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थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ…
कविता

थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ…

*********** प्रद्युम्न नामदेव बड़ागाँव रीवा म.प्र इष्टो से मिलने मॆ खुशी बहुत होती हैं.. खोयी सी दुनियाँ मॆ प्रतिमा एक होती हैं.. पानी तो हर मौसम मॆ होता हैं नदियों और तालाबों मॆ... पर चातक को प्यास की चाह सदा होती हैं... स्वयं के वास्ते रोना कोई रोना नहीं होता... बहकने के लिये पीना कोई पीना नहीं होता... ज़माना कह रहा हमसे जिओ और जीने दो... खुद के लिये जीना कोई जीना नहीं होता... बादल सौ रूप बदले, पर बादल एक होता हैं... मानव काले गोरे हो, पर खून एक होता हैं... अपने अपने धर्म के चाहे बना लो भगवान... पर भगवान हर जगह एक होता हैं... मै साथ मॆ अलाप भी कर लेता हूँ... और मन्दिर मॆ जाप भी कर लेता हूँ... मानव से देवता न बन जाऊँ... इसलिए थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ... लेखक परिचय :- प्रद्युम्न नामदेव पिता - श्री दरोगा लाल नामदेव शिक्षा - बीएससी तृतीय वर्ष न्यू साइन्स कॉलेज रीवा म.प्र. पता - ग्राम प...