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निस्वार्थ भाव से उड़ान मासिक काव्यगोष्ठी का प्रथम कार्यक्रम सम्पन्न।
साहित्यिक

निस्वार्थ भाव से उड़ान मासिक काव्यगोष्ठी का प्रथम कार्यक्रम सम्पन्न।

इंदौर। संस्था विद्यांजलि भारत मंच (पंजी) इंदौर द्वारा आयोजित उड़ान मासिक काव्यगोष्ठी रविवार को चाय बडिस कैफे गोपुर चौराहे पर सम्पन्न हुई जिसमें ४० से अधिक श्रोताओं के आगमन से माहौल जम गया। संस्थापक दामोदर विरमाल ने बताया संस्था अभी तक बार्षिक आयोजन निरंतर रूप से करती आ रही है। किंतु काव्यगोष्ठी करने का यह पहला प्रयास था। हमारी संस्था का प्रयास है कि घरों में छिपी प्रतिभाओ को स्वतंत्र मंच व सम्मान बिल्कुल निशुल्क व निस्वार्थ भाव से प्रदान किये जाए। और यही वजह रही कि आयोजन की अंतिम बेला तक श्रोता व कलमकारों का आगमन होता रहा। संस्था समन्वयक जितेंद्र शिवहरे ने कहा कि प्रत्येक मासिक काव्यगोष्ठी से हम २ श्रेष्ठ कलमकारों का चयन कार्यक्रम में आमंत्रित निर्णायक मंडल द्वारा करेंगे। और उन्ही में से श्रेष्ठ ७ कलमकारों को हम वार्षिक आयोजन महारथी विराट कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह में काव्यपाठ करने का ...
पैसे मांगलो तो…
कविता, मुक्तक

पैसे मांगलो तो…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** विषय: वर्तमान परिदृश्य (कोरोना) विधा: कविता/मुक्तक हर किसी को रोटी की अहमियत सिखाने लगे है लोग। अबतो चलते रस्ते औकात दिखाने लगे है लोग। जिसने कभी पैसों के अलावा किसी को नही पूजा, अबतो नास्तिक होकर भी मंदिर जाने लगे है लोग। जो जाया करते थे टाई लगाकर रोज़ दफ़्तर को, अब वही सब्जी का ठेला लगाने लगे है लोग। आया अब कोरोना ऐसा सबक सिखाने कि, अब घर मे ही बनी चीज़े खाने लगे है लोग। कोरोना में कमाई की हदें भी पार की जिसनें, अब वही एक एक करके ऊपर जाने लगे है लोग। पहले जो कहते थे कि मरने की फुर्सत भी नही है, अब वही फुर्सत में ज़हर खाने लगे है लोग। जो उड़ाया करते थे कभी लाखों किसी महफ़िल में, अब वही पैसा पाई पाई करके बचाने लगे है लोग। जो छाया है आजकल हमारे बीच तंगी का दौर, पैसे मांगलो तो हालत खराब बताने लगे है लोग। परिचय :- ३१ वर्षीय दा...
तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।
कविता

तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है। ये फासले और भी बढ़ जाऐ तो अच्छा है। तुम्हारी चाहतें तो हमको नही हुई हासिल, तू अब गैर ही बन जाए तो अच्छा है। हमारी तो उम्र गुज़र गई तेरी चाहत में, अब तू इस आग में ना जले तो अच्छा है। बरसों से थी दुआ की तू मेरे साथ रहे, शुक्र है तू अब मेरे करीब नही तो अच्छा है। क्या फर्क पड़ता है तुझे कि मैं कैसा हूँ, तुझे मेरी याद ही ना आये तो अच्छा है। वैसे भी तूने मुझे कहीं का तो छोड़ा नही, तू अब मेरे सामने ही ना आये तो अच्छा है। दिन किये थे खर्च खराब की थी रातें, ऐसा वक्त तुम्हारा ना आये तो अच्छा है। तुमने जो किया वो सरासर गलत था, प्यार का अर्थ कोई धोखा बताए तो अच्छा है। रहता था तेरी मोहब्बत का साया मेरे साथ। अबतो तेरी परछाई भी ना हो तो अच्छा है। मोहब्बत की सज़ा तो जहन्नुम से बत्तर है, अब तो बस मौत ही मिल ज...
जब आता है श्राद्ध
कविता

