ऐ मेरे प्यारे घर
ऐ मेरे प्यारे घर,
मेरे सपनों के महल,
तुझे छोड के जाउँ,
मेरा दिल नही करता,
एक बार देखूँ,
बार बार देखूँ,
पर जी नही भरता...
अभी कल ही कि तो बात है,
मेहमानों का आना जाना,
उनका तुझे जी भर के निहारना,
तेरी तारीफो के पुल बाँधना,
सब अच्छा लगता था,
अच्छा ही तो लगता था....
मेहमानों के स्वागत मे,
वो मेरा पलके बिछाना,
वो हँसना वो मुस्कुराना,
उनकी तिमारदारी मे,
खुद को भूल जाना,
सब अच्छा लगता था,
अच्छा ही तो लगता था .....
फिर विदाई की घडी आई,
रुखसत हुए मेहमाँ,
और रह गई तन्हाई,
अब तो शेष है वो खुशनुमा पलों की यादें,
जो दिल की गहराई मे भीतर तक समाई....
अब तो बस वापस जाना है,
जीवन की आपाधापी मे,
फिर से रम जाना है,
पर तेरे साये मे गुजारे वो पल,
तेरी यादें हमेशा संग चलेंगी,
फिर से कुछ पल बिताने की तमन्ना हमेशा रहेंगी....
.
परिचय :- प्रशांत कुमार श्रीवास्तव "सरल"
निवासी : भिलाई
आप भी अपनी कविताएं, क...