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Tag: नरपत परिहार ‘विद्रोही’

काश! वो कह देती …
कविता

काश! वो कह देती …

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** घर में एक बुढिया... भरा पूरा परिवार... उसके खुशियों की बगिया हैं सब अच्छा हैं.... खाना भी मिल जाता हैं पीना भी मिल जाता हैं मगर .... बहू को ये बुढिया अच्छी नहीं लगती क्योंकि बहू के आधे से अधिक काम वो बुढिया कर लेती हैं बुढिया को पता है काम करने वाले बहुत हैं मगर फिर भी उनका मन.... कहता है... शायद ! वो सुनना चाहती हैं अपने बहू के मुँह से कि माँ जी आप बैठो ये काम मैं कर दूंगी। ये समझ कर कोई न कोई काम हाथ में ले लेती हैं शनैः शनैः उम्र भी ... जवाब देने लगी हैं बुढिया बीमार थी प्यास के मारे .. कंठ सुखे जा रहा हैं पर पता है कोई नहीं कहेगा कि माँ जी पानी पीना हैं सो बुढिया स्वयं उठ अपने पैरो पर.... भरोसा कर पनघट को चली ही थी इतने में तो पैरो ने जवाब दे दिया ... वो धडा़म... से गिर पडी़ शायद ...
आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।
कविता

आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ। विज्ञान धरती और पोकरण दिखाता हूँ। शाश्वत समाधि रामा पीर दिखाता हूँ। आओ तुम्हें खनिजों का भण्डार दिखाता हूँ। इन रेतीले धोरों में मृगतृष्णा का संसार दिखाता हूँ। भेड़-बकरी, ऊँट और गोडावन का घर दिखाता हूँ। आओ तुम्हें केर-काचरी, कुमट-सांगरी का साग खिलाता हूँ। जबरौ जैसलमेर अर जवानों की देवी तमाम दिखाता हूँ।। ख्वाइशें हैं मन के भीतर, तुम्हें पुरा राजस्थान दिखाता हूँ। आओ तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ। गढ़ चिंतामणि चिडि़याटूँक दिखाता हूँ। परि-देवताओं से निर्मित मेहरानगढ़ दिखाता हूँ। आओ तुम्हें बलिदानी रखिया राजाराम दिखाता हूँ। मण्डोर, ओसिया अर जसवन्त थडा़ तमाम दिखाता हूँ। भली धरती जोधाणे री, आओ तुम्हें सूर्यनगरी और घंटाघर दिखाता हूँ। सुवर्णनगरी में काहन्ड़देव का शौर्य ...
सोचता हूँ…क्यों लिखूँ?
कविता

सोचता हूँ…क्यों लिखूँ?

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** सोचता हूँ... क्या लिखूँ? क्यों लिखूँ? किसलिए लिखूँ? आज पढ़ता कौन है? क्या इसलिए लिखूँ? कि लोगो की निगाहों में कवि दिखूँ! क्या इसलिए लिखूँ? कि किसी साहित्य नामा समूह में वाहवाही लूट सकूँ? या इसलिए कि किसी खबरनामा में, अपना स्वयं प्रसार-प्रचार कर सकूँ? आज देश और समाज में पीड़ित की पीडा़ को पढ़ता कौन हैं? सब लिखने वाले हैं! कवि है! अपने भाव समझता कौन हैं? निष्पक्ष लिखने का दम किसमें हैं? आज देश के जन-जन में, फैले नफरती माहौल को देख लगता हैं, कि कहीं न कहीं आज के इस माहौल की जिम्मेदार, साम्प्रदायिक बनी कलम हैं। वो कलम कहां है? जिसे प्रेमचंद ने चलायी, पंत, निराला ने चलायी, महादेवी वर्मा, नागार्जुन की तो कलम ही खो गयी। शायद! आज के कवियों ने इन्हें पढा़ नहीं होगा, समझा नहीं होगा। या पढा़ और समझा भी हैं तो आज के कवियों व लेखकों म...
मन के अँधेरे में
कविता

मन के अँधेरे में

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** छिपा पडा़ हैं अपार खजाना, मन के अँधेरे में। ढुंढ़ सको तो ढुंढ़ लेना, मन के अँधेरे में। वहीं मिलेंगे राम-रहीम, वहीं मिलेगा कान्हा कन्हैया। छिपे पडे़ हैं , मन के अँधैरे में। हे! बन्धे मन-मंदिर की बत्ती जला दे, तेरा मन अमृत का प्याला, यहीं काबा, यहीं शिवाला। न मिलेगा मंदिर-मस्जिद, न मिलेगा गिरजाघर में। सब कुछ तुझे मिल जाएगा, मन के अँधेरे में।। . परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने क...
सेवा कर्म में राम
दोहा

सेवा कर्म में राम

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** राम नाम सेवा कर्म, सेवा कर्म में राम। राम पुण्य का हैं सुफल, राम मुक्ति का धाम।।1।। जपना राम नाम कहे, मिटते कष्ट हजार। सुख में भी सुमिरन करे, मन की इच्छा मार।।2।। मंदिर-मंदिर घुम फिरे, मिले नहि कहीं राम। बगल छुरी दबा ली, कहां से मिले श्याम।।3।। ना मंदिर-मस्जिद बसे, ना काबा कैलास। मन भीतर जाके देख , राम करे मनवास।।4।। लिये हाथ कटार फिरे, शिकार उनका काम। दुजे को उपदेश देत, बोले जयश्री राम।।5।। . परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
बेघरों की बेबसी व कोरोना की त्रासदी
कविता