जब आता है श्राद्ध

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जब आता है श्राद्ध, तभी दिखते है श्रद्धा भाव। जीते जी खिलाया नही, अब कहते हो खाओ। ढूंढ़न से मिलते नही, करते कौए कांव कांव। मिलते भी है एक दो, तो सुनते नही बुलाव। समझो उनके अंदर है, उन पूर्वजो का ठांव। वो देख आज पछता रहे, जो दिए आपने घाव। चाहते थे वो आपसे, केवल श्रद्धा और भाव। रखो हमेशा पास उन्हें, तुम रहो शहर या गांव। घर का मुखिया था कभी, उनका सबसे लगाव। वो घर मे दबके रहा, पड़ना था जिनका दबाव। अब तुम मेरे हिस्से का, कौओं को ना खिलाओ। खुदको समझो कौआ, और खुद बैठे बैठे खाओ। करो ना बातें बड़ी बड़ी, मत झूठा प्यार दिखाओ। जो रहते बृद्धाश्रम में, अब उनको भोज कराओ। पछतावा करने में अब, समय ना और गंवाओ। कहीं दान तो कहीं कहीं पर, हरा वृक्ष लगाओ। समय के रहते तुम करो, पितरों का रख रखाव। आशीर्वाद स्वरूप तुम्हें वो दे जाए चन्द्रमा छांव। तर्पण श्र...
मेरा जीवन ऋणी है जिनका
कविता

मेरा जीवन ऋणी है जिनका

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरा जीवन ऋणी है जिनका, जो खुद ईश्वर कहलाते है। हम चाहे उन्हें भूल भी जाएं, वो हमें कभी ना भुलाते है। बचपन मे जो उंगली पकड़, हमको चलना सिखाते है। क्या है सही गलत जीवन मे, यह सब हमको बताते है। दया धर्म और संस्कार का, वो हमको पाठ पढ़ाते है। रूठे अगर कभी जो हमतो, वो हमको आके मनाते है। हर इच्छा हर ज़िद को जब, हम उनको जाके बताते है। अपनी इच्छा मारके वो तो, हमको खुश कर जाते है। ऐसी मां और पिता को क्यों, हम पास नही रख पाते है। जन्मों जन्मों तक हम उनका, ये ऋण चुका ना पाते है। ऐसे मात पिता को हम तो, प्रतिदिन शीश झुकाते है। वही हमारे सच्चे शिक्षक, जो हमको ज्ञान दिलाते है। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्...
बाबाओं के चक्कर में…
कविता

बाबाओं के चक्कर में…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भगवान बनकर दुनिया हिलाने की बात करते है। आत्मा को परमात्मा से मिलाने की बात करते है। बड़े बड़े आश्रम है जो कई एकड़ में समाया है। आलीशान बंगले जिसमे स्वमिंग पूल बनाया है। कई बड़े शहरों में इनके वीआईपी तो फ्लेट है। जिसमे लगे कैमरे वो लेडीज़ के टॉयलेट है। कुछ अंधभक्त मूर्खता की तो हद पार करते है। खुदका ईश्वर छोड़ बाबाओ पे ऐतबार करते है। पता नही क्या मिलता है वहां क्या लेने जाते है। सत्संग के नाम पर हजारों खर्च करके आते है। ज्ञान लेने के लिए क्या दान भी ज़रूरी होता है। ईश्वर को पाने के लिए केवल ध्यान ज़रूरी होता है। स्वयं के लिए आस्था आपके दिल मे जगा देते है। और धीरे धीरे वो आपके ईश्वर को ही भुला देते है। आप गए तो तो पूरे परिवार को भी बुला लेते है। मनको परिवर्तित करने में ये जगजाहिर होते है। ये मूर्ख बनाने में तो जबरजस्त माहिर हो...
कारगिल दिवस पर ऑनलाईन कवि सम्मेलन।
साहित्यिक

