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Tag: नफे सिंह योगी

कविता की चाहत
कविता

कविता की चाहत

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं नहीं चाहती सुनकर मुझको, कोई रूठा मुस्काए। मैं नहीं चाहती की महफिल की खुशियों में गाया जाए।। मैं नहीं चाहती प्रशंसा कर, प्रेमिका को रिझाया जाए। मैं नहीं चाहती मंदिर में गा, हरि को हर्षाया जाए ।। मैं नहीं चाहती भूले, भटके राहगीर को राह दिखलाऊँ। मैं नहीं चाहती पत्थर दिल को, मोम बनाकर पिंघलाऊँ।। मैं नहीं चाहती कि हिंसक को, पाठ प्रेम का सिखलाऊँ । मैं नहीं चाहती सहानुभूति दे, आँखों आँसू बरसाऊँ ।। गा देना नफे सरहद पर जहाँ अड़े, खड़े हों वीर जवान । जिनके दम पर नींद चैन की सोता सारा हिंदुस्तान।। मुझे गा देना जहाँ न पहुँचें, औहदे और उपाधियाँ । जिनकी यादों में खड़ी हों, गुम-शुम, मूक समाधियाँ ।। . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्रीमती विजय देवी पिता : श्री बलवीर सिंह (शारीरिक प्रशिक्षक) पत्नी : श्रीमती सुशीला देवी ...
कैसे कह दूँ साल नया है
कविता

कैसे कह दूँ साल नया है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** धर्म सनातन, हिंदी भाषी, कैसे कह दूँ साल नया है? कुछ अंग्रेजी भारतवासी, करते रोज बवाल नया है।। सर्दी से मुरझायी कलियाँ, कोहरे का मातम छाया है। पर्वत छुपे बर्फ के नीचे, साल नया नहीं आया है।। शीतलहर का कहर जोर पर, बादल में सूरज शर्माता। सैनिक सरहद पे ठिठुर रहे, न बुढों का बिस्तर गर्माता।। शिक्षा संग संस्कार जोड़ना, न ये दिल में ख्याल नया है। कुछ अंग्रेजी भारतवासी, करते रोज बवाल नया है।। कहते सब आजाद मुल्क है, सब नियम नये बनाए हैं। रिती-रिवाज, परंपरा अपनी, खुद अपनों ने दफनाए हैं।। सोच रही होगी भारत माँ, देखो ! दिन क्या आया है? अच्छे लगने लगे पराए हैं, खुद अपना वर्ष भुलाया है।। पीड़ का पर्वत आज पीठ पर, लेकर खड़े विशाल नया है। कुछ अंग्रेजी भारतवासी, करते रोज बवाल नया है ।। गोदी में सब लिये बहारें, जब चैत्र प्रतिपदा आएगी। ...
हाँ मैं वही सिपाही हूँ
कविता, छंद

हाँ मैं वही सिपाही हूँ

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल, सदियों से खड़ा स्थाई हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। घर,परिवार व प्यार त्याग मैं, सरहद पर तैनात खड़ा हूँ। करुँ मौत से मस्ती हरदम, खतरों से सौ बार लड़ा हूँ। हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर, मैं उसी रक्त की स्याही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। है धरती सा धीरज मुझमें, व आसमान सा ओहदा है। हिम्मत हिमालय सी रखता, सदा किया मौत से सौदा है। अपनों पर जान गँवाता हूँ, दुश्मन के लिए तबाही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। बाहों में सिसके दर्द सदा, आँखों में निंदिया रोती है। सपनों में दिखता दुश्मन को, चिंता मुझको ना खोती है। मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता, होता उतना उत्साही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हू...
साँसों में सरगम सी
ग़ज़ल

