Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: भूपेंद्र साहू

बचपन की यादें
कविता

बचपन की यादें

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** बस यही अपनी कहानी थी न घर की चिंता न रोटी की परेशानी थी होंठों में मुस्कान थी हाथों में बस्ता था सूकुन के मामले में वो ज़माना सस्ता था। समझ न आती थी हमको दुनिया-दारी एक तरफ़ थी सारे संसार की खुशियां दुसरी तरफ थी अपनी यारी मंजिल का कोई ठिकाना न था लेकिन सफर बड़ा आसान था हम अपनी जिंदगी के खुद ही मालिक थे, शाम को सूरज हमारी इजाज़त से ढलता था मौसम भी हमारी मर्ज़ी से अपना मिजाज़ बदलता था शर्दियों में गांव के टीले पर निकलती धूप सूहानी या गर्मी में आम के बगीचे की शैतानी सावन का महीना भी हमसे पूछ के बरसता था सुकुन के मामले में वो ज़माना सस्ता था परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह निवासी : रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी य...
उम्मीद का दामन
कविता

उम्मीद का दामन

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** समस्या बड़ी है, ये परीक्षा की घड़ी है हालात कल बुरे थे आज बुरे हैं, लेकिन सब्र रख, वक्त कल बेहतर परिस्थिति लेकर आयेगा मंजिल के पास आकर अपने रास्ते न मोड़ कोरोना संकट टल जाएगा, उम्मीद का दामन न छोड़ उम्मीद की नोक पे दुनिया टिकी है उम्मीद मुर्दों में जान लाती है उम्मीद पत्थर को भगवान बनाती है वही उम्मीद आज इन्सान और इंसानियत को बचायेगा। चुनौतियों का महासागर पार होगा हौसलों के पंख न तोड़ कोरोना संकट टल जाएगा उम्मीद का दामन न छोड़ परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह निवासी : रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
सुकून की नींद
कविता

सुकून की नींद

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चिंताओं के जूतों को दहलीज पे उतार होठों में एक प्यारी सी मुस्कान लेके कर चौखट पार गुजरते हुए खुशियों के लम्हों को अपनी खिड़की से पुकार घर में रख एक ऐसा छोटा सा कोना जहां तू अपनी दिल की बाते दिमाग को सुना वक्त के पिटारे से खुद के लिए, कुछ लम्हें उधार ले ये जिदंगी तेरी है एक सुकून कि नींद ले। अपनों का पेट भरने के लिए अपना पेट काटता है औरों कि रातें चमकाने के लिए अपना दिन जलाता है लेकिन अब बस, चिंताओं को रख परे परेशानियों को दूर हटा बड़े इंतजार के बाद आयी है ये रात यूं ही ना टले ये जिंदगी तेरी है एक सुकून कि नींद ले एक दिन मौत कि गोद में सबको सुकून कि नींद आयेगी फिर तो वक्त भी तुम्हे ना जगा पाएगी इससे पहले कि जिंदगी मौत का खेल खेले ये जिंदगी तेरी है चल एक सुकून की नींद ले ले।। परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह नि...