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Tag: मंजिरी “निधि”

दीपावली
कविता

दीपावली

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** वसुधा पर छाई दिव्य धारा दीपों की सुधा निधि द्वारा दीपावली पर्व है निराला चमके सबके भाग्य का तारा काली अंधयारी रात में आलोकित जग को कर डाला अज्ञानता का तिमिर मिटाकर दीपावली त्यौहार है आया देश सनातन संस्कारों का इंतजार करें अपने प्रभु का मनाएँ त्यौहार श्री राम का स्वागत अयोध्या धाम का दीपों का यह पर्व दिवाली सुखद और है आशावादी रहे सभी घर में उजियारा अँधियारा हो लोपित सारा खील पताशें हम सब बाँटे भाईचारा सीख बैर को छाँटें मानवता के बंधन बाँधकर दीपों का त्यौहार मनाएँ धरा प्रकाशित हो अविरल आओ मिल दीपमालिका सजाएँ परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
पीढ़ी का अंतर
लघुकथा

पीढ़ी का अंतर

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** हेलो कैसी है? तबियत तो ठीक है ना? रोहिणी ने कल्पना से पूछा l कल्पना बोली हाँ बस ठीक ही हूँ l बेटा बहु बच्चों के साथ आज नखराली ढाणी गए हैं l मैं घर पर ही हूँ l सही है इच्छा तो हमारी भी बहुत होती है कि हम भी बाहर जाए परन्तु संकोच वश बेटा बहु से कह नहीं पाते क्या करें l चलो तो अपना ध्यान रखना l बीच बीच में फोन कर लिया कर कल्पना l इतना कह कर रोहिणी ने फोन रख दिया l माँ मैं वीणा और परी पिक्चर देखने जाने वाले हैं और खाना भी बाहर ही खाकर आएंगे l आप खाना खा लेना l रोहित ने कहा l मेरे तो पैर दुःख रहे हैं मैं नहीं आती रोहिणी ने जवाब दिया l दादी आप भी चलो ना l प्लीज दादी l परी ने कहा l बेटा, दादी मॉल में जाकर क्या करेंगी? ना तो उन्हें एस्कलेटर चढ़ना आता है और ना ही वहाँ कोई मंदिर है कहकर वीणा हँस दी l उन्हें तो सिर्फ मंदिर जानें में ही दिलचस्प...
समय
कविता

समय

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** नहीँ पता होगा क्या कल करता समय सदा ही छल रौंद रहा सारे जग को बाँध रख सबके पग को बहुत सनही मित्र बना शत्रु भाव आपूर्ण घना इससे सदा डरो तुम मन समय कहे मैं हूँ भगवन कौन कहाँ गति पहचाने समय मुदित कैसे जानें आगे ताक लगाता है बीती बात बताता है इसका पहिया चलता जाये कभी अच्छे कभी बुरे दिन लाये जो करता इसका अपमान वह भी खो देता है मान होता है ये बड़ा बलवान न देखे मानस कोइ महान हिन्दु हो या हो मुसलमान यही कराता है पहचान जीवन में है यदि कुछ पाना नहीं व्यर्थ तुम इसे गँवाना नहीं पता होगा क्या कल परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
हालात
कविता

हालात

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** आज उजड़ा सा लगे, देख तेरा संसार संकट में दिखे मानव और घर द्वार कैसे और क्या करें लगे यह मन कहाँ विपदा हैं आन पड़ी दुःखी जन जन यहाँ बहोत ही दुःखी संसार लोग रोते हुए देख मानव भेड़ियों को स्वप्न खोते हुए कितने हुए गोलियों के शिकार कितने मार खा-खा कर मरने को तैयार छीन कर वे लोकतंत्र को ले गये अपने जाते दूर देख बिलखते हुए सारी इच्छाओं को बंदूक की नोक पर पूर्ण करवा रहे महिलाएँ और बच्चे जुल्म का शिकार हो रहे शर्मसार हुई सम्पूर्ण मानवता कहाँ जाए वो सारी जनता ? छोड़ निज घर द्वार तड़पकर, जन चले विकट विपदा से हारकर कठपुतली बन नाच डोर उनके हाथ छोड़ चलें दुनिया नहीं है कोई साथ मचा हुआ हाहाकार खोज रहे हैं नव आधार नहीं उठा पा रही भू भार त्राहि-त्राहि करती सरकार कुछ तो करो भगवन कब तक यूँ मूक खड़े रहोगे? डर के साये म...
जेठ मास
लघुकथा