कारगिल दिवस पर ऑनलाईन कवि सम्मेलन।

महू। अखिल भारतीय साहित्य परिषद महू इकाई द्वारा गूगल मीट के माध्यम से ऑनलाईन कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। कारगिल एवं अभिभावक दिवस के उपलक्ष पर आयोजित इस शानदार आयोजन में मध्यप्रदेश के कई प्रतिष्ठित रचनाकार शामिल हुए और अपनी एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। जिसमें कार्यक्रम के मुख्य अतिथि त्रिपुरारीलाल शर्मा द्वारा हिवड़ा में लगा गई आग, डॉ गिरजेश सक्सेना- देश की माटी को समर्पित, गगन खरे- आई बरखा चारों ओर, दशरथसिंह ठाकुर- हाथों में बीता बचपन, धीरेंद्र कुमार जोशी- वो जान लुटाए सीमा पर, श्रीमती बिंदु के पंचोली- मां की महिमा, विनय जोशी- ज़िन्दगी पूछती रही, डॉ विमल सक्सेना- अमन है गर जंग का, विनोदसिंह गुर्जर- श्रीराम मेरे जनपातक हरना, दामोदर विरमाल- मां भारती मां भारती, विजय पांडेय- सखी सावन की करलो तैयारी, जैसी शानदार रचनाओं का काव्यपाठ हुआ। मंच का संचालन वरिष्ठ कवि धीरेंद्र जोशी एवं आभार उपाध्यक्ष श्र...
हे मां सरस्वती
भजन

हे मां सरस्वती

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे ३ इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। मैं करता रहूँ अपनी कलम से तेरी सेवा २ मिलता रहे बस तेरी कृपा का मुझे मेवा। २.. इस सृष्टि में हर कोई मुझको ऐसा मान दे... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। मां वीणापाणि शारदे दे ऐसी संगती २ हर रूप में तू साथ रहे मात भगवती २.. वर्णन तेरा ही कर सकूं वो वरदान दें... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। सबसे प्रथम प्रभात तेरी वंदना करूँ २ तेरे अलावा मैं कहीं किसी से ना डरूँ २.. तेरे नाम से ही जग मुझे ये सम्मान दे... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास कर...
तूने जो दिया ज़ख्म
ग़ज़ल

तूने जो दिया ज़ख्म

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। धोखा और दिल तोड़ना दस्तूर बन गया। मुझको तू दिखाती रही मजबूरियां सभी...२ मैं भी उन्ही को देखकर मजबूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। बनते हो क्यों शरीफ गुनहगार हो तुम्ही...२ जो दिखाया आईना तो ये कसूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। दुनिया की चमक तुमको मुबारक हो मतलबी...२ तुमको सनम बता के मैं मशहूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं...
मोहब्बत की है
ग़ज़ल

मोहब्बत की है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शिकायत सभी ने की है उस रब से यारो, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। गुनाह करके हर शख्स परेशान सा दिखता है, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। दर्द दिखा नही सकते आंसू बहा नही सकते, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। दुनिया की नज़रों में अक्सर गिरा करते है हम, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ज़ख्म इतना गहरा है और दवा मिलती नही, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। उम्मीद दिखती नही और साथ कोई देता नही, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। जुबां अगर खोली तो कितने राज़ खुल जाएंगे, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ज़ख्म देना हमे भी आता है पर उन्हें खोना नही चाहते, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ये शिकायतों का दौर तो चलता रहेगा मगर, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। . परिचय :-...
क्या ज़माना आ गया है
कविता

क्या ज़माना आ गया है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शकल भले ही अच्छी न हो उनकी, सेल्फी लेकर मन को खुश करते है वो। कोई देखे न देखे उन्हें प्यार की नज़रों से, एक तरफा ही अजीब प्यार करते है वो। अगर पूछ लिया उनसे की चाहते क्या हो? फिर तो इज़हार करने से भी डरते है वो। आग लगी रहती है, शोले भड़कते रहते है, अपनी होते हुए भी दूसरी पे मरते है वो। कई दिलजले है इस जमाने मे यारों, बुढ़ापे में भी जवानी का दम भरते है वो। जो बने फिरते है ज़माने में खड़कसिंह, घर मे ही अपनी बीवी से डरते है वो। क्या ज़माना आ गया है ये क्या हो रहा है? गुनाह करते है और फिर मुकरते है वो। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindiraks...
कर दो धरा पवित्र
कविता

