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Tag: भारत भूषण पाठक देवांश

हिन्दी हमको भाती है
कविता

हिन्दी हमको भाती है

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** हिन्दी हमको भाती है, सबको खूब सिखाती है, चुन्नी-मुन्नी तुम भी पढ़ लो, दीदी आज बताती है। जन-जन की भाषा हिन्दी, कहता रंभाकर नन्दी, कोयल बागों में बोले, सुन्दर लगती है बिन्दी। संस्कृत भाषा की बेटी, नेह बाँहों में समेटी, यही बनाती है ज्ञानी, समृद्धि देती भर पेटी। परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
है यह जीवन छलावा
हाइकू

है यह जीवन छलावा

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** धनुषाकार वर्ण पिरामिड में प्रयत्न :- विधान-यह आज हिन्दी साहित्य क्षेत्र में प्रमुखता से प्रयोग में आने वाली जापानी विधा है। यह १४ चरण वाली २८ वर्णों वाली विधा है।इसके प्रथम चरण मे १ वर्ण, द्वितीय चरण में २, तृतीय चरण में ३, चतुर्थ चरण में ४, पञ्चम चरण में ५, षष्ठ चरण में ६ तथा सप्त चरण में ७ वर्ण होते हैं, आठवें चरण में ७ वर्ण, नौवें चरण में ६ वर्ण, दसवें चरण में ५ वर्ण, ग्यारवहें चरण में ४, बारहवें चरण में ३, तेरहवें चरण में २ वर्ण तथा चौदहवें चरण में १ वर्ण होते हैं, यानि वर्ण पिरामिड की पूर्णतः उल्टी गिनती। आधे वर्णों की गिनती नहीं होती तथा किन्हीं दो चरणों में तुकांत होने से सृजन लाजवाब हो जाती है। सारांश में बोलना कम काम ज्यादा के सिधान्त का पालन करता है यह। है यह जीवन छलावा ही वास्तविकता नहीं भुलावा ये आया जो है जाएगा...
विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता
मुक्तक

विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** मुक्तक लेखन का प्रयत्न वीर रस में कुल मात्रा भार १६ रखने का प्रयत्न विधान:-१,२ व ४थी पंक्ति समतुकान्त,३री अतुकान्त:- मुक्तक १:- विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता। नखहीन भला क्या सिंह भी होता। रहे गरल जबतक शेष विषधर में। फुँफकार तभी तो वो डरा पाता। मुक्तक २ः- हे मेरी सुताओं विषधर बनो। नखयुक्त सिंह अब भयंकर बनो। सरलता अब यहाँ आवश्यक नहीं। महाभयंकर तुम प्रलयंकर बनो। मुक्तक४:- स्मरण रहे अब कृष्ण नहीं आते। पापियों से आज सभी भय खाते। आज पूजे जाएं शैतान यहाँ। देख व्यभिचार प्रभु आज शर्माते। मुक्तक५:- उठो चूड़ी छोड़ तुम कतार धरो। स्वयं का कष्ट आज तुम स्वयं हरो। हे वीर सुताओं तोड़ दो चुप्पी। वार सहो नहीं तुम अब वार करो। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला द...
ऐ कवि तुम अङ्गार लिखो
कविता

ऐ कवि तुम अङ्गार लिखो

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** अब श्रृंगार नहीं, सिर्फ अङ्गार लिखो। ऐ कवि प्रेम नहीं बस प्रहार लिखो। तुम रूप माधुर्य नहीं सिर्फ वेदना लिखो। ऐ कवि तुम प्रणय नहीं अब परित्याग लिखो! तुम राग दीप नहीं भर्तसना का मल्हार लिखो! तुम प्रार्थना नहीं अब केवल तिरस्कार लिखो! लिखो टूटी हुई तुम, चूड़ियों की गाथा। रचो काव्य सहस्त्रों तुम अपमानित हुई मनुजता पर! . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कह...
हे दीपज्योति नमन
कविता

हे दीपज्योति नमन

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** तिमिर नाशिनी दीपज्योति नमन! पाप शमनी हे सत्यज्योति नमन! सन्मार्ग दर्शिनी मार्गदर्शिका नमन! आत्म बोधिनी बोधशक्ति नमन! काल नाशिनी सर्वशक्ति नमन! ज्ञान प्रदायिनी ज्ञानशक्ति नमन! सद्भाव प्रवाहिनी प्रवाहशक्ति नमन! सत्यदर्शिनी हे सत्यशक्ति नमन! सिद्धि प्रदायिनी सिद्धिशक्ति नमन! . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने प...
एक कोरोना
कविता

