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स्पर्श में संवाद
कविता

स्पर्श में संवाद

मनीषा श्रीवास्तव प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) ******************** हाथ हमारे सख्त भले हों, पर मन है अतिशय सुकुमार। कोमल सा स्पर्श तुम्हारा, मेरी खुशियों का भंडार। तेरा पिता अतुल अनुगामी, तुम हो श्रवण का आशीर्वाद। दादा-पोते की पीढ़ी अब, हाथ पकड़ करते संवाद। जीवन का आरंभ है तेरा, अभी तो तुम हो अनुभव शून्य। पर इस नैसर्गिकता ने, कर दिया है मुझको अनुभव पूर्ण। कुमकुम जैसी लाल हथेली, बता रही तुम हो विद्वान। तेरे इस बूढ़े दादा को, अभी से तुझपर है अभिमान। काम जो पूरा न कर पाऊं, तुम करना मेरे उपरांत। सदा सत्य की राह पे चलना, रखना अपने मन को शांत।। छोटों को स्नेह जताना, बड़ों का करना तुम सम्मान। बस! इतना ही कहना मुझको, अब मैं करता हूँ प्रस्थान। नहीं है दादू हाथ सख्त, मैं कर लूँगा स्पर्श अभ्यास। पापा का श्रवण बनूं मैं, बना रहे घर का विन्यास। दीदी तुम संग खेली जितना, मैं भी खेलूं ...