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Tag: परवेज़ इक़बाल

बोलता कश्मीर
कविता

बोलता कश्मीर

======================= रचयिता : परवेज़ इक़बाल -नज़्म- बोलती हैं सलाखों पे भिंची गर्म मुट्ठियाँ सुने पड़े डाकखानों में लगे लिफाफों के ढ़ेर. और मोबाइल के इनबॉक्स में पड़ी लाखों चिट्ठियां... क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? सन्नाटे के शोर से फटती हैं कानों के रगें खामोश लब और सुर्ख आंखें धधकते सीने पस्त बांहें... सर्द हवा में भी है एक अजीब सी तपिश सवाल करती है चीखते दिल से यह खामोश सी खलिश क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? पूछती है बर्फ, चिनारों को अपनी सफेदी दिखा कर मुझे रोंद्ता नहीं कियूं कोई अब पहाड़ पर आकर... कहते हैं थपेड़े पानी के डल के किनारों से जाकर.. कोई तो खामोशी तोड़ो शिकारों से गीत गाकर... उतारो पानी मे सूखी पड़ी पतवारों को कोई तो आबाद करो इन सूने शिकारों को.... हाँ आज अफसोस नहीं तुम्हें मेरे हाल का लेकिन देना पड़ेगा जवाब कभी तुम्हें भी मेरे सवाल का ये नफरत हरगिज़ न खीर का ज़ायका बढ़ाएगी... दूध प...