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Tag: मालती खलतकर

हरियाली
कविता

हरियाली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अस्त हुआ रवि अंबर मे ढल आई है शाम चलो-चलो रे कि वृदंवो अपनी-अपनी धाम धीर धीर घटा घनघोर आए अमर अवनी के भूतल में हरी-हरी हरियाली छाई वसुंधरा के अंतर तल में गाओ गाओ खग वृदो गाओ तुम गान करने स्वागत वर्षा ऋतु का मधुर गाओ पणो पुष्पो हर क्षण अवनी निखरी पाकर जल कण परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
ख्याल रखना
हिन्दी शायरी

ख्याल रखना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** किस्मत कहिए अपनी कि रास्ता साथनिभा रहा है होते हुए हम सफर भी फिर भी अकेला जा रहा हूं प्यार की सौगात बड़े मुश्किल से मिलती है जिंदगी प्रेम बिना मुश्किल से कटती हैं यारों की याद आते ही कहर बरपाती है तन्हाई बहारे आते-आते तनहाई में तब्दील हो जाती है जिंदगी के चंद् लम्हों को याद रखना ख्वाबों के दरख्तो पर ना जाना है दोस्त जमी पर खाके सुपुर्द का ख्याल रखना ख्याल रखना कि हम सब इंसान हैं खुदा के बंदों का ख्याल रखना परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों...
वक्त
कविता

वक्त

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त चलता है दौड़ता है भागता है पर वक्त की परछाई तनहाई नहीं होती क्योंकि तनहाई में वक्त डरावना लगता है सदा मुस्कुराता हुआ आगे निकल जाता है कोई पकड़ पाता है और कोई नहीं पकड़ पाता इस वक्त हंसता हुआ आगे निकल जाता है पर वक्त तंहा नहीं होता कहीं करुणा रस बरसाता कहीं विभत्स तो कहीं आज आश्चर्य तो कहीं वक्त वीर रस में नहाया। मन दौड़ता है मनु को पीछे छोड़ने के लिए। परंतु विवेकी वक्त का मूल्य समझ ने वाले समय को अपनी मुट्ठी में बंद कर नीत नए अनवेषण कर आगे बढ़ता है वह वक्त को पकड़ने का प्रयास करता है की फिर कुछ नया कर सके तंहा ही वक्त का मुंह चिढ़ाती है सरिता सार के किनारे का वक्त भागते मैं गुनगुनाते हुए दुखी मन को आश्वस्त करता है वक्त कब रात की काली चादर होता है पता नहीं चल पाता दौड़ो भागो वक्त के ...
जीवन प्रांगण
कविता

जीवन प्रांगण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर बहुत दूर है राहेैं अपनी मंजिल का पता ना अपनों का। सिर्फ साथ है मेरे वीरांनगी खयालों के बिंदु बहे जा रहे तुम्हारे पास चले आ रहे मचल रहा मन कुछ गाने के लिए साथ आकाश है गीत सुनने के लिए चलते हुए राहों में रवि साथ निभाता है और राह में पड़ा पत्थर ठोकर से टकराता है सुनसान घाटियों की ढलती मिट्टी कहती है ढलती-ढलती-ढलती, चल ढलती चल क्योंकि राह बडी वीरान है मेरे जीवन में प्रांगण की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आका...
अन्वेषण
कविता

अन्वेषण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर वृक्ष चुपचाप है सुना है शहर का कोना कोना सहमी-सहमी सड़क सुनसान हर पाखी है सहमा-सहमा किरण में सूरज की होते हैं नितघात यहां स्वार्थ यहां चढ़ बोलता है फुनगीपर बैठे पक्षी सा। मटिया ले पानी सा जीवन रुकता कराहता निढाल हो आगे बढ़ता आगे करने अनवेषण सतपथ का सत चरित्र सतपथ का सज्जनता का पर, पर नहीं कर पाता फलो के अंदर की सडान्ध का अन्वेषण नहीं कर पाता नहीं कर पाता ऊंची आवाज क्योकि फुनंगी पर बैठे पक्षी की आवाज उसे कहीं अधिक ऊंची है बहुत ऊंची.... परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा...
उपकार
कविता