कर दो धरा पवित्र

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** प्रभु रामजी चल पड़े,,,,, सेना लेकर साथ। आज सिया को लाएंगे, दे रावण को मात। लंका होगी अग्निमय और रावण का संहार, संग हनुमत सुग्रीव है,,, जामवंत भी साथ। हे महादेव प्रण पूरा होगा आज मेरे श्रीराम का। जबतक पूरा काम नही, नाम नही विश्राम का। २ महादेव हे महादेव, महादेव हे महादेव.....३ करदो धरा पवित्र आज, और असुरों का संहार। बढ़ते पाप घटाओ प्रभु, सब दूर करो अंधकार। अमरता है प्राप्त जिसे, ब्रह्मा ने ये वरदान दिया। अंत करो उसका तुम हे जिसने अभिमान किया। सत्य की होगी जीत ये दिन, आखरी है संग्राम का.... हे महादेव प्रण पूरा होगा आज मेरे श्रीराम का। जबतक पूरा काम नही, नाम नही विश्राम का। २ महादेव हे महादेव, महादेव हे महादेव.....३ तीनो लोक के देवता तुमसे करते है ये पुकार प्रभु। हो जाएंगे धन्य सभी पर,,,,, होगा ये उपकार प्रभु। सत्य सनातन ध...
तेरा आंचल पाकर
कविता

तेरा आंचल पाकर

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। देख सुबह तेरी सूरत को सगरे काम संवर जाते। तुझको करे दुखी जो जग में उसके काम बिगड़ जाते। करूँ याद ईश्वर को उसमे तेरी शकल है माँ... तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। कैसे भूलूँ मेरा बचपन जब तुमने संघर्ष किया। देकर जन्नत गोद मुझे फूलों का स्पर्श दिया। होता रहा सफल मैं क्योंकि तेरा दखल है माँ। तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। आज भी तेरे हाथों की रोटी का कोई जवाब नही। जितना तूने दिया है मुझको उसका कोई हिसाब नही। चित्र तो लगा रखा घर मे जो तेरी नकल है माँ। तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। रहकर मुझस...
करके तन्हा मुझे
कविता

करके तन्हा मुझे

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। मुड़के देखोगे जो पीछे तो मुझे पाओगे। क्या मेरा साथ तुझे नापसन्द आया था। तू तो कहती थी कि मैं तेरा ही साया था। २ क्या तुम्हें गैर की बातों ने मुझसे दूर किया, कसूर इसमें भी तुम मेरा ही बताओगे... करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। तुम्हारे अपने ही मुझे तुमसे दूर करते थे। हमतो इस बात को भी कहने से डरते थे। मैं तुम्हे कहीं खो ना दूं ये फिकर सताती थी। तुम्हारा हाल तुम्हारी ही सहेलियां बताती थी। २ हुए बदनाम हम कई बार तुझको बचाने में, नाम इसमें भी तुम मेरा ही लगाओगे... करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। बिगड़ता कुछ नही बस तुम मुझे समझ जाती। जाने से पहले एक बार कुछ तो बता जाती। वजह क्या थी मुझे इस तरह छोड़ जाने की। क्या तुम्हें चाह थी... कुछ और पाने की। २ जानता हूँ तुम नही छोड़ोगे ज़िद अपनी, भला मुझे नह...
अबतो मंदिर खोलदो
कविता

अबतो मंदिर खोलदो

अबतो मंदिर खोलदो....केवल उसका सहारा है। बहुत हो गए दूर उससे अब होता नही गुज़ारा है। क्या मालिक को पता नही हमसब उसके बन्दे है। उजड़ गए कइयों के घर......बन्द पड़े सब धंधे है। देखने दो उसको भी थोड़ा बाहर कैसा नज़ारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। डॉक्टर है भगवान... हमारी संस्कृति बतलाती है। दवा से ज्यादा दुआ हमे.....ज्यादा काम आती है। धर्म, आस्था, संतो का..भारत ही एक ठिकाना है। इन्ही तीन के दम पर इस महामारी को भगाना है। करता हूँ करबद्ध निवेदन..... ये कर्तव्य हमारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। कहीं बाढ़, भूकंप कहीं तो बमबारी हो जाती है। दुष्कर्म, हत्याएं अक्सर कई सवाल कर जाती है। कुप्रथा और दहेज की बलि बेटियां चढ़ जाती है। कहीं भुखमरी और तंगी से आफत बढ़ जाती है। कुछ तो हुआ अनर्थ आपसे प्रकृति का इशारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। देशव्यापी महामारी का पहले भ...
हमसब उसके बन्दर हैं
कविता

