चारो खाने चित्त
प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
********************
चारो खाने चित्त हो गए अब खत्म हो गया खेल
अहम खा गया बबुआ को अब जी भर बीनें बेल
मुर्गा मदिरा मज़हब जैसा चला न कोई चारा
हाथ मल रहे लुटिया डूबी अब्बा हुए बेचारा
चचा भतीजा और बहन जी सभी हो गए पस्त
हाथ मल रहा हाथ हुआ जो हर मंसूबा ध्वस्त
राजनीति की पिच पर देखो खा गए ऐसा धक्का
क्लीन बोल्ड बबुआ हुए अब हैं हक्का बक्का
मिट्टी में मिल गए ख्वाब सकते में सैफई कुल
ओम प्रकाश बड़ बोले की भी सिट्टी पिट्टी गुल
गढ़ते रहे समाजवाद की नित्य नई परिभाषा
ताक में बैठी जनता ने पलट दिया ही पासा
स्वामी की भी अक्ल गुम बिखर गई हर आस
बुत्त हो गया कुनबा सारा हुआ पुनः वनवास
अक्ल के मारे चौधरी की देखो चर्बी गई उतर
हेल का मारा बेल हुआ ना सूझे कोई डगर
रहो सदा औकात में बंधु कहते यही बुजुर्ग
अहंकार में ढह जाएगा बन...