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Tag: दिलीप कुमार पोरवाल “दीप”

डायरी का वो पन्ना
लघुकथा

डायरी का वो पन्ना

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** अक्सर ये कहा जाता है कि मतलब या काम निकलने के बाद लोग सब भूल जाते हैं। शाम का समय था, दिनेश अपने घर के हाल में अकेले बैठा था कि डोर बेल बजी। दरवाजा खोल कर देखा तो सामने चाचा जी खड़े थे। जय श्रीकृष्णा चाचाजी, आइए पधारिए की ओपचारिकता के बाद दोनों सोफे पर बैठ गए। चाचाजी मुझे फोन कर दिया होता तो मैं ही बस स्टैंड पर लेने आ जाता। थोड़ी देर की बातचीत के बाद चाचाजी मै आपके लिए चाय बना के लाता हूं। चाय की चुस्कियां लेते हुए चाचा जी बात किए जा रहे थे कि अचानक से नाराजगी वाले अंदाज से बोले कि बेटा आज कल कौन किसको याद करता है। ये दुनिया बड़ी मतलबी है। काम या वक्त निकलने के बाद सब भूल जाते हैं। चाचाजी की बात दिनेश को समझ आ रही थी कि आखिर चाचाजी ऐसा क्यों कह रहे, कहीं मुझे ही लक्ष्य करके तो नहीं बोल रहे हैं। दिनेश चाचाजी से ऐसी बात नहीं ह...
चींटी
कविता

चींटी

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** एक नन्ही सी चींटी एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। जैसे ये कतार में चलती है सिखा जाती है अनुशासन में रहना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। मुंह में लेकर दाना जब चढ़ती है दीवारों पर, सिखा जाती है परिश्रम करना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। जब गिरती है दीवार से तब उठकर संभलना फिर चल देना और दीवार पर चढ जाना, सिखा जाती है कैसे संघर्ष करना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। काम जब कोई हो बड़ा तब कई चींटियों को इकट्ठा करना, तब सिखा जाती है मिलकर बोझ उठाना। एक नन्ही-सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। मौसम विज्ञान की होती है बड़ी ज्ञाता, जब होती है कोई भूगर्भीय हलचल, या कोई और हो प्राकृतिक आपदा, तब कैसे ये अपने अंडो को लेकर सुरक्षित स्थान पर दौड़ी चली ...
हे वर्षा के देवता
कविता

हे वर्षा के देवता

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** हे वर्षा के देवता आस लगाए बैठे हैं देख रहे हैं मेघो की और कर दो मेघ गर्जना बरसा दो पानी हे वर्षा के देवता प्यासी है धरती प्यासे हैं खेत प्यासे हैं जीव जंतु मरणासन्न है पेड़ पॊधे उड़ेल दो अपना स्नेह नीर और कर दो सबको तृप्त हे वर्षा के देवता सरसराती हवाओं के साथ उमड़ घुमड़ कर दो नाद चमका दो बिजलियों से गगन भर दो सप्तरंगी रंग और बरसा दो स्नेहनीर हे वर्षा के देवता ताक रहे हैं धरती पुत्र आस लगाए बैठे हैं अब तो बरसा दो स्नेहनीर महका दो बाग बगिया और खेत और कर दो धरा का श्रृंगार हे वर्षा के देवता कूप है खाली खाली सरोवर है सूखे सूखे नदिया है आतुर मिलन से सागर को बरसा दो अपना स्नेहनीर हे वर्षा के देवता करते है अनुनय विनय दे दो अपना स्नेहाशीष और बरसा दो स्नेहनीर। परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल म...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) मीत हो तुम मन के मेरे ना कोई और दिल में सिवा तेरे कुछ बोल सुनना चाहें दीप तुम्हारे माझी बन कर चलू संग तिहारे री सजनी ले चल नदियां किनारे पोर पोर में  रहो बसी हमारे रच बस जाऊ संग तिहारे वादी हो हरी भरी या कांटो भरी लड़खड़ा कर भी चलू संग   तिहारे री सजनी लिख दी प्रीत की पाती नाम तुम्हारे परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
कड़वे अंगूर
लघुकथा

