पांडे की प्राण
मानाराम राठौड़
जालौर (राजस्थान)
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वह भावना शौर्य की
जो पहले गई, ना रही
राष्ट्र प्रेम और
आजादी की स्मृति,
नयनाभिराम घटना
देखने को आंखें तरसती,
कहीं हाड़ी रानी का
सिर कटा,
वह रानी लक्ष्मी गई,
फिर भी इस देश की
मेहमानी रही,
सन् सत्तावन का संवत्सर,
खीज गए सेनानी,
पांडे की उग्रता चली,
लेफ्टिनेंट की प्राण गई,
पहचान रही चिरस्थाई
पांडे ने भी प्राण गंवाई,
स्वर गूंजा किसानों का,
ब्रिटिश का राज हिला,
जुड़े गुजराती गांधी,
भारत में लाई नई आंधी,
अंग्रेजों से लिया लोहा,
न था उसमें वज़न,
कौड़ी भाव बिका दिया,
जनता ने बनाई तलवार,
शीश काटे उग्रवादी,
उन पर भारी वार,
सब बन गए देश के
महान पहरेदार,
जगह-जगह
खेली खून की होली,
अंत समय में टूट गई
ब्रिटिश राज की झोली,
छोड़ निंदिया
जाग उठे हिंदुस्तानी,
भागने को विवश ब्रिस्टानी।।
कुछ सीखना है,
इस कलम से सीखो।
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