्यों जगा रही हो? सो रहा है जहाँ तुम मीठी तान सुना रही हो! आठों पहर आजकल यूँ कुहुकने लगी हो माँ के आंगन की याद सी चहकने लगी हो! अब मेरी खामोशियों में मुझे अश्रु बहाने दे अपनों की यादों के सावन में मुझको नहाने दे! खूबसूरत लम्हों को कुछ पल मुझको जीने दे, हो रही है चाय ठंडी अब तो मुझको पीने दे! मैं लेकर बैठूंगी जब भी अपनी कलम दवात, लिख डालूंगी अपने सभी अनकहे जज्बात! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीज...
मीरा
कविता

मीरा

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** वो छोटी सी मीरा, वो न्यारी सी मीरा जग की दुलारी, माँ की प्यारी सी मीरा! वंशीधर के प्रीत में उलझी सी मीरा जीवन के रहस्यों से सुलझी सी मीरा! सत्य पथ से कभी ना भागी थी मीरा विघ्नों में भी धैर्य ना त्यागी थी मीरा! बेरहम वक़्त की ठेस, सहती थी मीरा रोती भले पर ना कुछ कहती थी मीरा! ना मिले मोहन तो स्वयं छल गई मीरा कृष्ण भक्ति में ही देखो ढल गई मीरा! हंसकर हलाहल विषों का, पी गई मीरा राणा ने ढाए जुल्म फिर भी जी गई मीरा! निज उर की वेदना भी छिपाती थी मीरा आठो पहर कान्हा-कान्हा गाती थी मीरा! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...