हमसब उसके बन्दर हैं

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ना जाने कब छुटकारा, मिलेगा इस महामारी से। स्वास्थ्यकर्मी और वर्दीवाले, हुए ग्रसित बीमारी से। कोई मर रहा भूख से, तो कोई किसी लाचारी से। कोई फसा है दूर देश, कोई कैद घर की दिवारी से। घर बैठे मजदूर उनकी अब, बेरंग दुनियादारी है। भगा दिया उन सेठों ने, ईनके सर बेरोजगारी है। क्या पालेंगे बच्चों को, अब क्या ज़िम्मेदारी है। नही निकलना घर से अब, आदेश ये सरकारी है। हरपल अब तो लगता है कि जाने की तैयारी है। ऐसा खौफ लगा है इसका, ये घातक बीमारी है। फिर भी ईश्वर ठीक करे सब, ये आस्था हमारी है। कुछ गलतियां हमारी, कुछ गलतियां तुम्हारी है। दिखलाएगी खेल प्रकृति, अब उन सबकी बारी है। की जिसने भी जीवहत्या वो हर कलाई हत्यारी है। युग चौथा व चरण भी चौथा कुछ होने की बारी है। हम सब उसके बन्दर है, वो ऊपर बैठा मदारी है। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर वि...
बिगड़ना मेरा जायज़ है
कविता

बिगड़ना मेरा जायज़ है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगता हूँ जिसको मैं कुंठित, वजह उन्ही का साथ है। खुद ने मुझको सरपे चढ़ाया, तभी तो यह हालात है। जब मानते हो मुझको बेटा, तो बिगड़ना मेरा जायज़ है। क्या इस हक को भी छीन लिया, अब बताओ ना फिर क्या बात है? बन जोहरी की मेरी परख तो, में हीरा था पत्थर का। जब तराशना शुरू किया तो, प्रश्न मिला मेरे उत्तर का। रहा ढूंढता जिसे जहाँ में, वो गुरु आपमे पाया है। नही भान था लिखने का, अब जाके लिखना आया है। क्या बीच राह में छोड़ मुझे, अब इतनी बड़ी सज़ा दोगे। अब तो कर दो क्षमा मुझे, क्या और परीक्षा भी लोगे। बिना आपके कुछ नही मैं, दिन काले अँधेरी रात है। खुदी ने मुझको सर पे चढ़ाया, तभी तो यह हालात है।। लगता हूँ जिसको मैं कुंठित, वजह उन्ही का साथ है। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश...
दामोदर विरमाल को “कलमकार” साहित्य सम्मान
साहित्यिक

दामोदर विरमाल को “कलमकार” साहित्य सम्मान

महू (इंदौर)। मध्यप्रदेश के उभरते युवा कवि दामोदर विरमाल की नवमान पब्लिकेशन अलीगढ़ उप्र द्वारा प्रकाशित "चमकते कलमकार" (साहित्य आकाश के ध्रुव तारे) साझा संग्रह भाग १ पुस्तक में दो रचनाओं को स्थान मिला है। इनके द्वारा काव्यरचना के उत्कृष्ट सृजन करने पर नवमान साहित्यिक समूह के मुख्य संपादक श्री ललित उपाध्याय, सह संपादिका रश्मिलता मिश्रा, एवं प्रकाशक विजय प्रकाश नवमान द्वारा "कलमकार" साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रकाशित पुस्तक में देश के १८ राज्यों से १६० रचनाकारों का साझा संग्रह है। उक्त पुस्तक में कवि विरमाल की रचना "दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे" एवं "मां से बड़ी कोई जन्नत नही" को पेज नम्बर १०७ व १०८ पर स्थान दिया गया है। पुस्तक आईएसबीएन नम्बर के साथ ऐमेज़ॉन व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। इस उपलब्धि पर परिवार सहित इष्टमित्रों ने बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित की है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
मैं भारत का वासी हूँ
कविता