जेठ मास

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** चलो एक काम तो हुआ l कहते उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछते मटके का ढक्क्न खोला तो उसमें पानी तला छु रहा था। दूसरा तो पहले से ही खाली था। उसने मटके उठाते झुंझलाते हुए कहा कितनी बार मुन्ना के दद्दा से कहा कि सवेरे ही पानी भर लाने दिया करो पर कहाँ सुनते हैं अब कैसे समझाऊँ कि...... छोडो। दोनों पेड़ों के बीच टांगे झूले को धक्का दे, अड़ोस-पड़ोस के दरवाजे बंद देख खुद से बुद्बुदाई न मुनिया न चुनिया और ना ही बाईसा?? के होवे? जंगल से लकड़ी ले ना लौटे?? दिल पर पत्थर रख वह घर से वावड़ी की तरफ हो ली। चाह कर भी अपने पैर जल्दी ना चला पा रही थी। धरती मानों तवा हो रही थी। जेठ की चिलमिलाती धूप। लू की लपटें और मरुस्थल से उड़ती तपती रेत शरीर पर चटके लगा रही थी। पसीना थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। रास्ते में एक पेड भी न था जिसके नीचे वह थोड़ा सुस्ता सके। पर उसे स...
विरासत
लघुकथा

विरासत

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** आज स्कूल में निबंध प्रतियोगिता रखी गईं थी। विषय था आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और क्यों? समाप्ति के पश्चात निर्णायक महोदया सभी निबंधों को पढ़ बहुत प्रसन्न हुईं। बच्चों ने क्या बनना हैं और क्यों बहोत ही अच्छे तरीके से उदाहरण के साथ लिखा था। ज्यादातर बच्चों ने विदेश जाकर डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर बनना ही लिखा था और कारण भी करीब करीब एक जैसे ही थे। परन्तु भैरवी और रेवा का निबंध पढ़ कर दिल खुश हो गया था। भैरवी को भरतनाट्यम कीे नृत्यॉगना बनने की चाह थी क्यूंकि उसे अपनी दादी की भारतीय नृत्य की विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छा थी और रेवा को भारतीय योग गुरु बनने की चाह। उसे भारत की योग पद्धति की विरासत का विश्व भर में परचम लहराना था। दोनों की वजह पढ़कर निर्णयक महोदया ने उनको प्रथम पुरस्कार दिया और बच्चों को अपने देश की विरासत कोे सहेजने का संद...
सहिष्णुता
कविता

सहिष्णुता

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** देखो आज खड़ा है भारत अविचल अखंड, सभी धर्मों का यह कहलाता सुंदर खंड। मुश्किल जब आये धड़ी देते सभी मिलकर साथ, गीता कुरान बाइबिल को सभी लगाते माथ। भक्ति रंग में रंगा हुआ है सुखों का सार, सभी मदद करते रहें यहीँ सकल आधार। धर्म सभी सिखा रहे मानवता उत्थान, राष्ट्र प्रेम हम सभी करें बुराई का अवसान ल चलें सत्य की राह में पाप कपट सब छोड़, करते कर्म हम हैं सदा नात प्रेम का जोड़ ल सभी धर्मों को लेकर चलना यही हमारी शान, देश एकता और सहिष्णुता है सब एक समान ल सर्व धर्म समभाव है लोकतंत्र का मूल, मूल मंत्र को धारिये सुमन बनें हर शूल। हरा रंग अरु केसरी ओतप्रोत यह देश, हर धर्म का यहाँ भिन्न है परिवेश ल आज हमारे देश में कोरोना की मार, सभी एक जुट हो गये निकले कोई सार l सच बात मैं यहीँ कहूं रहना दो गज दूर, हम सब एक साथ है मिले सफलता जरूर l परिचय :- मं...
नवरात्री
कविता

नवरात्री

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** नवरात्र में माँ फिर आई है स्वागत में सृष्टि ने धरा सजाई है नौ दिवस नवरूप लिए नूतन वर्ष में खुशियाँ लेकर आई है चित्र शुक्ला प्रतिपदा तिथि गुणगान हिन्दु संवतसर है हमारा अभिमान दुःख मिटे सुख मिले सबको अपार आशाएँ है पूर्ण समृद्धि की बरसे बहार देखो मौसम भी कितना खुशगवार हर घर में सजे तोरणा और बंधनवार प्रकृति ने सुंदर परिधान सजाए नव पल्लव नव मुकुल वृन्द देखो इतराए बौर वृंदो से शै हैं दर्शनीय हर ग्राम ताल सप्त स्वर नवकार वसुधा गा रही हैं लावण्य गान पक्षी सारे फुदकते चहचहाते हर्ष से मानों नवगीत गाते आदि शक्ति को देख सारा जग सरसाया नई उमंगे नये पल नव विश्वास हैं जगाया आओ मिल माता का सजाएँ दरबार माँ दुर्गा शक्ति रुपी हरती कस्ट अपार हिन्दु नव वर्ष विक्रम संवत दो हजार अठ्ठत्तर मनाएँ शक्ति पर्व के रूप से सनातनी धर्म निभाएँ भावसागर को पार कर अपना जीवन ...