Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: मनीषा शर्मा

तू सब कुछ जानता है
कविता

तू सब कुछ जानता है

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** कहते हैं तू सब कुछ जानता है। पर क्या मेरे मन की पहचानता है।। कहते हैं तु सब जगह साथ साथ है। तो क्या तू मेरे भी आस-पास है ।। कहते हैं तुझे तो सबकी ही फिक्र है। पर क्या तेरे यहां मेरे दर्द का भी जिक्र है।। कहते हैं सब कुछ तेरी मर्जी से होता है। यह तो बता अच्छा इंसान ही क्यों रोता है।। कहते है तू ही तो बेसहारो का सहारा है। तो क्या मेरी कश्ती का भी तू किनारा है।। इन सब सवालों का जवाब सिर्फ आस है। जैसा भी है जो भी है मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है।। परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म : २८/८/१९८२ शिक्षा : बी.कॉम., एम. ऐ. लेखन शुरुआत वर्ष : लेखन में रुचि बचपन से है लेखन विधा : कविता ,व्यंग्य ,कहानी समसामयिक लेखन। व्यवसाय : आकाशवाणी केंद्र इंदौर उद्घोषक निवासी : इंदौर म.प्र. घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
सावन ना बरसा
कविता

सावन ना बरसा

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** मेरा ये बावरा मन पिया मिलन को तरसा सखी अब के बरस भी सावन ना बरसा छाते रहे यादों के बादल तो बहुत बादलों को देख मन घड़ी भर हर्षा सखी अब के बरस भी सावन ना बरसा बरस भर किया था सावन का इंतजार पल-पल बीता ऐसे जैसे कोई अरसा सखी अब के बरस भी सावन ना बरसा बीता जाए सावन नाआए बैरी पिया लागे मोहे अब तो कुछ- कुछ डर सा सखी अब के बरस भी सावन ना बरसा बहुत संभाला था मैंने खुद को मगर छलक ही गया दो नैयनन का कलसा सखी अब के बरस भी सावन ना बरसा परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म : २८/८/१९८२ शिक्षा : बी.कॉम., एम. ऐ. लेखन शुरुआत वर्ष : लेखन में रुचि बचपन से है लेखन विधा : कविता ,व्यंग्य ,कहानी समसामयिक लेखन। व्यवसाय : आकाशवाणी केंद्र इंदौर उद्घोषक निवासी : इंदौर म.प्र. घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
मेरी मां
कविता

मेरी मां

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** बदल देती सारे बिगड़े हालात है मेरी मां थोड़ी सीधी साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां रखती है हिसाब किताब घर का वह सारा पर भूल जाती है गिनती जब रोटी परोसती है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां डांटती है खूब झगड़ती भी है मुझसे पर रूठ जाऊं तो मनाती प्यार से है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां चाहक उठता है घर का हर एक कोना जब चूड़ी पायल छनकाती है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां बिन उसके बेजान है सारा घर परिवार मेरे इस छोटे से घर की जान है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां अस्त व्यस्त है साड़ी और बिखरे से है बाल फिर भी दुनिया में सबसे खूबसूरत है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां अन्न के दाने दाने में स्वाद भर देती कभी दुर्गा तो कभी अन्नपूर्णा बन जाती है मेरी मां थो...
बचपन
लघुकथा

बचपन

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** आज अचानक बहुत सालों बाद एक सहेली से बात हुई। बात क्या हुई, समझ लीजिए बचपन से मुलाकात हुई। वह बेफिक्रा बचपन ना जाने कहां खो गया। जिसमें ना कोई दुख था, ना परेशानी थी, ना जिम्मेदारी, न कड़वाहट थी। सभी तो अपने थे। वह गांव की गलियां जहां निडर होकर दिन रात घूमा करते थे। गांव में एक मंदिर था। जिसके हाल में गर्मियों की दोपहरे गुजरा करती थी। गांव के सभी लोग बच्चों से प्यार करते थे। गलतियां करने पर डांट भी देते थे। पर जब डांट पड़ती तो सोचते हम कब बड़े होंगे। जब हम बड़े होंगे तो कोई हमें नहीं डांटेगा। हमारे पास पैसे होंगे। हम कहीं भी अकेले घूमने चले जाएंगे। अपनी मर्जी के मालिक हो जाएंगे। जो चाहेंगे वही करेंगे। ना कोई रोकने वाला होगा ना कोई टोकने वाला। किंतु तब कहां पता था, कि बड़े होना क्या होता है? जैसे-जैसे हम बड़े होते गए वैसे वैसे हमारी छोटी-छोटी पर...
स्नेह भोज
लघुकथा

स्नेह भोज

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** स्नेह भोज बस नाम ही रह गया है। वर्तमान में विवाह आदि समारोह में होने वाले भोज को स्नेह भोज तो कदापि नहीं कह सकते। हाल ही में हुए ऐसे ही एक आयोजन में मेरा जाना हुआ। भांति भांति के भोजनोकी व्यवस्था थी। महक से मन ललचा रहा था। मुंह में पानी भी आ रहा था, किंतु भोजन प्राप्त करने की होड़ लगी हुई थी। और मेरा तो प्लेट लेना ही मुश्किल हो रहा था। एक कदम आगे बढ़ाती तो किसी का धक्का दो कदम पीछे कर देता। बड़ी मशक्कत के बाद प्लेट तो मिल गई, पर असली जंग तो अभी बाकी थी।१५-२० प्रकार की सब्जियां, रोटी, पराठा, पुरी, चार पांच तरह की मिठाइयां, नमकीन, दही बड़ा और हां आइसक्रीम इन सब तक पहुंचना और उन्हें पाना बहुत मुश्किल था। मैंने भी साड़ी के पल्लू को कमर में दबाया और आगे बढ़ी। सलाद तो बेचारा लोगों की राह ही देख रहा था। मैंने कुछ टुकड़े ककड़ी, टमाटर के उठाए और फिर क...
स्नेह भोज
लघुकथा