मैं भारत का वासी हूँ

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मैं भारत का वासी हूँ............मै राम नाम का रखवाला। में जगतजननी का बेटा हूँ......मैं एक कवि हूँ मतवाला। मैं लिखता हूँ गीत ग़ज़ल....श्रृंगार में लिखता सुरमाला। कोई बैर ना करता है मुझसे...मैं हूँ एक ऐसा दिलवाला। मैं शायर हूँ एक नशीला..........मेरी ग़ज़ल है मधुशाला। मैं निडर जागता जीता हूँ..........मेरा भोला है रखवाला। मैं पीकर कड़वे घूट सदा......सबको दिखता हँसनेवाला। वो कलम को ताक़त देता जो.....है साथ मेरे ऊपरवाला। क्या करता हूँ क्या लिखता...कोई खबर नही लेनेवाला। मेरा स्वयं आईना दर्शक है......कोई नही दाद देनेवाला। मैं भारत का वासी हूँ...........मै राम नाम का रखवाला। में जगतजननी का बेटा हूँ.....मैं एक कवि हूँ मतवाला। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्य...
जाने क्यों
कविता

जाने क्यों

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लोग ना जाने क्यों घरों से बाहर जा रहें है। और निकलते ही पुलिस के डंडे खा रहे है। पता है की दूरी बनाने के आदेश आ रहे है। फिर इकट्ठे होकर क्यों तमाशा बना रहे है। कुनकुना पानी पीना है, साबुन से हाथ धोना है। स्वच्छता बनाना है, घरों में लॉकडाउन होना है। खुदतो नियम पालते नही दूसरों को बता रहे है। इसीलिए तो रोज़ाना पुलिस के डंडे खा रहे है। मोदी जी प्रणाम करना सबको सिखा रहे है। संयम से रहना अबतो टीवी पर दिखा रहे है। २२ को घण्टी ०५ को दीपक भी जला रहे है। चौराहे पर प्रसाद के लिए साहब बुला रहे है। बुरे समय मे भी लगता है अच्छे दिन आ रहे है। तभी तो हंसते हंसते पुलिस के डंडे खा रहे है। सरकार की सख्ती प्रशासन को गलत बता रहे हैं। कुछ कहते है जनता को जबरजस्ती सता रहे है। स्वास्थकर्मी भी आपके लिए अब मार खा रहे है। खुद के परिवार को छोड़ आपक...
मत निकलो बाहर मरने के लिए
कविता

मत निकलो बाहर मरने के लिए

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ज़िन्दगी पड़ी है काम करने के लिए। मत निकलो बाहर तुम मरने के लिए। थोड़े से दिन की बात है घर मे ही रहो, तैयार रहो सबको सतर्क करने के लिए। आया है कोरोना और जाएगा भी सही, यूं ही चुपचाप ना बैठें हम डरने के लिए। नज़र रखो घर मे आने जाने वालों पर, कुछ है तो नही संक्रमित करने के लिए। साबुन से धोते रहें लगातार हाथों को, ताज़ा भोजन लीजिये पेट भरने के लिए। मीठा खाना और ठंडा पीना बन्द है, गर्म पानी ठीक गला तर करने के लिए। नवरात्रि में में हम मंदिर भी न जाएं, वो भी घर है नमाज़ अदा करने के लिए। दिल्ली यूपी बॉर्डर पर भीड़ लगी है, वो लाचार है पैदल पलायन करने के लिए। दिल्ली में सिस्टम क्या सोया हुआ है?, लोग सड़क पर उतरें है अब मरने के लिए। किसी को नसीब नही हुआ दानापानी, कोई अगर देदे तो उसकी है मेहरबानी। जहां देखो इसी बात का हो रहा है रोना,...
हूँ एक मेहमान
कविता

