चंचल लहरें
मनोरमा जोशी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मचल उठे चंचल,
लहरों के साथ कगारे।
माझी के अधरों ने,
नूतन गान सँवारे।
ज्वार उठा सागर में,
अनगिन घन मँडरायें।
लहर लहर सागर में,
ताँडव नृत्य दिखाये।
घिर घिर कर आता,
अम्बर में घोर अंधेरा,
ज्वार उठा सागर में,
मांझी दूर सवेरा।
भीषण लहरों पर,
तिरती आशा की कश्ती।
कर में मांझी ने ली,
बाँध प्रलय की मस्ती।
गर्जन तर्जन में माँझी,
मंजिल रहा निहारें।
माँझी के अधरों ने,
नूतन गान सँवारे।
बिन्दु बिन्दु ने आज,
सिंन्धु में विष फैलाया,
करना है विषपान,
सोच माँझी मुस्काया।
देख प्रलय ने अपनी,
भाषा में कुछ बोला,
सुन माँझी ने अपने,
मन में साहस तोला।
प्रलय तुम्हारी लहरें,
तट धरती के सारे।
माँझी के अधरों ने,
नूतन गान संवारे।
परिचय :- श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्...