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Tag: ममता रथ

आदमी
कविता

आदमी

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** खुद तमाशा आजकल बनने लगा है आदमी खुद की परछाइयों से अब डरने लगा है आदमी टुकड़े कर रहे हैं हम धर्म और भाषा की इसलिए नफरतों की भीड़ में चलने लगा है आदमी सारी खुशियां पास है अपने फिर भी कस्तूरी की तलाश में भटक रहा है आदमी घर परिवार संगी साथी सब छोड़ कर पैसों के पीछे भाग रहा है आदमी आज स्वार्थ की खातिर अपनो को मार रहा है आदमी क्या आदमखोर हो गया है आदमी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार ...
मोहब्बत
कविता

मोहब्बत

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** श्रद्धा का दूसरा नाम है मोहब्बत दो दिलों का पावन एहसास है मोहब्बत किसी के दर्द से किसी का रोम-रोम कांपने लगे उसी चाहत का नाम है मोहब्बत जिसको हृदय दुआओं में मांगे रब से उसी इबादत का नाम है मोहब्बत जिसकों आँखों में छुपाकर रखा जाए उसी ख्वाब का नाम है मोहब्बत जो नफ़रत की गर्म धूप से बचाए उसी प्यार की छाँव का नाम है मोहब्बत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?
आलेख

मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************                             मां तो वो होती है जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है, जो कभी नहीं रूठती, रूठती भी है तो तुरंत मान जाती है। मां की बातें हमेशा इतनी एक सी होती है कि लगभग रट चुकी होती है। खाना ठीक से खाओ, क्या हुआ क्यों नहीं खा रहे, तबीयत ठीक नहीं है क्या, कहां जा रहे, किसके साथ जा रहे, कब आवोगे, शाम को जल्दी आ जाना, दोस्तों के फोन नंबर देते जाओ, गाड़ी धीरे चलाना, जल्दी सो-जल्दी उठो, कपड़े ढ़ंग से पहनो, बाल दाढ़ी कटवा लो, बाहर का खाना ज्यादा मत खाओ, अच्छे दोस्त बनावो, उफ़!!! इस सूची का कोई अंत नहीं। इन सारी हिदायतों के लगातार प्रसारण से हम मां को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। ये सारी बातें मां के सामने तो बुरी लगती है, पर जब हम अकेले होते हैं यहीं बातें बहुत याद आती है। हमें अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम मां की बातों को गंभीरता से नह...
फिजुल ख़र्च
लघुकथा

फिजुल ख़र्च

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मां- "बेटा पंडित जी को ५०० रु. देना, तुम्हारे नाम से ज्योत जला देंगे।" दीपक पंडित जी को ५०० रु. बेमन से दे देता है। पंडित जी के जाने के बाद दीपक मां से- ये क्या मां आजकल तुम बहुत फिजुल ख़र्च करने लगी हो, कभी यहां दान करो, कभी गौशाला के लिए चारा दे आओ, कभी पंडित जी को दान, हर साल आज के दिन मंदिर में ज्योत जलाना, ये सब क्या है मां बहुत खर्च हो रहा है कुछ कम करो।" ऐसा कहकर दीपक चला गया, मां ने कुछ नहीं कहा, ऐसे भी मां कहां कुछ कहती हैं, फिर आज तो दीपक का जन्म दिन है। रात होते तक घर में दीपक के दोस्तों की महफ़िल सज़ चुकी थी, जहां महंगें शराब का दौर चल रहा था। जुए पर दांव भी लगाएं जा रहें थे, भले ही शौक के लिए खेला जा रहा था पर सब खेल रहे थे। मां अपने कमरे में बैठकर सोच रही थी कि फिजुल ख़र्च कहां हो रहा है। परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूष...
बड़ा भिखारी
लघुकथा

