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बुझने न पाए मशाल तेरी
कविता

बुझने न पाए मशाल तेरी

निर्मला द्विवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तो दम घुटने लगा, सुन शहर तेरी हवाओं में। छल कपट की राहें, बस दौलत शोहरत की बातों में। खुद की ही जय जयकार बस खुद की परवाहों में। चुभती है मेरी लेखनी भी, अब बहुतों के सीने में। नहीं किसी की खैर खबर, ना किसी से लेना देना। खुद की दुनिया में, बस खुद के लिए ही जीना। जब तक खुद के साथ ना बीते, तब तक आंख ना खुलती। जो जितना झूठ है बोले उसकी उतनी जय जयकार होती। जितना बड़ा धोखेबाज है उतनी ही बड़ी साहूकारी है। जो परिवार और रिश्ते तोड़े, वही सच्चा हितकारी है। जो जितना ज्यादा पापी, वही सबसे ज्यादा मीठा बोले। चापलूसी के धंधे हैं सबसे ज्यादा चालें खेले । जिनकी आंखों से बहते हैं मगरमच्छ के आंसू। वही कहलाते बेचारे जो होते सबसे धांसू जिसने अपना घर फूंका, औरों को राह दिखाने को। वही बना बेवकूफ, लिखी किस्मत जग हंसाने...