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हेल के मारे बेल हो गए
कविता

हेल के मारे बेल हो गए

नंदन पंडित इटियाथोक, गोण्डा (उत्तर प्रदेश) ******************** मँहगाई का ओढ़ लबादा तेल हो गए सखी, साजना हेल के मारे बेल हो गए झाँक रही हैं दालें ऊँची दूकानों से छोड़े कीमत-बाण सब्जियाँ उद्यानों से बहुत नाज़ मुफ़लिस करते थे नून-तेल पर नमक-तेल के आज स्वप्न से मेल हो गए खटकाते-खटकाते दरकारों की साँकल अरमानों ने दोनों हाथ कर लिए घायल कर लेती थी पद-रज भ्रमण ज्यों-त्यों करके अली, पहुँच से दूर बहुत अब रेल हो गए जेब, जरूरत में रहती है पकड़ा-पकड़ी एक जाल से छूटे दूजी बुनती मकड़ी सेठों का पट्टा गर्दन में कसता जाता बढ़ते-बढ़ते दुर्दिन फिंगर नेल हो गए परिचय :-  नंदन पंडित निवासी : इटियाथोक, गोण्डा (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...