अभी-अभी चला हूँ
प्रीती गोंड़
देवरिया (उत्तर प्रदेश)
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अभी-अभी चला हूँ
थोड़ा वक्त तो लगेगा
रात ढलेगी दिन निकलेगा
हर लम्हा गुज़रेगा
तलब जिसकी लगी हैं मुझे
तड़प जिसकी लगी हैं मुझे
उसका भी ख्वाब सजेगा
अभी-अभी चला हूँ थोड़ा वक्त तो लगेगा ...
मेरी हर कोशिश फते करेगी
उड़ान कितना भरना होगा
खामोशी थोड़े देर की हैं
तजुर्बा हमारा भी नया होगा
मंजिल फलक तक हैं मेरी
यु जमी पे बसेरा कहा होगा
अभी-अभी चला हूँ थोड़ा वक्त तो लगेगा...
ठोंकरें बरसो पहले लगी थी
आज सम्भल चुका हूँ
ना फ़िक्र कर मेरी
वजूद हमारा भी नया होगा
दुनिया ने मुझे बदला
मुझे मेरी तकदीर बदलना होगा
अभी-अभी तो चला हूँ थोड़ा वक्त तो लगेगा ...
बेजुबाँ नही मै बस
इन्तजार थोड़े लम्हो का होगा
जख्म-ए-जिंदगी हैं तो क्या हुआ
वक्त ही मरहम बनेगा
तकलीफे बड़ी है बेशक तो
वक्त का तक़ाज़ा भी कुछ खास होगा
अभी-अभी तो चला हूँ थोड़ा वक्त तो लगेगा ...
"वक्त लगेगा तक़दीर ब...