Wednesday, December 18राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: भीमराव झरबड़े ‘जीवन’

महुए के हर अंग पर
दोहा

महुए के हर अंग पर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** महुए के हर अंग पर, चढ़ा नशीला प्यार। हुरियारा किंशुक कहे, सुंदर हो संसार।।१ श्याम राधिका की तरह,प्रीत करें नर नार। कान्हा के ब्रजधाम सा, सुंदर हो संसार।।२ इस धरती पर प्रीत की,मधुरिम बहे बयार। कष्ट रहित हो जीव सब, सुंदर हो संसार।।३ अंतस में सौहार्द का, भरा रहे उद्गार। नष्ट फसल हो द्वेष की, सुंदर हो संसार।।४ संस्कृति में सौंदर्य के, चाँद लगे हों चार। सबको दे सम्मान सब, सुंदर हो संसार।।५ सबके सपनों को मिले,उन्नति का आधार। हो कुटुम्ब वसुधैव तब, सुंदर हो संसार।।६ गया न कोई स्वर्ग में, झूठा है हरिद्वार। सच तो खजुराहो कहे, सुंदर है संसार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम
कविता

वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** रक्त चूसक पोथियों की वादियों में। सोच करती संक्रमित उन व्याधियों में। भ्रांतियों का नव हिमालय चढ़ रहे हम।।१ रक्त में उन्माद का विष घोलता जो। पत्थरों के कान में सच बोलता जो।। पाठ्य पुस्तक द्वेष की ही पढ़ रहे हम।।२ लोकतंत्री बैल को डाली नकेलें। हाशिये पर पीटते गुरु और चेलें।। फिर पुरातन पंथ पर ही बढ़ रहे हम।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ...
रस्सियों पर झूमता नट यह बजट
गीतिका

रस्सियों पर झूमता नट यह बजट

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** रस्सियों पर झूमता नट यह बजट। बस टटोले वोट के तट यह बजट।।१ आम जन को है नहीं राहत कहीं, बस लगाता जेब पर कट यह बजट।।२ आय को करने कृषक की दोगुनी, खेत को ही कर गया चट यह बजट।।३ मात्र वेतन भोगियों के पेट पर, मारता है जोर से बट यह बजट।।४ बोझ लादे आमजन के पीठ पर, भर रहा धनवान के घट यह बजट।।५ फाड़ कर आंदोलनों की कापियाँ, कुर्सियों का लिख रहा हट यह बजट।।६ पक गए हैं खंजरों के खेत जो, दर्द की अब सुगबुगाहट यह बजट।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...
प्रेम सागर
गीतिका

प्रेम सागर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** मैं कलम से छंद-सागर पार करता हूँ। भाव दिल के बिंब में साकार करता हूँ।।१ ओढ़ता हूँ गीत कविता,नित्य लिख लिखकर, ताल लय पर मैं तभी अधिकार करता हूँ।।२ डूब कर मैं प्रेम सागर में बना प्रेमी, प्रीति के सब रंग मैं स्वीकार करता हूँ।।३ प्रेम पावन प्रेम सच्चा प्रेम है ईश्वर, प्रेम का मैं इसलिए संचार करता हूँ।।४ प्रीति के इस रंग में दुनिया रँगी मेरी, प्रीति की तब इत्र सी बौछार करता हूँ।।५ साठ की काया मगर है बीस का जज्बा, मन भ्रमर मैं पुष्प को नित प्यार करता हूँ।।६ प्रीति 'जीवन' के लिए है दाल-रोटी सी, मैं तभी इसकी फसल तैयार करता हूँ।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
रोशनी का अवतरण हो
गीतिका

रोशनी का अवतरण हो

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** काव्य सागर में निरंतर, लेखनी का संतरण हो। लोक के कल्याण के हर, कर्म का दिल से वरण हो।।१ पल्लवित हो हर हृदय में, नेकियों के बाग फिर से। शृंग ऊँचें जो बदी के, रात दिन इनका क्षरण हो।।२ काल कवलित हो नहीं फिर, झुग्गियों के स्वप्न देखें। नित बहे सौहार्द सरिता, आस का वातावरण हो।।३ मेघ दुख के दूर नभ से, मेह सुख की हो धरा पर। कैद से हो मुक्त दिनकर, रोशनी का अवतरण हो।।४ छल कपट के नव मुखौटे, जो मनुज के मुख जड़े हैं। मन दिगम्बर संत सा हो, शुद्ध जल सा आचरण हो।।५ इस धरा सा धैर्य रखकर, हम चलें उपकार के पथ। शीश उन्नत हो गगन में, किन्तु धरती पर चरण हो।।६ छंद की रसधार में नित, आचमन करता रहे मन। लक्ष्य 'जीवन' का यही बस, दंभ का उर से मरण हो।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी...
जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका…
गीतिका

जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका। नव पुष्पदल से सज गई है, प्रीत की हर वीथिका।।१ इस मन मरुस्थल में तृषा की, शेष है अब भी तड़प, आ मानसूनी मेह ने पल, में खिला दी मल्लिका।।२ गाने लगा है मन भ्रमर भी, गीत अब तो फागुनी, परिधान पुष्पों के पहन कर, आ गई जो वाटिका।।३ जब कोकिला ने कंठ में स्वर, भर दिए है काव्य के, नव छंद से नैना लड़ाने, चल पड़ी अब गीतिका।।४ जो तारिका मधु चूसने में, मग्न थी तन पुष्प से, इस गृहनगर की बन गई वह, आजकल संचालिका।।५ कुछ बिंब के तिनके लिए निज, नीड़ जो बुनती बया, उस छंद के नव नीड़ में नित, गुनगुनाती सारिका।।६ यह कृष्ण'जीवन' मग्न है बस, शारदे के द्वार पर, इस लेखनी ने राधिका बन, मन बनाया द्वारिका।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह ...
प्रेम दीप
गीत

प्रेम दीप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में। दंभ द्वेष छल तम मिट जाये, नय अभिनंदन में।। दीप्त देह से, फिर उजियारा, कर्मों का फैले। धुल जाये आबद्ध चित्त जो, भ्रम में है मैले।। ज्योतित हो फिर करुण प्रेमरस, उर के दर्पण में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (१) आलोकित पुरुषार्थ पुंज से, भू परिमंडल हो। चिर प्रदीप से, दिग दिगंत तक कणकण उज्ज्वल हो।। कुटिल वृत्तियों, के चंचल पग, जकड़े बन्धन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (२) विषम तटों के, तट बन्धों से, दीवारें जोड़े। कलुष भेद के, निंदित बंधन आओ हम तोड़े।। रुचिर प्रेम की, सघन उर्मियाँ, थिरके चिंतन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...
नायाब दिसम्बर
गीतिका

नायाब दिसम्बर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** नायाब जिन्दगी का, सुर ताल है दिसम्बर। इसको न मौन कहना, वाचाल है दिसम्बर।।१ भाने लगी रजाई, मन प्रीत सज रही है। रंगीन टोप स्वेटर, नव शाल है दिसम्बर।।२ है वक्त नापने का, अपना प्रतीक सुन्दर। अब साल पूर्ण होगा, ये काल है दिसम्बर।।३ प्रतिघात शीत का अब, होने लगा हृदय पर। बेडौल से बदन को, जंजाल है दिसम्बर।।४ काजू खजूर पिस्ता, बादाम नारियल घी। पकवान खूब खाओ, प्रतिपाल है दिसम्बर।।५ अब जन्मदिन सभी का, होगा नया नवेला। जो साल को बदलता, वो चाल है दिसम्बर।।६ जीवन बढ़ो निरंतर, संकेत मिल रहा है। भरपेट दाल रोटी, का थाल है दिसम्बर।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने पर...
पीड़ा की हांडी
गीत

पीड़ा की हांडी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** उबल रही पीड़ा की हांडी, घर के कोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।। फटी हुई किस्मत की पत्तल, पर चावल पसरे। दाल मित्रता करके जल से, दिखलाती नखरे।। नमक मिर्च ने हाथ बटाया, जादू टोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।१ चिन्ता के उपलों ने धुआँ, ठूँस दिया घर में। रोगी चूल्हा खाँस खाँस कर, दुबका बिस्तर में।। घात लगाकर बैठा है घुन, स्वर्ण भगोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।२ सुख की सँकरी पगडंडी पर, है भव के बंधन। दूध दही घी से तर पत्थर, घर भूखें नंदन।। सुख मिलता ढोंगी संतों को, दुखड़े बोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में ।।३ माल मुफ़्त का खा पघराये, कुर्सी एसी में। हम तो अपनी जान लुटाते, सस्ते देशी में।। 'जीवन' उल्टा सुख दोनों का, मन भर सोने में। मिला दर्द का हिस्सा ...
उम्मीदों की भोर
कविता

उम्मीदों की भोर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** निगल रहा अब अंधकार जग, होकर आदमखोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।। जंगी ताले ने जकड़ा है, दुनिया का चिंतन। शुष्क कूप में करते मेंढक, सरहद पर मंथन।। हर बैठक का फल खा जाता, छली केमरा चोर।। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।१ निर्जन में सम्पन्न भेड़िए, करते हैं कसरत। कम्बल ओढ़े चरती हैं अब, कुछ भेड़ें आहत।। शून्य कौर के आगे लगकर, करे पेट में शोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।२ भगा दिए हैं दर से शिल्पी, इन बाजारों ने। वस्त्र जंग के पहन लिए हैं, अब औजारों ने।। 'जीवन' का हर उत्सव भूला, इस जंगल का मोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
दंभ करना छोड़ दे
गीत

दंभ करना छोड़ दे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** देश के विपरीत विषयों पर अकड़ना छोड़ दे। तू हवाओं में जहर की गंध भरना छोड़ दे।।१ जोड़ सबको प्रेरणा दे रख बुराई पर नजर, तू अगर चारण गुणी तो आज लिखना छोड़ दे।।२ नेकियाँ कर बाँट खुशियाँ मात्र बन इंसान तू, भेद करते धर्म के पथ, पाँव रखना छोड़ दे।।३ स्वार्थ की सीमा बना तू, बाँट मत इंसान को, मत मियां मिट्ठू बने अब व्यर्थ बकना छोड़ दे।।४ है व्यवस्था दोगली ये सच नहीं क्या बात यह, तू विरासत का धनी तो अब बहकना छोड़ दे।।५ ज्ञान है अपनत्व भी पर वास्तविकता है नहीं, मात्र आभासी जगत में तू विचरना छोड़ दे।।६ मिल गये जल वायु नभ भू अग्नि सब उपहार में, बाँट तू सौहार्द 'जीवन', दंभ करना छोड़ दे।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
जंगल वाली सोच
कविता

जंगल वाली सोच

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** हुआ पाशविक हृदय आचरण, मनुज रहा अब नोच। इस मिट्टी में उग आई है, जंगल वाली सोच।। आसमान में नाच रहा है, प्रजातंत्र कनकौआ। डोर थमी है जिन हाथों में, बाँटा उसने पौआ।। नव विहान का सौदा करके, सौंप गया निम्लोच। उग आई है इस मिट्टी में...... (१) रोज मुनादी करते टी वी, माॅडल से इठलाकर। हवा आजकल बाँट रही है, खुश्बू घर-घर जाकर।। लगे शिकंजे जगह- जगह पर, मांग रहे उत्कोच। इस मिट्टी में उग आई है...... (२) हार भूख से डाल दिये हैं, अस्त्र सभी होरी ने। तृप्त कर दिया है जन गण को, केवल मुँहजोरी ने।। घाट-घाट का पानी पीता, है जिसकी अप्रोच।। इस मिट्टी में उग आई है..... (३) अपने मंडल के सूरज ने, बना लिया परकोटा। झूठ-मूंठ के बाँट उजाले, मोटा माल खसोटा।। आशा लेकर नव 'जीवन' की, पुश्त हुई सब पोच। इस मिट्टी में उग आई है..... (४) निम्लोच- सूर्यास्त पोच- निक...
सह भइये
गीत

सह भइये

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** भूखा प्यासा, अपने ही घर, रह भइये। पीर हृदय की, नहीं किसी से, कह भइये।।१ उसका सूरज, वही उगाता, रोज यहाँ, मान न इसको, झूठ सत्य है, यह भइये।।२ वही रेफरी, और गोल का, कीपर भी, गेंद तुल्य तू, मार यहाँ पर, सह भइये।।३ तस्वीरें वह, रोज यहाँ की, बदल रहा, अधिकार उसे, है नेक यहाँ, वह भइये।।४ आसमान से, बहुत बड़ा है, दिल उसका, पकड़ न पाया, उसकी कोई, तह भइये।।५ धमकाता वह, डरती उससे, यह जनता, साथ हमेशा, वह रखता बम, छह भइये।।६ ठान न उससे, रार चार दिन, 'जीवन' के, साथ-साथ में, पानी के तू, बह भइये।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा स...
अब भोर हर नवेली
गीत

अब भोर हर नवेली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** अब भोर हर नवेली, हमको उड़ान देगी। हर सांझ स्वप्न को अब, अपने वितान देगी।।१ हर चाह पूर्ण होगी, आजाद है वतन अब। बस कर्म शक्ति हमको, कर में कमान देगी।।२ अधिकार है सभी को, शिक्षा स्वतंत्र समता। यह है सदी हमारी, खुशियाँ समान देगी।।३ धारण करो सदाशय, सौहार्द नित बढ़ाओ। ये गुण फकीर को भी, ऊँची मचान देगी।।४ तलवार झूठ की पर, गर्दन सटी भले हो। इंसानियत हमेशा, सच ही बयान देगी।।५ माँ के सरिस लगेगी, तब यह धरा हमें भी। जब राष्ट्र प्रेम की उर, गरिमा उफान देगी।।६ अब सोच को निखारो, मत द्वेष रंज पालो। हर निम्न सोच 'जीवन', उर पर निशान देगी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर...
मन वियोगी
गीत

मन वियोगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** आधार छंद- सार्ध मनोरम मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ समान्त- अल, पदान्त- रही हूँ, मन वियोगी बर्फ जैसी गल रही हूँ। मैं अँधेरी रात प्यासी ढल रही हूँ।।१ याद में जलने लगा है मन मरुस्थल, वेदना की बन सदी मैं खल रही हूँ।।२ अनमना शृंगार तन को टीसता अब, बिन पिया के ज्वाल सी मैं जल रही हूँ।।३ हो गई गायब हँसी इस आरसी की, रोशनी को मैं विरहिणी सल रही हूँ।।४ छल भरा है मानसूनी प्रेम तेरा, प्रीत के पथ मैं सदा निश्छल रही हूँ।।५ कल्पना की डोर थामे आज 'जीवन', सर्जना के पंथ पर मैं चल रही हूँ।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...