कड़वे अंगूर

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजिट अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) कोरोना के चलते अभी-अभी लॉक डाउन खुला ही था कि एक फेरी वाला अपनी ठेला गाड़ी लेकर फल बेचने निकला। उसे रोकते हुए मैंने आवाज लगाई भइया अंगूर है क्या? मुंह पर मास्क लगाए, हाथो में दस्ताने पहने फेरी वाला बोला हां है बाबू जी। मै उसकी ठेला गाड़ी के करीब पहुंचा ही था कि उसने झट से सेनिटाइजर की बॉटल आगे करते हुए मेरे हाथ धुलवाकर बोला अब आप अंगूर आपकी पसंद से छांट लो। मीठे तो है ना, मेरे सवाल के जवाब में वह बोला आप अंगूर धो के चख लो बाबूजी। ठीक है भाई, क्या भाव लगाओगे। ₹ ३५ के एक किलो वो बोला। ₹३५ देकर ठीक है एक किलो दे दो भाई। अंगूर लेकर मैंने श्रीमती को दिए, उसने अंगूर लेकर धो कर फ्रिज में रख दिए। दोपहर में जब थोड़े अंगूर खाने के लिए फ्रिज से निकाले, श्रीमती ने अंगूर का पहला दाना खाते ही, ये क्या ? कड़वे अंगूर ...
चेतना का अंकुरण
कविता

चेतना का अंकुरण

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** आओ मिल बैठ कर करे विचार कौन थे हम क्या थे हम क्या हो गए क्यों हो गए आओ मिल बैठ कर करे विचार बीज कोई ऐसा बोए कि जिसके अंकुरण से हो जाए जन जन का उद्धार आओ मिल बैठ कर करे विचार करे अतीत की व्याख्या करे वर्तमान का समाधान और करे भविष्य का आकलन आओ मिल बैठ कर करे विचार करे कुछ ऐसा कि कुमति छोड़ पाए सुमति हो जाएं चहुं ओर शांति और खोले प्रगति के द्वार आओ मिल बैठ कर करे विचार बीज कोई ऐसा बोए नवयुग का हो आरम्भ और प्राणी मात्र बने आशावान आपस में हो भाई चारा बना रहे विश्वास और खत्म हो नफरत की दीवार आओ मिल बैठ कर करे विचार बीज कोई ऐसा बोए कि हो जाएं राजनीति विदूर धर्म युधिष्ठिर और खांडवप्रस्थ हो जाएं इंद्रप्रस्थ दीप कोई ऐसा प्रज्जवलित करे दूर हो जाए सारा तिमिर और भर जाए जन जन में ज्योतिर्गमय भाव आओ मिल बैठ कर करे विचार मोह माया सारी तजकर कर्म ...
पलायन से वापसी
कविता

पलायन से वापसी

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** सब है अपने अपने घरों में अब कौन ले सुध इनकी ये कैसे हालात है ये कैसी बेबसी है ना कोई आशिया है ना कोई सहारा है जाए तो जाए कहां जाए तो जाए कैसे ना सड़क पर कोई वाहन ना ट्रेक पर कोई ट्रेन चले जा रहे है निराशाओं में निराशाओं का ना कोई पारावार है खाने पीने के है लाले पैरों में पड़ गए है छाले कंठ है सूखा पेट है भूखा हाथो में नौनिहाल सिर पर गठरी चले जा रहे है बेतहाशा बचाने को जान अपनी कोरोना का ये कैसा रोना है भूख प्यास से मर जाना है चले थे घर से पलायन कर कुछ रोजी रोटी कमाने को मा बाप को घर छोड़ कर आज ये कैसे हालात है चले जा रहे है बस चले जा रहे है पलायन वापसी पर। . परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉ...
आ पिला दे आंखों से
कविता

आ पिला दे आंखों से

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** आ पिला दे आज आंखों से इतनी दीप न नाम ले मयखाने का कभी हो जाए मदहोश पी के नजर का जाम हो जाए तो हो जाए यह बात आम नैन तेरे जैसे दो प्याले होठों पर है जो बात आज कह डाले जी रहे हैं तन्हाई में तेरी यादों के सहारे चूम लूं लबों को लेकर बाहों में अपने मन से जो तू मिल जाए जला दे प्यार का दीप प्यार का दीप कर दे जीवन में उजियारा हुई शाम तो तेरा ख्याल आया जुबां पे सिर्फ तेरा नाम आया आ पिला दे आज आंखों से इतनी दीप न ले नाम मयखाने का कभी . परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
आदमी है ये अजब गजब
कविता

