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Tag: पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)

वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान एवं रहवासियों की सेवा हेतु निःशुल्क एंबुलेंस भेंट
सामाजिक

वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान एवं रहवासियों की सेवा हेतु निःशुल्क एंबुलेंस भेंट

इंदौर। आज सिलिकॉन सिटी इंदौर में कोरकेयर हॉस्पिटल के सौजन्य से आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा स्वास्थ्य परीक्षण एवं नि:शुल्क दवाई वितरण शिविर आयोजित किया गया। जिसमें सैकड़ों रहवासियों ने अपना परीक्षण कर नि:शुल्क दवाइयां प्राप्त की इस अवसर पर क्षेत्र के वरिष्ठ सामाजिक धार्मिक सेवा करने हेतु तत्पर राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के संस्थापक एवं दियोत्थान एजुकेशन एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के सचिव पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) के साथ वरिष्ठ नागरिकों का श्रीफल व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर सिलिकॉन सिटी के रहवासियों हेतु क्षेत्र के विधायक जीतू पटवारी द्वारा एक एम्बुलेंस भी भेंट की गई जो सिलिकॉन सिटी के रहवासियों को आवश्यकता पड़ने पर निःशुल्क सेवा प्रदान करेगी। कार्यक्रम में श्री भरत पटवारी, श्री ए.पी.एस चौहान प्राचार्य आयुर्वेद महाविद्यालय, श्री एस.के. दास अध...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्यिक

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...
एक भी लम्हा नहीं …
कविता

एक भी लम्हा नहीं …

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर मध्य प्रदेश ******************** बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर पकड़ में किसी के एक भी लम्हा नहीं ... तन्हा सभी है दुनिया में पर कोई तन्हा नहीं ... दिखाते तो हैं हम की खुश हैं पर हुआ कभी मन का नहीं ... हुस्न देखे जमाने में कई तारीफे काबिल जिसकी थी चाह उसका कंगन कभी खनका नहीं ... इशारे तो मिले बहुत जिंदगी से हमे पर ये सर है की हमारा कभी ठनका नहीं ... फूल पर आता है भंवर पराग रस पीता है प्रेमरस अर्पण पर भी हुआ भंवर कभी उपवन का नहीं ... अपने दिल की आप सुध लो कही जो शूल मन मै उठी क्या भला और क्या बुरा है ये दोष पवन का नहीं ... बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर .....!! . परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyotthan.Com (DNN) सचिव- दिव्य...
एक पौधा बगिया का
लघुकथा

एक पौधा बगिया का

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज सुबह बहुत दिनों के बाद परिवार के सभी सदस्य बागीचे में साथ बैठकर धुप सेंक रहे थे ... तभी बबली भी बिस्तर से उठकर अपने बाबूजी की गोद में आ बैठी .... हंसी ठिठोलियों का दौर चल रहा था की बबली को देख काकी बोल उठी ... अरे बबली अब उठी हो सोकर ... इतनी देर कोई सोता है भला ... कल ससुराल जाओगी तो वंहा यह सब नहीं चलने वाला ... दादी ने भी काकी की बात का समर्थन किया ... मै नहीं जाउंगी कोई ससुराल-वसुराल, यहीं रहूंगी अपने माँ-बाबूजी के पास ... आप सब के बिना मै वहां कैसे रहूंगी ... क्या आप मेरे बिना रह सकते हैं ... संसार की रीत है ये सबको जाना होता है रुंआसी होकर काकी बोल पड़ी ... तभी बाबूजी ने बबली से कहा अरे बबली तुमने जो पौधा पीपल के नीचे लगाया था उसे खाद पानी दिया या नहीं चलो देखें क्या हाल है उसके और दोनों पौधे के पास जा पहुंचे और ...
यूँ ही ना आया करो मौसम
कविता

यूँ ही ना आया करो मौसम

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** चाहे जब यूँ ही ना चले आया करो मौसम यूँ उनकी याद ना दिलाया करो मौसम रूठा हो जब दिलबर हमसे, तब यूँ आकर ना सताया करो मौसम गर आना हो जो मजबूरी तुम्हारी, आकर मुझे हौले से बताया करो मौसम जब तुम आते हो तो याद करते हैं, हम उन्हें कितना इस बात का अहसास उन्हें भी तो कराया करो मौसम उनकी याद में हम गाते हैं जो नग़मे, करीब जाकर कभी, उनके कानों में गुनगुनाया करो मौसम चाहते हैं हम उन्हें कितना वो ना मानेगें कभी, तुम्ही जाकर उन्हें प्यार जताया करो मौसम प्यार के दीप से ही है दुनियां रोशन मेरी, उनके दिल में भी इकरार का इक दीप जलाया करो मौसम चाहे जब यूँ ही ना चले आया करो मौसम .... परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyo...
जीवन और बारिश भाग – 2
कविता

जीवन और बारिश भाग – 2

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आँखों पर हाथ रखे वह देख रहा था टकटकी लगाए आस है जिनके रुकने की बरसने से गति तगारी लिए मजदूर की जो कमर पर लपेटे मैली सी चादर भूख मिटाने के यंत्र की भांति सड़क किनारे खड़े अपनी काग़ज की फिरकियों के रूप में अपने सपनों को बारिश के पानी में गलता देख रहे अधनगें कपड़े पहने उस अधेड़ की ठेले पर आधे कच्चे आधे पके केले लिए बैठी मक्खियां उड़ाती उस बूढी नानी की जो पाल रही है अपनी मृत बच्ची के बच्चों को जिन्हे छोड़ गया उनका जल्लाद बाप जब वह बेच ना पाया बूढी नानी के विरोध के चलते अपनी मासूम बेटियों को किसी और जल्लाद के हाथ दारु से अपना गला तर करने आस है इन सबको की रुके बारिश तो शुरू हो काम उस ऊँचे भवन का जिसके भरोसे छोड़ आये हैं अपना गाँव कई मजदूर की बारिश रुके तो खुले उनके पेट पर बंधी वह चादर रुके बारिश तो रुके गलना फिरकियों का आएं बच्चे ग्राहक ...
बारिश और जीवन – भाग १
कविता

बारिश और जीवन – भाग १

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आँखों पर हाथ रखे वह देख रहा था टकटकी लगाए बादल को आस है जिनके बरसने की आस बंधी है जिनसे मंगलू की धापू की खेत में खड़े बबूल की दाल पर बैठी चिड़िया की खेत की मेढ़ के किनारे बिल में बैठे मूषक मेंढक की और वहीँ मारे कुण्डली बैठे काले नाग की कि बादल गरजेगें पानी बरसेगा हल चलेगें बीज डलेगें छाएगी हरियाली होगी हर और खुशहाली हरे-भरे खेत देख हर्षायेगा मन की अब होगें सारे दुःख दूर हो दीवाना मजदूर गायेगा दूर नहीं अब वो दिन जब धापू-मंगलू का बस्ता कॉपी किताब गणवेश स्कुल की और जूते आयेगें दूर नहीं दिन जब बच्चे नई पोषाख पहन इतरायेगें कमला-विमला सखियों संग गायेगी गीत बादलों की तारीफ़ में की तुम ना होते तो क्या होता हमारा ...? बबूल की डाल बैठी चिड़िया दोहराएगी गाना की उसे और उसके बच्चों को भरपेट मिलेगा खाना खेतों में दौड़ते फिरेगें मूषक चुगने को द...
मच्छर और मैं
कविता

मच्छर और मैं

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** खाली बैठा घर में खुद से हो दो चार रहा था जाने क्यूँ गुस्सा मेरा आसमाँ सातवें पार रहा था। इलेक्ट्रिक मॉस्किटो बेट से घर के मच्छर मार रहा था। या यूँ कह लो उन तुच्छ प्राणियों को इस भव सागर से तार रहा था। कलयुगी वैतरणी पार करके उनको खुद को कृष्ण मान रहा था। तभी एक छोटा मच्छर मेरे कान में धीरे धीरे सरकने लगा। माथा ठनका मन घबराया दिल जोरों से धड़कने लगा। वो जोरों से दहाड़ा कान में मेरे मेरा सर मानो फटने लगा। उसने जो काटा कान में मेरे सर चकराया बाँयां बाजू फड़कने लगा। फिर जादू क्या हुआ परमात्मा जाने मैं मच्छर भाषा समझने लगा। अब मैं बैठा था घर के कोने मच्छर भी थे ओने - पोने पर आ गए अचानक सैंकड़ों मच्छर। मुझे समझाने लगे की सुन बे ओ खच्छर। हम दुश्मन नहीं सोश्यलिस्ट हैं। देश में समानता लाने में बस हमीं फिट हैं। अमीरों -और गरीबों में हम फर...
फिर छेड़कर तार दिल के
कविता

फिर छेड़कर तार दिल के

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर छेड़कर तार दिल के हमदर्दी यूँ हमसे जताओ ना... टूटने से बचा है क्या दिल का कोई कोना तो अभी मुझे बताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... बुरा हूँ मै कहते हो जब तुम खुद मुझे तो दिमाग से मुझे अपने सदा को तुम मिटाओ ना... फिर छेड़कर तार दिल के ... लिख रख्खा है जो हथेलियों पे अपनी जो नाम मेरा मिटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... आएंगे कई दीवाने जीवन में अभी यूँ अपनी सासें मुझपे तुम लुटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... मिलता है प्यार जीवन में नसीब वालों को जो प्यार करते हैं तुम्हें उन्हें कभी सताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... होना था जो हो गया खोना था जो खो गया बातें पिछली याद करके मन में यूँ पछताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... मांगे नहीं मिलता जीवन में देने कई सोचो तुम सब पर प्यार लुटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... फिर छेड़कर तार दिल के हमदर्दी य...
फिर इस बार होली पर वो …
कविता

फिर इस बार होली पर वो …

फिर इस बार होली पर वो ... पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर इस बार होली पर वो, सच कितना इठलाई होगी.. सत रंगों की बारिश में वो, छककर खूब नहाईं होगी….। भूले से भी मन में उसके, याद जो मेरी आई होगी.. होली में उसने नफरत अपनी, शायद आज जलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! ये क्या हुआ जो बहने लगी, मंद गति शीतल सी ‘पवन’.. याद में मेरी शायद उसने, फिर से ली अंगड़ाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! कैसी है ये अनजान महक, चारों तरफ फैली है जो.. मुझे रंगने को शायद उसने, कैसर हाथों से मिलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! पीले,लाल, गुलाबी रंग की, मेहँदी उसने रचाई होगी.. आएगा कोई मुझसे खेलने होली, उसने आस लगाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! डबडबाई आँखों से उसने, मेरी राह निहारी होगी..। पूर्णिमा के चाँद पे जैसे, आज चकोर बलिहारी होगी….। फिर इस बार होली...