साँसों में सरगम सी

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** साँसों में सरगम सी बहती। दिल की हर धड़कन में रहती।। जब थक जाता चलते-चलते। मत रुकना मन ही मन कहती।। खुशियाँ छा जाती आँगन में। जब तुम चिड़िया बनके चहती।। होंठों पर मुस्कान बिठाकर। हँस-हँस दुख, दर्दों को सहती।। रोशन रखती घर, आंगन को। जगमग दीये की ज्यों दहती।। घर से दूर, पिया सरहद पर। सोच इसी गम में है गहती।। यादों की कच्ची दीवारें। रोज नफे की बनती ढहती।। . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्रीमती विजय देवी पिता : श्री बलवीर सिंह (शारीरिक प्रशिक्षक) पत्नी : श्रीमती सुशीला देवी संतान : रोहित कुमार, मोहित कुमार जन्म : ९ नवंबर १९७९ जन्म स्थान : गांव मालड़ा सराय, जिला महेंद्रगढ़(हरि) शैक्षिक योग्यता : जे .बी .टी. ,एम.ए.(हिंदी प्रथम श्रेणी) अन्य योग्यताएं : शिक्षा अनुदेशक कोर्स शारीरिक प्रशिक्षण कोर्स योगा कोर्स मे...
मुश्किल में मुस्काना सीखो
कविता

मुश्किल में मुस्काना सीखो

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** युद्ध में जख्मी जवान यूँ ही नहीं कहता रेडियो सैट पर अपने कमांडर को जोशीले लब्ज़ों में जोर से कि...ठीक हूँ सर क्योंकि ...उसे पता है कि ... अगर तू अपनी परेशानी उन्हें बताएगा तो... फतेह में रुकावट आ सकती है मुद्दा जीतना है न कि ...दर्द बयाँ करना ठीक इसी प्रकार जब एक बेटी ससुराल से मायके आती है तो... माँ के पूछने पर भी वह मुस्कुराकर कहती है कि... माँ ! मैं बिल्कुल ठीक हूँ आप मेरी फिक्र मत करना क्योंकि... उसे पता है कि... अगर वह कहेगी कि... माँ मेरा मन नहीं लग रहा तो... माँ भी बहुत परेशान होगी ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जो ... ये बयां करते हैं कि.... जीवन दुख-सुख का नाम है हमें मुस्कुराकर जीवन जीना चाहिए खुद खुश रहकर सबको खुश रखना चाहिए जो ...दुख में भी मुस्कुराता है वास्तव में वही जीवन जीता है ..... . परिचय : नाम : नफे सिंह ...
काश अगर मैं पंछी होता
कविता

काश अगर मैं पंछी होता

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** खुला आसमां मेरा होता, सुखमय रैन बसेरा होता । चूमें ऊँचे पेड़ गगन को, शाखाओं पर डेरा होता ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... मनमौजी बन मन की करता, तजकर दिल से रंज व रंजिश। न कोई होती हद व सरहद, न कोई बाधा, बंधन, बंदिश ।। काश ! अगर मैं पंछी होता है..... प्रकृति की गोद में खेलूँ, लूँ मनोहर , मोहक नजारा । आकर्षक आवाज लुभानी, सुंदरता का करूँ इशारा ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... पनपे नहीं प्रेम से पीड़ा, लेकर देश, धर्म, जाति को । एक जैसा सबको चाहता, जितना संबंधी, नाती को ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... बस मेहनत बलबूता होता, लगाम कभी न लगे लगन पे । उड़ता पंखों को फैलाकर, राज करूँ मैं नील गगन पर ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... चिंता मुक्त चेतना चित में, उर आजाद करे नभ विचरण । हिला-हिलाकर पंख बुलाता, मुक्त प्यार का करता वितरण।। ...
माँ से मिलना है …
लघुकथा