बड़ा भिखारी

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************   नवरात्रि का समय था, सभी देवी मंदिरों में काफी भीड़ लगी हुई थी। आज मंदिर में सभी वर्गों के लोग देवी को प्रसन्न करने में लगे थे।एक सेठ भी अपने परिवार सहित दर्शन करने आए थे। सेठजी पूजा करके अपनी कार की तरफ जाने लगे, तभी एक भिखारी उनसे टकरा गया। सेठजी गुस्सा होकर चिल्लाने लगे, इस पवित्र जगह पर इन मैले-कुचले कपड़ों में घूमते भिखारियों का क्या काम है, पता नहीं ये लोग यहां कहां से आ जाते हैं। "भिखारी बहुत दुखी हुआ। पास में ही भिखारी का अपाहिज बेटा बैठा था, उसने हाथ जोड़कर सेठ से कहा-" सेठजी ये देवी का मंदिर है यहां छोटा बड़ा कोई नहीं होता, फिर भी आप ऐसा सोचते है तो आप ही बताइए कि यहां आप जैसे लखपति लोग देवी के सामने करोड़पति होने की भीख मांगते हैं, वे बड़े भिखारी हुए या हम जैसे अपाहिज, जो सिर्फ दो वक्त की रोटी ही यहां मांगने आते हैं वे बड़े भिखा...
होली कैसे मनाएं
कविता

होली कैसे मनाएं

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** रेत के कच्चे घरों की ढह गई संवेदनाएं इन तनावों के नगर में होली कैसे मनाएं सारे संबंध अब तो स्वप्न जैसे हो गये देह मिट्टी का खिलौना सोच पैसे हो गये रक्त सारा हृदय का कच्चे रंगों सा धुल गया झूठे आश्वासनों का रंग देखो सब पर चढ़ गया भावनाएं बर्फ़ की चट्टान जैसी जम गई और सारी सोच निश्चित दायरे में थम गई चारों ओर सन्नाटा, चारों ओर खौफ है इन तनावों के साथ हम होली कैसे मनाएं? परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
चलो महिला दिवस मनाते हैं
कविता

चलो महिला दिवस मनाते हैं

ममता रथ रायपुर ******************** प्रतिवर्ष की भांति चलो फिर से महिला दिवस मनाते हैं नारी सशक्तिकरण के नारों से वसुंधरा को फिर से गुंजायमान करते हैं चलो एक बार फिर से संगोष्ठी, परिचर्चाओं में नारी को सम्मान देते हैं वेदों, पुराणों ग्रंथों में जो नारी है चलो आज फिर से उसका गुणगान करते हैं चलो महिला दिवस मनाते हैं यह रंग बदलती दुनिया है यहां सब अपने रंग दिखाते हैं कुछ दिनों नारी का सम्मान कर फिर वहशी, दरिंदें बन जाते हैं महिला दिवस पर जो समाज की वशिष्ठ महिला का सम्मान करते हैं वहीं फिर अपने घर की बेटी, बहन, मां, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, और फिर महिला दिवस मनाते हैं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली...
हस्ती
कविता

हस्ती

ममता रथ रायपुर ******************** ये सच है कि मेरी कोई हस्ती नही है पर जो भी है वह कागज़ की कश्ती नही है जिसे कोई बहा दे बरसाती नाले में या फेंक दे कोई कूड़े दान में मेरी हस्ती कोई मिट्टी की मूरत भी नहीं जिसे कुछ दिनो तक पूज कर फिर पानी मे पवाहित कर दिया जाए मेरी हस्ती किसी के हाथ की कठपुतली भी नहीं जिसे जो चाहे अपने ही इशारे पर नचाते रहे और अंत मे डोर को कस दे सच तो ये है कि मै जो हूँ मुझे वैसा ही स्वीकारा जाए और उसे प्यार और विश्वास से सीचा जाए हाँ तभी होगा मुझे गर्व अपनी प्यारी सी हस्ती पर परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाश...
मै आदत से लाचार हूँ
कविता