स्नेह भोज

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** स्नेह भोज बस नाम ही रह गया है। वर्तमान में विवाह आदि समारोह में होने वाले भोज को स्नेह भोज तो कदापि नहीं कह सकते। हाल ही में हुए ऐसे ही एक आयोजन में मेरा जाना हुआ। भांति भांति के भोजनोकी व्यवस्था थी। महक से मन ललचा रहा था। मुंह में पानी भी आ रहा था, किंतु भोजन प्राप्त करने की होड़ लगी हुई थी। और मेरा तो प्लेट लेना ही मुश्किल हो रहा था। एक कदम आगे बढ़ाती तो किसी का धक्का दो कदम पीछे कर देता। बड़ी मशक्कत के बाद प्लेट तो मिल गई, पर असली जंग तो अभी बाकी थी।१५-२० प्रकार की सब्जियां, रोटी, पराठा, पुरी, चार पांच तरह की मिठाइयां, नमकीन, दही बड़ा और हां आइसक्रीम इन सब तक पहुंचना और उन्हें पाना बहुत मुश्किल था। मैंने भी साड़ी के पल्लू को कमर में दबाया और आगे बढ़ी। सलाद तो बेचारा लोगों की राह ही देख रहा था। मैंने कुछ टुकड़े ककड़ी, टमाटर के उठाए और फिर क...
सावन
संस्मरण

सावन

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन स्वभाव से ही मस्ती भरा है। जब भी आता था रौनक छा जाती थी। सब खुश हो जाते थे, पर लोगों की तरह यह सावन का महीना भी कितना बदल गया है। सावन ने गीत, झूले, मस्ती, फुवारे, हरियाली, मेल-मिलाप व्रत-त्योहार सब को छोड़ दिया और एक व्यस्त एकल परिवार की तरह गुमसुम सा हो गया है। मुझे आज भी याद है जब हम छोटे थे तो सावन के महीने का बड़ी बेसब्री से से इंतजार करते थे।सावन के आते ही गांव की बहने और बुआएं अपने मायके आ जाती थी। पेड़ों पर झूले पड़ जाया करते थे। मंदिर में प्रतिदिन भजन कीर्तन होते थे और अखंड रामायण पाठ का भी आयोजन किया जाता था। सोमवार के दिन सुबह-सुबह सभी लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली हाथ में लेकर शिवालयों की ओर निकल पड़ती थी। गांव की लड़कियां और औरतें इकट्ठी होकर झूला झूलने जाती थी और आंगन में सावन के गीत गूंजते थे। बच्चे पानी से ...
आज मैंने
कविता

आज मैंने

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज मैंने यह क्या खूब नजारा देखा, पहली बार साथ में परिवार सारा देखा। सभी को है फुर्सत कोई ना व्यस्त है , एक दूसरे के साथ सब बड़े मस्त हैं। हंसते पापा भी बड़ी जोर जोर से हैं , खामोशी के बीच भी बड़े शोर शोर से हैं। मम्मी को भी कैरम खेलना खूब भाता, दादी को भी तो ताश खेलना है आता। भैया भी करते हैं ढेर सारी बातें , बस कभी-कभी मुझे बड़ा सताते। बस एक बात को लेकर है मन बड़ा रोता, काश यह सब डर के साए में ना हो रहा होता। . परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म : २८/८/१९८२ शिक्षा : बी.कॉम., एम. ऐ. लेखन शुरुआत वर्ष : लेखन में रुचि बचपन से है लेखन विधा : कविता ,व्यंग्य ,कहानी समसामयिक लेखन। व्यवसाय : आकाशवाणी केंद्र इंदौर उद्घोषक पता : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
पतंग
लघुकथा

पतंग

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझे आज भी याद है संक्रांति का वह दिन जब मैं और मां छत पर पतंग के देख रहे थे खुले आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों को देखकर मन आनंदित हो गया। मैंने मां से कहा काश मै भी एक पतंग होती नीले आसमान की सैर करती, रंग-बिरंगे चटक रंगों से अपने आप को सजाती संवारती। तब मां ने कहा गुड़िया औरत भी तो एक पतंग ही है जो सजती है, संवरती है और अपने अरमानों से उड़ान भरती है पर पतंग की डोर हमेशा किसी और के हाथ में होती है और डोर थामने वाला पिता, भाई, पति और पुत्र है जो हमेशा अपनी इच्छा से पतंग की उड़ान तय करता है और अपनी उंगलियों पर पतंग को नचाता है पर बिटिया अब जमाना बदल रहा है हर चीज ऑटोमेटिक हो रही है तो तुम भी स्वतंत्र पतंग बनना अपनी उड़ान अपनी शर्तों पर उड़ना। मां की वही बात आज भी जीवन में प्रेरणा देती है....। . परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म ...