माँ से मिलना है …

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** आज सुबह-सुबह दोस्त के यहाँ चंडीगढ़ गृह प्रवेश हवन पूजा के लिए जाते समय अचानक रास्ते में कार का टायर पंचर होने पर ड्राइवर ने कहा सर! टायर बदली करने में थोड़ा समय लगेगा। मैंने खिड़की खोली और बाहर निकला तो देखा कि...एक बूढ़ी अम्माँ गेट पर खड़ी-खड़ी अपने थूक से पल्लू को गिला करके चश्मा पौंछ-पौंछकर मुझे बार-बार ऐसे निहार रही थी जैसे कोई उम्र कैद की सजा पाया हुआ कैदी किसी के आने का इंतजार कर रहा हो और फिर एक हाथ से इशारा करके मुझे बुलाने लगी। मैंने ड्राइवर से कहा कि....तुम टायर बदली करो मैं आता हूँ। जब मैं थोड़ा नजदीक पहुँचा तो बूढ़ी अम्मा ने वापस जाने का इशारा कर दिया। मैं समझ नहीं पाया ... मेरे पैर जाने को कह रहे थे पर मन बूढ़ी अम्माँ के वापस लौटने के इशारे पर काम कर रहा था। मैंने पैरों की भाषा को पहचाना और बुढ़ी अम्माँ के पास...
शूरवीर अहीर
Uncategorized, कविता

शूरवीर अहीर

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** वीर अहीरों बढ़े चलो, मत पीछे कदम हटाणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा।। भारत मां की सरहद पर, हंस-हंसकर प्राण खपा देंगे। भारत मां के चरणों में, दुश्मन की लाशें बिछा देंगे। उल्टा कदम हटाएंगे ना, खून की नदी बहा देंगे। दुश्मन को सबक सिखा देंगे, मत उल्टा मुड़के आणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा। बणा खून की मेहंदी भारत, मां के हाथ सजा देंगे। दुश्मन की गोली के आगे, सीना ताण लगा देंगे। इन वीर अहीरों की ताकत का, हम एहसास करा देंगे। गर्दन उतार दिखा देंगे, ऐसा मौका फेर नहीं आणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा।। म्हारे खातिर देश की सिमा, मां, बाप, बहन और भाई है। पूर्वजों ने इसके ऊपर, अपणी जान गवाई है। इसकी रक्षा करने खातिर, हम सब ने कसम उठाई है। ना गर्दन कभी झुकाई है, चाहे बेशक कट जाणा। जिसने मां का आं...
देख हिमालय है झुका
कविता

देख हिमालय है झुका

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** देख हिमालय है झुका, चकित खड़ाआकाश। बर्फीला तूफान भी, कर न सका कुछ खास।। पीड़ा सिर को पीटती, चीख रहे सब घाव । मन्नत माँगे मौत भी, भूल गई सब दाव।। टकरा-टकरा आ रही, पर्वत से चिंघाड़ । शंका में है शेर भी, काँपें जंगल झाड़।। माँ काली सी जब भरी, आक्रामक हुँकार । घबरा दुश्मन ने वहीं, डाल दिए हथियार।। नाड़ी फड़कें क्रोध से, आँखों में आक्रोश । दर्द दवाई माँगता, देख सिपाही जोश ।। . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्रीमती विजय देवी पिता : श्री बलवीर सिंह (शारीरिक प्रशिक्षक) पत्नी : श्रीमती सुशीला देवी संतान : रोहित कुमार, मोहित कुमार जन्म : ९ नवंबर १९७९ जन्म स्थान : गांव मालड़ा सराय, जिला महेंद्रगढ़(हरि) शैक्षिक योग्यता : जे .बी .टी. ,एम.ए.(हिंदी प्रथम श्रेणी) अन्य योग्यताएं : शिक्षा अनुदेशक कोर्स शारीरिक प्रशिक्षण कोर...
छोटा मुंह बड़ी बात
कविता