हूँ एक मेहमान

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। क्या तेरा क्या मेरा जग में कैसी जग की माया। है तकदीर मेरी कुछ ऐसी मानव जन्म है पाया। रुके कभी ना थकें कभी हम आये ना थकान... हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। घर मे जो कुछ आया है किसी की किस्मत का। पैसा कभी पचता नही है अगर वो रिश्वत का। अपनी मधुर वाणी से खुदकी बनाओ पहचान... हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाएंगे। अच्छे कर्म की वजह से ही आप पूछे जाएंगे। करते चलो भला सभी का बनोगे महान... हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में...
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस व फागोत्सव पर काव्यनिशा सम्पन्न
साहित्यिक

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस व फागोत्सव पर काव्यनिशा सम्पन्न

महू। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं होली के पूर्व फागोत्सव के अवसर पर कोदरिया महू में अभा साहित्य परिषद, महू इकाई द्वारा कवि सम्मेलन आयोजित हुआ। एवं परिषद द्वारा महिला शिक्षिकाओं का सम्मान भी किया गया। दीपक जी पगारे के मुख्य आथित्य व शिवकुमार जी शर्मा के संयोजन में काव्यनिशा देर रात तक चली जिसमे सभी कवियों द्वारा होली व प्रेम गीत के साथ हास्य व शेरों शायरी की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से दामोदर विरमाल द्वारा की गई। आमंत्रित कवियों में देवांशी गुर्जर - महाकाल की बेटी हूँ। रमेश जैन "राही" - क्या होते है कसमे वादे। एस के अस्थाना - कुछ लिखता हूँ कुछ। डॉ विमल सक्सेना - ना हिन्दू खतरें में है ना मुसलमान। डॉ. रामपाल वर्मा - कुछ मंदिर बनाये बैठे है कुछ। चंदना जी कोदरिया - चलो आज वादा करते है। दामोदर विरमाल - आओ खेलें होली। डॉ. जगदीश चौहान - बन्द करो वो बाबियाँ जहां। बिंदु क...
मां बाप
कविता

मां बाप

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हकीकत को दुनिया मे पेश ना करें, अपनो के खिलाफ कभी केस ना करें। जीना है तो खुदके दम पर जियो यारों, मां बाप के पैसों पर कभी ऐश ना करें।। कमर साथ नही दे रही है अब सीढियां चढ़ने में। उम्र निकाल दी जिसने तुम्हारी ज़िद पूरी करने में। कुछ तो ज़िन्दगी निकल गई तुम्हारी बातें सुनने में, अब भी सुकून नही है थोड़ा सा वक्त बचा मरने में। कुछ ने तो अपनी दौलत भी अपनों पे वार दी। और कुछ ने अपनी ज़िंदगी खाने में गुज़ार दी। फर्क बहुत है आजकल की औलादों में साहब, चंद है जिन्होंने मां बाप की ज़िंदगी संवार दी।। शौक खत्म हो जाते है उनके, जब आप दुनिया मे आते हो। मगर तुम अपने शान के लिए, उन्हें नौकर तक बताते हो। क्या बुरे थे उस समय वो जब खूद भूखे रहते थे। तुम्हे खिलाया खुद पेट की पीड़ा सहते रहते थे। ये आजकल का नही बहुत ही पुराना किस्सा है। कोई कोई पराये न...
आओ खेलें होली
गीत

आओ खेलें होली

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भर पिचकारी रंग ना डालो, सुन साथी हमजोली। एक दूजे को गले लगाकर, आओ खेले होली। मिटादो सारे बैर जो दिल मे कबसे तुमने पाल रखे। उसको भी एक मौका दो जो दिल मे बुरे खयाल रखें। फाल्गुन की लहर में तुम भी, बनालो अपनी टोली। एक दूजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... रंग मित्रता का है पीला, प्रेम का रंग है गुलाबी। पियो भांग और खाओ मिठाई, मत बनो यार शराबी। किसी के दिल को ठेस ना पहुंचे, बोलो ऐसी बोली। एक दुजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... मौसम बदला शीत ऋतु की होने को है बिदाई। ग्रीष्म ऋतु की आहट हुई ये कैसी है रुत आई। बच्चों ने पिचकारी मंगाई बनाके सूरत भोली। एक दुजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... इस होली तुम कबसे बिछड़े अपनो को मिलादो। गलत आदतें बुरे कर्म तुम होली के संग जलादों। आओ थोड़ा नाचलें गालें थोड़ी करलें ठिठोली। एक दूजे को गल...