बेघरों की बेबसी व कोरोना की त्रासदी

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** नन्हा मुन्ना पापा से कहता है। अपना आशियाना किधर हैं? पापा हौसला दे कहता, बेटा ये आ गया उधर.. उधर हैं। शीघ्र दो कदम बढा़ता उधर हैं। फिर पुछता पापा, शायद कहता है! भूख लगी है पापा, अब ओर कितना दूर हैं? पर पापा निःशब्द हैं, कैसे कहे? कि अभी कोसो दूर है। सोचता हूँ कब उसकी भूख शांत होगी? इन मासूमों को प्यास भी लगी होगी। कैसे बसेरा होगा? घनघोर अँधियारी रातें भी होगी। यूँ चलते कब? आशियाने की दूरी पार होगी । वो क्या जाने? ये कोरोना त्रासदी हैं। हम भारत देश की आबादी हैं या इस देश के मिट्टी की गरीबी हैं। चलता डगर-डगर पर कोई नहीं कहता, ये अपना करीबी हैं। तब विद्रोही कहता हैं, क्या ये भारत देश की मज़बूरी थीं ? जो सत्तर सालों से पडी़ दीवारों के परिधानों में। साहित्य-शास्त्रों में, विश्वगुरु के परिवेशों में। राजनीतिक खिलाडि़यों की फु...
प्रकृति प्रकोप
कविता

प्रकृति प्रकोप

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** सृष्टि निर्मात्री, प्रलयंकारी प्रकृति। इसमें ही बननी-बिगड़ती हमारी आकृति। फिर भी प्रकृति दोहन करती हमारी मनोवृत्ति। विनाशकाले होती हमारी प्रज्ञा विकृति।। भूल गये हम प्रकृति पूजा। कर्मकृत्य, पाखण्डवृत्ति का ढो़ंग दूजा। मौत खडी़ द्वार पर, ये कोरोना अजूबा। ताली-थाली बजाने का क्या है? तुम्हारा मंसूबा। सम्भल जा मेरे यार, घर में जा, सो जा।। प्रकृति प्रकोप कोरोना कहर में, मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों की सूनी पडी़ दहलीजे सारी। गीता, कुरान, बाईबिल जाली। जैविक जंग लड़ रही दुनिया सारी। प्रकृति तेरी माया निराली। जग-जनता को कर दी न्यारी न्यारी।। पशु-परिन्दों को आजाद कर कैद कर दी जग-जनता सारी।। परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
माहौल
कविता

माहौल

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** ग़र कुछ बदलने की चाह हो मन में, तो हर शख्स को नींव की ईंट बनना होगा। करना हो अपने समाज का नव निर्माण, तो हम सबको घर से निकलना होगा।। नव निर्माण होगा समाज का, नशामुक्ति का अभियान छेड़ना होगा। जगेगी शिक्षा की अलख, तभी तो समाज का निर्माण होगा।। सिर्फ हंगामा खडा़ करना मेरा मकसद नहीं हैं बस हर गली-मौहल्ले में शिक्षा की शहनाई बजनी चाहिए। कंगूरा बनने की चाह नहीं हैं मेरी मुझे नींव की ईंट ही रहने दो। भले ही बन जाओं तुम सुघड़ इमारत। पर ये माहौल बदलना चाहिए।।   परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
बिछडे़ यारों का यूँ मिलना
कविता

बिछडे़ यारों का यूँ मिलना

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** आज मन बडा़ आनन्दित हुआ। बिछडे़ यारों का यूँ मिलना हुआ। हम मिले थे अनजानी दुनिया में। सहपाठी , संग रहे, संग खेले । सुप्त हृदय में प्रेम अंकुरित हुआ। एक-दुजे के हमदर्दी बने। न हमें जात-पात का ज्ञान था। न हमें देश-दुनिया का पता था। न हमें निज लक्ष्य ज्ञात था। बस हमें ज्ञात था। यारों संग वक्त बिताना। हँसी ठिठोले में मन बहलाना। मौज-मस्ती भरी दुनिया में जीना। वक्तांगडा़ई में हम बिछडे़ फिर चले निज लक्ष्य पथ पर कर क्षण लक्ष्यपूर्ति आ मिले फिर एक मंच पर । पुलकित अतिशय अंतरमन हुआ। आसमान में उड़ने का मन हुआ। बिछडे़ यारो का यूँ मिलना हुआ।।   परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं...
अपने-पराये
कहानी

अपने-पराये

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ********************   खुशीनगर में मोहन काका रहते थे। वे शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले और खुशमिज़ाज व्यक्ति थे। इसी गाँव में मनसुख बाबा का आश्रम था, बाबा हमेशा प्रसन्नचित्त रहते थे। बाबा के मुखमण्डल का तेज व मुस्कराहट को देख हर किसी व्यक्ति का चेहरा इस कदर खिल उठता मानो सूर्य-किरण पड़ते ही कमलिनी खिल उठती हैं। प्रसन्नता महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना जाता है। बाबा ने क्रोध व अहं पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनमें लोगों को खुश करने की कला थीं गर गाँव में कोई भी व्यक्ति नाखुश मिल जाता तो वे उनके रहस्य जान कर उसके मुखमण्डल पर प्रसन्नता की लकीरें खींच देते। बाबा की मान्यता थी कि, दरअसल भगवान मंदिर, मस्जिद व गिरजाघरों में न होकर दीन-दु:खियो व पीड़ितों के दर्द भरी आह के पीछे की मुस्कान में वास करते हैं।...