मै आदत से लाचार हूँ

ममता रथ रायपुर ******************** बहुत कोशिश करती हूँ जमाने के साथ चलने की दिखावे की चादर ओढ़ने की पर क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ खुद मे बदलाव करने की बड़ी - बड़ी बातें करने की छोटो को नजर अंदाज करने की मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ सिर्फ अपनी तारीफ करूँ किसी के दुख मे खुश होऊँ किसी की परवाह किए बगैर खुद मे ही व्यस्त रहूँ मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ सब जगह दिखावे का दान करूँ फायदे देखकर बात करूँ अपने कर्तव्यों को भूलकर सिर्फ वाहवाही के लिए काम करूँ मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्...
आँसू
कविता

आँसू

ममता रथ रायपुर ******************** बड़े मासूम से होते है आँसू मेरे दोस्त दिखते है मोतियो से पर पानी से होते है दुख हो या सुख, भावनाओं के रूप मे बहते है कह जाते है वो भी जो बातें अनकहे होते है जीवन के सूनेपन मे ये दोस्त बन जाते है आँखों से ये पतझड़ के पत्तों के तरह गिरते है आँसू की बरखा मे जो भीगते है वही जीवन का मधुर गीत सीख पाते है बहुत तकलीफ देते है वो जख्म जो बिना कसूर के मिलते है परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
बसंत
कविता

बसंत

ममता रथ रायपुर ******************** नव जीवन का उपहार है बसंत भंवरे और कलियों की पुकार है बसंत धरती सजी है सरसों की पीली चादर ओढ़कर प्रकृति का यही श्रृंगार है बसंत कोयल की आवाज गूँज रही है वन में उसे सुन मन मे उठी झंकार है बसंत चारों ओर आम बौराया हुआ है महुआ की मादकता का नाम है बसंत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

ममता रथ रायपुर ******************** जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी कभी तारों सा चमकेगी कभी बूंदों सा बरस जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी मुसकुराहट बनकर आएगी कभी सुख -चैन चुरा ले जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हवा सी लहराएगी कभी तुफान सा बवंडर मचाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
कब तक बेचारी कहलाओगी?
कविता

कब तक बेचारी कहलाओगी?

ममता रथ रायपुर ******************** कोई खींचेगा वस्त्र तुम्हारा कोई तुम पर मर्दानगी दिखाएगा बलात्कार, हत्या से अब तुम ही खुद को बचाओगी शस्त्र कब तक ना उठाओगी? यह कलयुग है सतयुग नही यहां शील बचाने कोई आएगा नहीं इन दु:शासन से बचने को अब कब तक ना शस्त्र उठाओगी आदमी के खाल में घुम रहे हैं भेड़िए स्नेह की आस किससे लगाओगी अब खुद को कितना सताओगी आखिर कब तक बेचारी कहलाओगी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
रेशम की डोर
कविता

रेशम की डोर

ममता रथ रायपुर ******************** रेशम की इक डोर ने मुझको खींचा अपने बचपन में कभी झगड़ते कभी मस्ती और खेला करते थे संग संग में दिन बीते , मौसम बदले वक़्त की भी उम्र बढ़ी सीखी हमने भी धीरे से जीवन की बारहखड़ी । कितने रिश्ते-नाते हमने निभाए प्यार से भाई-बहन सा नहीं है रिश्ता इस संसार में इसलिए याद आती है बचपन की धमाचौकड़ी काश हमने ना सीखी होती जीवन की बारहखड़ी ! परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
पिता
संस्मरण