उपकार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घट-घट मिलता प्रेम तुम्हारा सुखा नुभव के साथ कैसे भूलू कैसे त्यागु मां तेरा उपकार उदर दरी से आया मैं तो अंधकूप का वासी जन्म प्राप्त कर मैंने पाई तेरे प्रकाश की लाली ममता मोह की मूर्ति माता देखिए दिव्य दृष्टि भी प्रेम स्नेह की अविरल धारा मैंने बहती देखी स्नेहा त्याग की प्रतिमा देखी माता के इन दृगोमे आओ रक्षा मां की शांति देखी माता के इन दृगोमे रूप कठोर भी तेरा देखा और सही झिड़कियां भी उन्हें में पाई माता मैने जीवन की चिंगारियां कैसे भूलू कैसे त्यागु मां तेरा उपकार परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निम...
पड़ाव
कविता

पड़ाव

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उठ गए पड़ाव छीन गई छाया जैन से ना कोई आया ना कोई गया धूप, धूप पड़ती है हरदम पड़ती रहे धो कन्नी चलती है चलती रहे हरदम गरम मौसम गर्म रेत गरम गाड़ियों के द्वार आया कोई चला गया कोई उठ गया किसी पड़ाव में जिंदगी का पडाव छोड़ गए माटी कोई जन परिजन की आ गया लेकर कोई खुशी न येजीवन की हर पलाश हर दूब का तिनका परिचित है इनके शौर्य श्वेद रिस गया इनका कण-कण माटी में रिसे रिसे पसीने ने फिरकी गुहार बिछ गए पड़ावछनक गई चूडियां झनक उठी झांझरे मुकुल भी महक उठा हर कोई थिरक रहा मालव की माटी पर परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेव...
अकेला हूं मैं
कविता

अकेला हूं मैं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सांसों का सिलसिला हूं मैं माया के झंझा बातों में सांसो की आवाजाही में माटी का पुतला हूं मैं पल-पल आघात होता दिल पर कहने को कारवां है कहां तक साथ चले कोई पत्ते उलीचती पगडंडी पर अकेला हूं मैं पल में पथिक पीछे था जाने कहां खो गया उस साथी की छाया में अकेला हूं मैं रविचंद्र भी कभी साथ नहीं चलते इसी तरह विधि के बंधन में बंधा हूं मैं माटी का पुतला हूं मैं परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व व...
फागुन आया
गीत

फागुन आया

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे आंगन-आंगन बजी बधाई देहरी पहने पायल रे, पायल रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे यौवन सजे सजे हर द्वारें पायल नूपुर बाजे रे गेहू वाली लेकर आती खनखन करती करती चूड़ियां रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे रंगा गुलाल संघ मचल रही है हरि पीली आंचल चांदनी ताल-ताल पर नाच रही है मेरे मन की रागिनी रवि किरणे भी घोल रही है सतरंगी केसरिया रंग रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे टेसु-टेसु रंग केसरिया पाखी-पाखी झूम मेरे घर आंगन में सजी सावरी ढाणी चुनरिया ओढेरे पीली-पीली सरसों पर मान मतवाला डोले रे फागुन आया होली आई बोल बजाओ मांडल रे प्रातः संध्या अवनी अंबर अभी राकेश एरिया खेले रे आज नहीं है देव्श कहीं भी अनुराग मानव भरे रे फागुन फाग सजे मतवाले मत वालों की टोली रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मादल रे ...
पेड़ की पीड़ा
लघुकथा

पेड़ की पीड़ा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर ८ दिन बाद मेरा जीप द्वारा उधर से निकलना होता था। सड़क कच्ची और पथरीली थी सड़क की दूसरी ओर घना जंगल था वहां हमेशा सन्नाटा पसरा रहता था। एक बार मै उधर से गुजर रही थी तो कुछ टकराने की आवाज सुनाई दी मैंने वाहन चालक से पूछा तुम्हें भी कुछ सुनाई दे रहा है, वह बोला हां कुछ ठोकने की आवाज आ रही है दूर से देखा कोई एक पेड़ को काट रहा था, पेड़ पर पड़ते आघात मेरे मन को आहत कर रहे थे। आंसू बहाता आकाश पत्नी धरती से कह रहा था... देख रही हो तुम्हारे द्वारा भेजा गया संदेश लेकर वह मेरे पास आ रहा था ऊपर उठ रहा था। की वह मुझे संदेश सुना सके, देखो कैसे उसे ऊपर चढ़ते चढ़ते नीचे गिरा दिया फिर से तुम्हारी गोद में सारे पत्ते झर गए कभी ना लगने के लिए वह अडीग छाया देने के लिए फल देने के लिए और वर्ष वर्षा करने में सहायक था, पर अब ऐसा नहीं होगा। अगर बदली बरस जा...
समाज की धुरी
कविता