एक कोरोना

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** एक कोरोना तोड़ रही, सैकड़ों कमर है। अच्छी बात आज इस लाॅकडाऊन की यही प्रकृति हो रही देखो कितनी निर्मल है। अच्छा तो होता कि, ये आवाज न आती कि मौत टहल... रही, पहर दोपहर है। हाथ तंग हो रहे हैं, दंग हो रहे हैं हम दवाइयों की शीशी बच्चों के बोतल चाय के कुल्हड़ सब खाली हो गए। घर में अँधेरा, बस इन्तजार ... कब हो सवेरा। कहती सरकार है, दुकानों में राशन... अजी भरमार है। पर क्या खाली जेबें देती, भला क्या कभी किसी को राशन है। घरों में बस बैठे नहीं, हम दुबके हुए हैं। आश यह लिए कि, मेरा भारत समर्थवान है। अजी आश नहीं, मेरा विश्वास कहिये। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (...
नहीं तुमने न हमने ही
छंद

नहीं तुमने न हमने ही

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधाता छंद - मापनी १४-१४ मात्रा, ७-७ मात्रा पर यति नहीं तुमने न हमने ही, कभी भी है इसे देखा। वायरस चीज क्या होता, देखा है या अनदेखा।। जानकर इसे क्या करना, मगर इससे नहीं डरना। तुम निकलो न अभी बाहर, भटक रहा है कोरोना। घरों पर अभी तुम रहलो, थोड़ा और कष्ट सहलो। विनती करता भारत है, लोगों आज तुम सबसे। रहलो बन्द अभी थोड़ा, कहता भारत है हमसे।। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
तुम्हें लगा
कविता

तुम्हें लगा

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधाता छंद-मापनी १४-१४ मात्रा, ७-७ मात्रा पर यति।   धोऐं हाथ, साबुन से। फिटकरी से, ही नहलाएं। न कभी हाथ, मिलाना है। न अभी भीड़, लगाना है। सम्मान हो, यदि करना। हाथ को ही, जोड़ लेना। याद रखना, केवल तुम। मिलोगे भी, तुम न गले। बस हो अगर, कभी खाँसी। तो मुँह पर, रूमाल ही तभी रख लो, छींकना हो जब कभी भी, दोनों हाथ रखकर नाक, तुम ढँकना। सिर दर्द हो, कभी जोरों का। साथ सीना, अगर जलता। हमेशा ही, बुखार भी यदि रहता, साथ शरीर में रहे जलन, समझो तभी तुम्हें लगा, कोरोना है। . परिचय :- भारत भूषण पाठक देवांश लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र मे...
तू क्या जाने भगवान!
कविता

तू क्या जाने भगवान!

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधा - करुण रस तू क्या जाने भगवान! रात भर हर दिन ही खटमल-मच्छर के बीच सुख से सोना क्या होता है। तू क्या जाने भगवान ! हर दिन ठण्ड से ठिठुरना, कैसा हमका लगता है ! तू क्या जाने भगवान! जि-कर मरना, मरकर जीना कितना मुश्किल होता है! रात भर दर्द में रहकर सुबह सब अच्छा ही है, कहना, कैसे? संभव होता है ! तू क्या जाने भगवान ! बेघर होकर दर-दर भटकना, हम किस तरह कर पाते हैं, अो बादलों के आलीशान ! महलों में हमेशा रहने वाले, जीवन-मृत्यु ,खेलने वाले ! आओ एक बार फिर तुम इस धरती पर बनकर के तुम भी वो अबला नारी, कुचली जाती मसली जाती कभी जो और जिसकी इच्छाएं। बन कर आओ वो पिता एकबार। जो अपने जवान बेटी को कंधा, जिसे कभी देना होता है। कारण तुम्हारी बनायी इस... धरती पर जो एक न एक राक्षस हरदम पलता है। बनकर बहुत आ लिए संहारक तुम, बस केवल एक बार शिकार हम ज...
क्यों भूल गए आज
कविता

क्यों भूल गए आज

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** क्यों भूल गए आज। नववर्ष है अपना आज।। कल तक तो खूब चिल्ला रहे थे। अँग्रेज़ी नववर्ष पर इठला रहे थे।। आज क्यों हो मौन। कहो न आज नववर्ष की शुभकामनाएं। क्यों न दे रहे आज शुभकामनाएं।। आज शान्त क्यों हो। आज क्लान्त क्यों हो।। आज ही तो नववर्ष है। देखो लताएं भी मुस्कुरा रही है। डालियां भी इठला रही है।। आज कहाँ है तुम्हारा वो ध्वनि विस्तारक यन्त्र। मौन क्यों हो आज साथ दे रही प्रकृति के सब तन्त्र।। देखो क्या आनन्दमय सा चहुँओर वातावरण है। मन आनन्दित तन आनन्दित और आनन्दित उपवन है।। देखो मैं ये नहीं कह रहा मत मनाओ आंग्ल नववर्ष। पर देखो यह अपना आनन्दमय पुनीत नववर्ष। हिन्दी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। परे हो विश्व से आतंक की घटाएं। पूरित हो सबकी सम्पूर्ण अभिलाषाएं.... . परिचय :- भारत भूषण पाठक देवांश लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' ...