छोटा मुंह बड़ी बात

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** रातभर वह बादलों की गड़गड़ाहट के चलते सो नहीं पाया जैसे ...बकरे को कटने का पता चल गया हो आकाश में चमकती हुई बिजली उसके बदन पर जोर-जोर से कोड़े मार रही थी और वह हाथ जोड़कर मन ही मन बस एक ही वाक्य दोहरा रहा था कि... हे भगवान ! बख्श दे बिटिया की शादी है इसी साल अचानक ओलावृष्टि शुरू होती देख उसकी रूह कांपने लगती है जैसे ... राक्षस के भोजन के लिए आज उसी के बेटे की बारी हो ओलावृष्टि से बुरी तरह ध्वस्त फसल का नजारा आज... महाभारत के कुरुक्षेत्र से कम नहीं था वह खेत में घुटने टिकाकर एक शहीद की माँ की भाँति घायल फसल को सीने से लगा सिसकियाँ भर-भरकर रो रहा था कि... नजदीक खड़ा छोटा पोता उसके कंधे पर हाथ रख कर कंपकंपाते लब्जों में कहता है कि.... बाबा ! ...आप रोओ मत मैं साइकिल नहीं माँगूँगा . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्...
जीवन इक रैन बसेरा है
कविता

जीवन इक रैन बसेरा है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** जीवन इक रैन बसेरा है, जिसमें सुख-दुख का डेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। हर पल बदलता रूप है ये, कभी छाँव कभी धूप है ये। चालक इंसां के तन मन का, रखता अपने अनुरूप है ये। ॠतुओं की भांति अलग-अलग, आता ये बदलकर चेहरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कभी खुशियों का सूरज चमके, हृदय में प्रेम, प्यार पनपे। अनुराग ख्वाब छेड़े रुक-रुक, हँस-हँसके फूल खिलें मन के। नहीं समझ सका कोई इसको, गिरगिट का तात चचेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कहीं अपनों से बिछड़ा देता, कहीं औरों से पिछड़ा देता। कभी सफलता दे-देकर ये, बेहद मन को इतरा देता। लोहे से जब हालात बनें, बनता उस वक्त ठठेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कहीं लहर...
मिलना बहुत जरूरी है
कविता

मिलना बहुत जरूरी है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** मिलने की बेचैनी को वो, समझ रहे मजबूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।। येआलम बेताबी का हम बिल्कुल भी ना सह सकते। कौन बताएगा उनको कि हम उन बिन ना रह सकते।। तड़प रहे हैं ऐसे जैसे, मृग चाहत कस्तूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।। जब तक उनको देख न लें, आँखें मुरझायी रहती हैं। बिन मुस्कां के छींटों के, सूरत झुलसाई रहती हैं।। जख्म जिगर अब सह ना पाए, चोट बनी नासूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी, मिलना बहुत जरूरी है।। रस्सी के प्रयासों से, इक दिन पत्थर घिस जाता है। चसक चने के चक्कर में चक्की में घुन पीस जाता है।। पिसकर घुन की तरह चने संग, मुझे मरना मंजूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।। पास हमेशा देख हमें वो, इतना क्यों घबराते हैं? दुनिया क्या सोचेगी शायद, सोच ये ही शरमाते हैं।। हमने भी है...
कैसे उद्गम होत कवित का
कविता

कैसे उद्गम होत कवित का

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** कैसे उद्गम होत कवित का, कैसे उमड़े उर से धारा ? कैसे बहे भाव भंवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा।। जब सब जागे सो जाते हैं, तब चुपचाप ख्वाब आता है। उमड़-घुमड़कर, डूब-डूबकर, झूम-झूमकर मन गाता है।। पागल दिल को कुछ ना सूझे अपनी धुन में नाचे गाए। कल्पनाओं के तार समेटे, तब मनआंगन कवित समाए।। सब सुख फीके पड़ जाते हैं, बजता जब तेरा इकतारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। तेरे आने की आहट से, मन आनंदित हो जाता है । हँसकर हृदय हाव-भाव के, बीज कलम से बो जाता है।। कलम पकड़ बैठा हो जाता, छोड़ नींद अक्सर रातों में। करे सुबह स्वागत सूरज, बीते रात बातों-बातों में ।। रोम-रोम में रमे रोशनी, मिट जाता मन का अंधियारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। कलम कदम से चित पे चढ़के, मन की बात जुबां पे लाए। कहीं ज्ञान की गंग...