पिता

ममता रथ रायपुर ******************** हम सभी ने नारियल देखा है, ऊपर से सख्त पर अंदर से नरम और मुलायम, एक पिता भी ऐसे ही होते हैं, ऊपर से सख्त और कठोर पर अंदर से नरम। ज्यादातर हम मां के बारे में ही लिखते हैं पर पिता के बारे में लिखना भूल जाते हैं। पिता के द्वारा अपने परिवार, रिश्तेदार और समाज के लिए किया गया संघर्ष कोई नहीं जानता। हर दुख और कठिनाई को सहकर भी हमें खुश रखने की कोशिश करते हैं वो पिता ही होते हैं। ‌‌पिता का ह्रदय बहुत बड़ा होता है वह हर गलती को सरलता से माफ कर देते हैं। मां की लोरी सुनकर हम बड़े होते है और जीवन की कठोर राह में अपने ऊंगली पकड़कर चलाने वाले पिता ही होते हैं। वो पिता ही होते हैं जो जिंदगी की ठोकर लगने पर दर्द को सहना सिखाते हैं। पिता जीवन भर अपनी सारी इच्छाओं को मारकर हमारे उज्जवल भविष्य के लिए संघर्ष करते रहते हैं। मां का आंचल अगर ठंडी छांव हमे देती है तो उस आं...
नारी
कविता

नारी

ममता रथ रायपुर ******************** नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं भीतर आवाज बहुत है पर बोलती कुछ भी नहीं चाहतें तो बहुत है तेरी पर उम्मीद किसी से करती नहीं चाहे कितने भी दर्द हो दिल में पर दूसरों के सामने अपना दर्द कहती नहीं नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
आधुनिकता
लघुकथा

आधुनिकता

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** सीमा का मन आज बहुत उदास है, पति राजेश के बार-बार समझाने पर भी वो समझ नही रही की उसकी इकलौती बेटी उसे तुक्ष्छ मानती है । आज सीमा की बेटी मिताली के दोस्त घर आए थे। सीमा के व्यवस्थित घर व खाने की सभी ने खूब तारीफ की, सीमा ने भी कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी ,पर बात जब अंग्रेजी भाषा बोलने की आई तो सीमा मात खा गई। दोस्तों के जाते ही मिताली मां पर बरस पड़ी, पता नहीं आज के ज़माने में आप जैसे पिछड़े लोग कहा से आ गए हैं, मेरे दोस्त क्या सोच रहे होंगे। मन्नतो के बाद मिली बेटी पर नये जमाने का रंग चढ़ गया था। रात कटनी थी कट गई। मिताली अपने विश्वविद्यालय जल्दी चली गईं, सीमा भी काम में व्यस्त हो गई। मीताली कल की बात से दुखी हो सभी से नजरें चुरा रही थी। आज विश्वविद्यालय में बहुत भीड़ थी, आज कवि सम्मेलन था। सभी मंच के पास पहुंच गए। मंच पर अपनी मां को देख कर मिताल...
कर्ज प्यार का
कविता

कर्ज प्यार का

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** सूरज की किरणें आई तो फूलों की पंखुड़ियों को खोला धरती का रस पी फूलों ने ये बोला कर्ज तुम्हारे स्नेह का वापिस किस्तों में देंगे हम खुशबु से अपने इस गुलशन को महकाते रहेंगे हम धीरे से मुस्कुरा कर धरती बोली बेटे बहुत बड़ी बात कही तेरी इसी सोच ने कर्ज प्यार का चुका दिया सभी तेरे ही कारण तो मुझे मिलता है रंग बिरंगे लिबास सभी   परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
भीड़
कविता

भीड़

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** मैं नहीं बनना चाहती उस भीड़ का हिस्सा जिसकी कोई मंजिल नहीं कोई गंतव्य नहीं भीड़ का हिस्सा बन मैं गूंगी बहरी अंधी और लंगड़ी नहीं बनना चाहती आज इसी भीड़ में शामिल हो हम मानवीय संवेदना को भूल गए हैं सिर्फ अपने स्वार्थ में जी रहे हैं इन सभी से दूर मैं पक्षियों की तरह स्वतंत्र हो उड़ना चाहती हूं इसलिए नहीं बनना चाहती भीड़ का हिस्सा   परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ह...