आदमी है ये अजब गजब

********** रचयिता : दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता संकल्प जो ये मन में लेता काम वो अचानक कर जाता काम काज से इसके लोग हक्का बक्का रह जाता मौका नहीं किसी को ये बचने का देता l आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता अद्भुत है इसकी क्षमता बड़े-बड़े फैसले राष्ट्रहित में लेता कभी जीएसटी तो कभी नोटबंदी लाता स्वच्छता अभियान ये लाता पता नहीं कहां कहां की ये सफाई कर जाता l आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता देश प्रेमियों को ये गले लगाता मक्कारो भ्रष्टाचारियो को बाहर का रास्ता दिखाता विरोधी कुछ समझ नहीं पाता कोई इसे हिटलर तो कोई तानाशाह बताता बात ये मन की करता कोई समझ पाता कोई समझ नहीं पाता और कोई समझ कर भी ना समझता तो उसे फिर ये अपनी भाषा में समझाता l आदमी है ये अजब गजब कोई इसे समझ नहीं पाता क्या ट्रंप, क्या पुतिन सबको अपना बना लेता इमरान देखता रह जाता...
कश्मीर
कविता

कश्मीर

*********** रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  कश्मीर से धारा ३७० और ३५ ए हटने के बाद कश्मीर हिंदुस्तान के बारे में क्या सोचता है उसको लेकर यह कविता लिखी गई है l मेरी रगों में तेरा ही लहू है मां मैं तेरा हूं तेरा ही रहूंगा मां ना बहे और लहू किसी का यहा बना रहे अमन-चैन सदा यहां यह केसर क्यारीया यह हरी भरी वादियां तेरे लिए कुर्बान मा कहते हैं मुझे धरती का स्वर्ग मेरे लिए तो तू ही स्वर्ग है मां मुझे बहुत सताया इन जालिमों ने देशद्रोहियों गद्दारों आतंकियों ने मैं तो पहले ही तेरी पनाहों में था अब जाकर तूने मुझे अपना बनाया मां बरसो रहा मैं व्याकुल तेरे बिना मा आंचल में तेरे आकर लगा जैसे जन्नत में आया मां क्या गंगा क्या जमुना क्या सरस्वती मैं तो बस झेलम चिनाब तक ही सीमित रहा मा मैंरी रगो में तेरा ही लहू है मा मैं तेरा हूं तेरा ही रहूंगा मां ।।   लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

*********** रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  यदि हम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक रहना चाहते हैं, तो इसका माध्यम सिर्फ हिंदी ही हो सकता है। हिंदी हिंद कंद छंद वृंद, मंद द्वंद नंद बस आनंद ही आनंद सप्तसुरो के कलरव से सरोबार हुई हिंदी वीणा के तारों से झंकृत हुई हिंदी मानसपुत्रों के स्वरों से अलंकृत हुई हिंदी कश्मीर के किरीट से कन्याकुमारी के तट तक उपकृत हुई हिंदी। लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद ...
इश्क और अश्क
कविता

इश्क और अश्क

============================= रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  इश्क और अश्क न नाम लो अश्कों का , इश्क में अश्क तो बहते ही हैं l इश्क किया है इश्क करेंगे , इश्क में अश्क भी मोती से लगेंगे l इश्क में अश्क तो बहते ही है, अश्क भी गम और खुशी की कहानी कहते हैं l लोगों का क्या, लोग तो कुछ भी कहेंगे, वादा करो रो रो के अष्ट नहीं बहेंगे जब भी बहेंगे अश्क तुम्हारे, सोचना दिल मेरा रोया है l नाम न लो अश्कों का, इश्क में इश्क तो बहते ही हैं l इश्क का अश्क से रिश्ता है पुराना इसलिए मेरे अश्कों पर ना जानाl ना नाम लो अश्कों का, इश्क में अश्क तो बहते ही ll लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानि...