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Tag: प्रीति शर्मा “असीम”

वो….. नाचती थी
कविता

वो….. नाचती थी

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** वो..... नाचती थी ? जीवन की, हकीकत से, अनजान। अपनी लय में, अपनी ताल में, हर बात से अनजान। वो...... नाचती थी? सोचती.......... थी? नाचना ही..... जिंदगी है। गीत-लय-ताल ही बंदगी है। नाचना........ ही जिंदगी है। नहीं ........ शायद नाचना ही.... जिंदगी नहीं है। इंसान हालात से नाच सकता है। मजबूरियों की, लंबी कतार पे नाच सकता है। लेकिन ........... अपने लिए, अपनी खुशी से नाचना। जिंदगी में यहीं, संभव -सा नहीं। हकीकतें दिखी...... पाव थम गए। फिर कभी सबकी आंखों से, ओझल हो ......!!! नाचती .....अपने लिए। लेकिन जिम्मेदारियों से, वह भी बंध गए। फिर गीत-लय-ताल, न जाने कहां थम गए। पांव रुके, और हाथ चल दिए। शब्द नाचने लगे। जीवन की, हकीक़तों को मापने लगे। उन रुके पांवों को, आज भी बुलाते हैं। तुम थमें हो, नाचना भूले तो नहीं। वो.....नाचती ...
धरा की अनंत पीड़ा
कविता

धरा की अनंत पीड़ा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। जीवन दिया, पोषण किया। पालक होकर भी, पतित रही। अपनी ही संतानों का, संताप हर, अनंत संताप सहती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। स्वर्णनित उपजाऊ शक्ति देकर, भूख मिटाई दुनिया की, पर अपनी संतानों की लालसा से, उनके लालच से बच ना सकी। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। अपनी सारी सुंदरता देती रही। और अपनी ही संतानों से, करूपित होती रही। गंदगी के ढेरों को सहती रही। अमूल्य धरोहरों को देकर, प्रदूषण से सांसे घुटवाती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। इंसानो की गलतियों से, जब रुौद्र रूप लेती। सबकी गलतियों की सजा, खुद ही सह लेती। आज विश्व धरा दिवस पर, संकल्प ले...... धरा के सरंक्षण की, कोरोना की आपदा जो कुछ लालची इंसानों ने थी बनाई। किस तरह धरा प...
यह कैसा …… वैशाख
कविता

यह कैसा …… वैशाख

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर .............यह आज, कैसा ..........वैशाख आया। न आज भांगड़े हैं। न मेले सजे हैं। फसल कटने-काटने का, किसे ख्याल आया।। ज़िंदगी की बैसाखियों पर, चलकर आज, कितना मजबूर वैशाख आया। गेहूँ की फसल का, घर के, आंगन में आज न ढेर आया। वह मेलों की रौनक को, आज मैंने घरों में बंद पाया। दिहाड़ी -दार अपना दर्द, ढोल की तान पर ना भूल पाया। जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर यह कैसा वैशाख आया। वह हल्की गर्म हवाओं के साथ, न तेरी धानी चुनर का, पैगाम आया। यह कैसा, उदास, ऊबा हुआ वैशाख आया। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
होमियोपैथी….  प्रयोग नहीं विज्ञान
आलेख

होमियोपैथी…. प्रयोग नहीं विज्ञान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व होमियोपैथी दिवस’ प्रत्येक वर्ष १० अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. हैनीमैन की जयंती १० अप्रैल को विश्व होमियोपैथी दिवस के रूप में मनायी जाती है। होम्योपैथी के संस्थापक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन महान विद्वान, भाषाविद् और प्रशंसित वैज्ञानिक थे। होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति दुनिया के १०० से अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी देश है कई महामारियो का उपचार होम्योपैथी से संभव है। लेकिन अभी तक इसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो सका है। होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। होमियोपैथी के उपचार का आधार खासतौर पुराने तथा असाध्यय कहे जाने वाले रोगों के लिये रोगी की केस हिस्ट्री लेते समय उनके लक्षणो को प्राथमिकता...
नव संकल्प
कविता

नव संकल्प

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जला कर.... एक दीया विश्वास का, हमें मानव सभ्यता में, विजयी उद्घोष जगाना है। हम हैं भारत की संतान मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर दूसरा ... .दीया प्रेम का हमें आपसी भाईचारा लाना है। धर्म से ऊपर है ....मानवता। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर तीसरा ....दीया देश हित में लगे, असंख्य जनों के प्रति, कृतज्ञ हो जाना है। जो लड़ रहे कोरोना से, दिन-रात उनके लिए, दुआ में हाथ उठाना है। जलाकर चौथा .....दीया देश हित का हमें, देश का मान बढ़ाना है। कोरोना से उपजे अंधकार को, विजयी प्रकाश के, दीयों से जगमगाना है। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर पांचवा..... दीया कुदरत का उपकार मनाना है। बहुत गलतियां कर चुके, हम कुदरत के साथ, अब समस्त भूले सुधारना है। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर छठा .....दीया स्वच्छता का वचन निभाना है। हम रोकेंगे गंदगी के...
एक सोच
कविता

एक सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** एक डर ..........का ? संपूर्ण विश्व पर मानवीय दिमागों पर हावी होना।। जिस का नाम है.......कोरोना सोचता हूँ.......? एक सभ्यता एक समाज को, हर दिमाग की सोच को, जब रोकना हो ....! आगे बढ़ने से ......? तब अफवाह और आधे सच से, जब लोग रू-ब-रू हो जाते हैं। तब कोरोना...... नहीं मारेगा। हम अपने डर से ही मर जाते हैं। तरक्कीयों-उचाईयों को, बढ़ते हुए कदमों को, एक बीमार, डरी सोच मार जाती है। कोरोना से तो, बच सकता था .........विश्व लेकिन मौत के डर से, जिंदगी बे-मौत मारी जाती है। कोरोना का रोना, हर सोच को, डराकर हावी हुई जाती है। जिंदगी इंसानी दौड़ की पहुंच, क्यों .......समझ नहीं पाती है? अपने डर से, जब तक नहीं लड़ेंगे। जब तक विश्व के, पर्यावरण की, सुध हम ही नहीं करेंगे। संपूर्ण विश्व के लिए, सबके ....... जीने की जिद्द नही करेंगे।...
किताबें भी एक दिमाग रखती है
कविता

किताबें भी एक दिमाग रखती है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। किताबें जिंदगी में, बहुत ऊंचा, मुकाम रखती है। यह उन्मुक्, आकाश में, ऊंची उड़ान रखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती हैं। हमारी सोच के, एक-एक शब्द को, हकीकत की, बुनियाद पर रखती है। किताबें जिंदगी को, कभी कहानी, कभी निबंध, कभी उपन्यास, कभी लेख- सी लिखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती है। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती है। यह सांस नहीं लेती। लेकिन सांसो में, एक बसर रखती है। जिंदगी की, रूह में बसर करती है। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
नसीबो का नसीबा
लघुकथा

नसीबो का नसीबा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** लाला जी, थके हारे घर पहुंचे थे। क्या ....बना नसीबो की शादी का लड़के वालों ने हां कि नहीं। या इस बार भी जन्मपत्री नहीं मिली का बहाना कहकर मना कर दिया है। इससे पहले लाला जी को कितने ही रिश्ते मना कर चुके थे। जब भी रिश्ते की बात चलती तब सिर्फ एक ही बात निकलती कि आप इसी गांव के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। आजादी के बाद कितने ही लोगों की जिंदगी इस एक शब्द पर थम गई थी कि आप यहां के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। घर-बाहर तो छूटा ही, काम धंधा भी छूट गया। ऊपर से जिनकी बेटियां थी उसकी शादी करने के लिए कितने सवालों से गुजरना पड़ता था। कुछ यही हो रहा था। नसीबो के साथ ....जिस किसी रिश्ते की बात चल रही थी वही मना कर देता था कि पाकिस्तान से आए हैं वहां से आने वाली किसी भी लड़की को छोड़ा नहीं था, और यह ऐसी सोच थी जिसके लिए कोई भी...
तुम्हें कौन सा रंग लगाऊं
कविता

तुम्हें कौन सा रंग लगाऊं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कान्हा.... तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। सूरज की, लाली को हाथों में भर , गालों को भर जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। या फिर काले -काले बादल को, आँखों में भर जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन- सा रंग लगाऊं। सात रंग के सपने सजा के, अंबर से नीला रंग ले आऊं। कान्हा, तुम्हें कौन- सा रंग लगाऊं। अपने प्रेम का रक्त बिंब, तेरे माथे लगा जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। या फिर पीली -पीली सरसों से, आँचल को भर जाऊं। कान्हा, तुम्हें कौन -सा रंग लगाऊं। या सारे रंगों को भर लाऊं। कान्हा, तुम्हें सारे रंग लगाऊं .... . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
चंद्रशेखर आज़ाद
कविता

चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ....... आजाद। पिता का नाम ........ स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्............ भारत मां की जय....... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली.....आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा .......उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो.....तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर .......आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद.... आज़ा...
देश प्रेम दिवस
कविता

देश प्रेम दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आधुनिकता की होड़ में। वैलेंटाइन डे .........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे। आज के दिन देश की खातिर। जिन शहीदों को हुई फांसी। उन्हीं देशभक्त भगत सिंह-राजगुरु- सुखदेव की याद में देश प्रेम दिवस मनाएंगे। आधुनिकता की होड़ में , वैलेंटाइन डे .........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे। आज के दिन...... देश की खातिर। पुलवामा में ... जो शहीद हुए। उन शहीदों की शहीदी पर। नतमस्तक हो जाएंगे। वैलेंटाइन डे ........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे। मत खोने दो मूल्य प्रेम का। प्रेम को एक दिन में, नहीं समा पाओगे....? यह तो अनंत..... हर दिन का आधार है। हम हर दिन को, मूल्यवान बनाएंगे। आधुनिकता की होड़ में , वैलेंटाइन डे ..........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं,...
तुम जब
कविता

तुम जब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत तुम जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। हवाएं चलती हैं। सुगंध ले कर। जीवन मे , खुशबू भर जाते हो। बसंत तुम जब आते हो। एहसास जागते हैं। हर तरफ, फूल खिलते हैं। कहीं पीले-कहीं नारंगी। जीवन रंग बरसते हैं । बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। नदिया इठला कर चलती है। दिनों में मस्ती आ जाती है। आसमां में चहकते हैं पक्षी, जिंदगी कोयल से गीत गाती है। बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। नई आस-नई प्यास नए विचार-नए आधार। बन कर छाते हो। बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, तरंग भर जाते हो।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
प्रेम की भाषा
कविता

प्रेम की भाषा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी होता है। सच तो यह है........? प्रेम हर भाषा से, ऊपर होता है। प्रेम शब्दों का कहां, मोहताज होता है। यह तो, जज्बों से बयां होता है। यह अहसास, बहुत खास होता है। यह तो, हर रूह का प्राण होता है। प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी होता है। लेकिन यह और बात है। हर किसी के हिस्से में, यह कहां होता है। यह अनंत तक, जाने की राह होता है। जिंदगी खूबसूरत हो जाती है। जब किसी से, किसी को प्यार होता है। प्यार की दुनिया में, नफरतों के लिए, फिर कहां कोई स्थान होता है। प्रेम ना हिंदी, अंग्रेजी होता है। यह भाषा का, नही भावों का भव्य भाव होता है। जो दिल प्रेम से भरा होता है। क्या ..... बांटोगे तुम सरहदों, भाषाओं, और इंसानों के नाम पर। यह तो, धरती से आसमां तक बेशुमार होता है। प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी यह हर भाषा से ऊ...
जिंदगी खेल नहीं
कविता

जिंदगी खेल नहीं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों, का कोई मेल नहीं है। जिंदगी खेल नहीं।। रोटी, कपड़ा और मकान के सवालों में, जिंदगी इस कदर, बे-कद्र हो जाती है। जिंदगी में तब, जीने के लायक, एहसास जैसी चीज, बचती ही नहीं। जिंदगी खेल नहीं सपनों और हकीकतों का, कोई मेल नहीं।। बचपन, जवानी और बुढ़ापे की, समस्याओं में बस, त्रासदी का, अलग -अलग ही सही, पर एहसास है..... वही। संघर्ष से, कोई बचा नहीं हर पल। जिंदगी के सामने है, हर रोज खड़ी, एक जंग नई। जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों का कोई मेल नहीं। जिंदगी खेल नहीं। हर शख्स अपने वजूद से, परेशान है ...।। काश होता .....यह। वह ..............नहीं। लेकिन मुश्किलों का, सफर थमता ही नहीं। क्योंकि.....जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों का, कोई मेल नहीं। जिंदगी सपनों से, दिल बहलाती है। उसी आस पर, बद-से-बदत...
रिमझिम-रिमझिम
कविता

रिमझिम-रिमझिम

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** रिमझिम-रिमझिम आओ फूहारों, मीठे गीत सुनाओं फुहारों। प्यारी-प्यासी इस धरती पे। प्रेम का जल बरसाओं फूहारों।। रिमझिम-रिमझिम आओं फूहारों। धान के खेत की आस पूजादों। पपीहे-चातक की प्यास बुझादों। प्रेमी-मन भीगे संग-संग। पुलकित सपनों को, आस बंधा दो। रिमझिम-रिमझिम आओं फूहारों।। मिलन के राग, सुनाओं फूहारों। सा-रे-गा-मा को सुरों में भरके। मचले मन में, तरंग उठाओं। बचपन भी, भूलकर सारे बंधन। कहों .......आ के कागज़ की नाव चलाओं। सबकी आंखों में, उल्लास बन छा जाओं। सूखी धरा हरी-भरी कर जाओं। रिमझिम-रिमझिम सावन आओं।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
नया वर्ष
कविता

नया वर्ष

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** नया वर्ष, नया उत्कर्ष, लेकर आया है। अपने लिए, संकल्प पर दृढ़ रहूं। यह पैगाम लेकर, २०२० आया है। नया वर्ष, नया उत्कर्ष, लेकर आया है। रह गया जो, वो बात बीती। उन कमीयों को, पूरा करने, २०२० आया है। नया वर्ष, नया उत्कर्ष, लेकर आया है। कड़वाहट को, दूर करने, अविश्वास में, विश्वास भरने। नाकारात्मकता को, दूर करने। मन में, संकल्प भर लाया है। नया साल, नयी बातें, नया- पन लाया है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक क...
बरगद की छांव
कविता

बरगद की छांव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मां-बाप बरगद की छांव, से होते है। जिंदगी देते है। और जिंदा , रखने के लिए, अपनी टहनियों को, अपनी जड़ें तक दे देते है। मां बाप बरगद की, छांव से होते है। उनकी घनी छाया में, सारा परिवार, पल जाता है। जो भी आता, बड़े प्यार से, खुली बांहों में, समेट लिया जाता है। मां-बाप बरगद की छांव, से होते है। कोई भेद-भाव नही, बच्चों को अपनी, जड़ों से, मजबूती का, स्तम्भ दिये रहते है। जिंदगी के साथ, जिंदगी के बाद भी, जड़ों और टहनियों से, जुड़े रहते है। मां-बाप, बरगद की छांव से, हमेशा हरे रहते है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं,...
एक विकृत सोच
कविता

एक विकृत सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अबॉर्शन....... एक विकृत सोच का....? समाज में, अपनी, विकृत मानसिकता को। छुपाने के लिए, अबॉर्शन करवाते हैं। कभी बेटों के लिए, कभी जायज- नाजायज, संबंधों के लिए, मानववादी सोच का, अपहरण तक कर आते हैं। वे लोग..........? अपनी ऐसी विकृत सोच का अबॉर्शन क्यों.....नहीं कराते हैं? देश की अर्थव्यवस्था की, जो धज्जियां उड़ाते हैं। अपने मतलब के लिए, षडयंत्र रचाते हैं। भ्रष्टाचार फैला कर, देश को ही खा जाते हैं। धर्मों के नाम पर, लड़ा जात- पात फैलाते हैं। मजबूर बेसहारों पे जुल्म ढाते हैं। झूठ -फरेब से बाज नहीं आते हैं। ऐसी सोच का, अबॉर्शन क्यों .......नहीं कराते हैं? समाज और देश के, वे लोग ....….......? जो सभ्यता को, लज्जित कर जाते हैं। ना समाज का, ना देश का भला कर पाते हैं। अपनी विकृत सोच से नकारात्मकता बढ़ाते हैं। सत्य को हराकर झ...
फटी जेब
कविता

फटी जेब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** महंगाई से, फटी जेब में, क्या.......? समा पाता। जितना कोई, कमाता ..... उतना ही निकल जाता।। महंगाई से फटी जेब में, क्या..........!!! कीमतों में, दिन-ब-दिन, जो उतार-चढ़ाव आता। कोई, इस चीज से बचाता। और उधर खर्च आता।। कुल मिला के, हाथ का, रुपया भी चला जाता।। महंगाई से फटी जेब में, क्या समा पाता।। ऊपर से बदले नोट, जिनको दे दिये वोट। सरकारों से विश्वास भी, चल -चल के निकल जाता। किस जेब में, रखता आदमी ....पैसा। अर्थव्यवस्था की, जेब को ही, फटा पाता।।   परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...