समाज की धुरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह झुकती है हरदम झुकती है कहीं कचरा विनती कहीं गोबर व टोरती कहीं लकड़ी छिलती कहीं लकड़ी उठाती कहीं घन चलाती कहीं शिशु पीठ पर बांध थी वह झुकती है तो सभी उसे और झुकाने अवसर ढूंढते हैं वह झुकती है क्योंकि वह नारी है उसे संज्ञा अबला की है वह अक्सर दिखती आंखों में आंसू लिए आंचल में शिशू ढाके सिर पर बोझ लिए वह जाती दिखाई देती है खेतों नदियों किनारे पगडंडी पर शराबियों से खुद को बचाती वह झुकती है झूला झूलते टोकनी उठाते उपले थापती वह झुकती कमान कि तरह ऊपर उठ पुनः तार-तार होने के लिए पुनः धरा पर जाने की हिम्मत जुटाने के लिए वह है झुकती है समाज परिवार के लिए क्योंकि वह जानती है वह झुकेगी तो परिवार समाज झुकेगा सुदृढ बनेगा कहीं सहारा कंधे का कहीं लकड़ी का कहीं चौखट पर चंडी बनकर खड़ी मैंने उसे देखा है आंखों में डर लिए अपने आप को छुपाते हुए दीवार दी...
नारी शक्ति
लघुकथा

नारी शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सुबह सवेरे बड़ा सा झोला लेकर निकल पड़ती है, बिना सन्देह के एक लक्ष्य लेकर कि आज दो-तीन किलो प्लास्टिक का कचरा मिल जावेगा तो पीहर आई बेटी को भरपेट खाना खिला सकूंगी। इसी उधेड़बुन में वह इस प्लाट से उस प्लाट तक कचरा खोजती हुई आगे बढ़ गई विचार मन में चालू थी कि अचानक पीछे से आवाज आई... इधर आओ वह घबरा गई पीछे मुड़कर देखा एक व्यक्ति खड़ा उसे आवाज लगा रहा था वह धीरे-धीरे पास गई वह बोला मैं सफाई कर्मचारी का अधिकारी हूं क्या तुम रोज कचरे के ढेर से पन्नी अलग छांटने का काम करोगी.... ४ घंटे काम करना होगा और तुम्हें ६० रु. मिलेंगे मंजूर हो तो मेरे साथ ऑफिस में चलकर नाम लिखवा दो। उसने मन में सोचा इतने पैसे से तो मैं अपने शराबी पति का इलाज भी अच्छी तरह से करा सकूंगी और बेटी को पेट भर खाना भी नसीब होगा यह सोच वह उस व्यक्ति के साथ आफीस गई और अपना न...
विडंबना
लघुकथा

विडंबना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिसंबर की कड़ाके की ठंड में वह अपने फटे कंबल से शरीर को ढकने की कोशिश करता हुआ सड़क के किनारे बैठा था। सड़क की दूसरी ओर एक चाय की गुमटी पर बहुत सारे लोग अपने शरीर को गरम करने के लिए चाय की चुस्कियां ले रहे थे, उसे लगा कोई उसे भी एक प्याला चाय पिला दे इस आशा से वह गुमटी पर खड़े लोगों की ओर तथा चाय की पत्ती ली से निकलती भाप की ओर अपलक देख रहा था कि कोई उसकी और देखें परंतु सब अपने मैं व्यस्त थे। किसी की नजर उस पर नहीं पढ़ रही थी, वह इसी आशा से बार-बार उधर देख रहा था की कोई तो देखें उसे परंतु किसी को उसकी ओर देखने की फुर्सत नहीं थी, सब अपने मैं मस्त हो चाय की चुस्की ले रहे थे, यह कैसी मानव की विडंबना है या उसकी नियति यह सब समझ से परे है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप...
गांधी
कविता

गांधी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीड़ फिर भी एक अकेला एक कारवां फिर भी एक अकेला एक आदर्श एक अकेला अहिंसा के लिए संघर्ष अकेला। वैष्णव भजन वह काहे अकेला बने कारवां चले अकेला अनशन कारी बने अकेला एक भजन वह गावेअकेला एकवसन वो पहने अकेला जगमे कुछ जी या नहीं पहचान अपनी दी नहीं हरिजन का उद्धारक अकेला अठारह घंटे काम अकेला प्रार्थना के लिए चल अकेला समूह साथ फिर भी अकेला किंतु कॉल कहां से आया हे राम वह कहे अकेला राष्ट्रपिता कहलायाहै गोरों ने शिल्प लगाया है। है आदर्श बना अकेला भारत के लिए चल अकेला। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पी...