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Tag: दशरथ रांकावत “शक्ति”

इतना आसान है क्या
कविता

इतना आसान है क्या

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** तुमने कह तो दिया भूल जाओ भूलना इतना आसान है क्या, मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं जीना बिन तेरे आसान है क्या। सूख जाता है जब कोई शज़र छूट जाता है पत्तों का घर, टूटे पत्तों से जाकर के पूछो टूटना इतना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं.... जाने कितनी दफा हम तुम एक दूजे से छुप-छुप मिले, भूल जाते थे शिकवे सभी जब भी नैना से नैना मिले। इतने पहरो में मिलना कोई जान बोलो ना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं... याद तुमको वो वादे भी है क्या तुम थे मैं था और कोई नहीं, जाने कितनी ही रातें बिताई मैं जगा तुम भी सोई नहीं। इश्क़ की ऐसी लहरें उठी तैरना इतना आसान है क्या। मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं... मैने माना था सब कुछ तुम्हें तुमने धोखा दिया क्यू मुझे, तुम सजाओगी घर को मेरे हाय सपनो के दीपक बूझे। ते...
रावण जीत गया
कविता

रावण जीत गया

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** हमारे शहर में अब की रावण नहीं जलेगा, मुखिया ने कहा है वो गुनहगार नहीं है। पांच हजार की आबादी में एक शख्स नहीं बोला, सच है ये कड़वा कोई चमत्कार नहीं है। क्या फ़र्क पड़ता है, अच्छा हुआ, पैसें बचे, जिंदा लाशों से बदलाव के कोई आसार नहीं हैं। बेटे ने पूछा बाप से अबकी राम घर नहीं आयेंगे? क्या अयोध्या पर उनका अधिकार नहीं है? क्या चित्रकूट में भरत इंतजार में खड़े रहेंगे ? निषाद के फूल गंगा पार राह में पड़े रहेंगे ? क्या हनुमान सीना चीर के भगवान नहीं दिखाएंगे ? और क्या हम सब भी दीवाली नहीं मनायेंगे ? प्रश्नों की इन लहरों ने भीतर तक हिला दिया, अनजाने ही सही उसने मुझको खुद से मिला दिया। सच कहूं या झूठ बोलूं क्या समय की शर्त है, या कहूं कि बरसों पहले हुई अग्निपरीक्षा व्यर्थ है। आज दशरथ मौन है कैकेई की कुटिलाई पर, राम म...
राम नहीं नाम राज
कविता

राम नहीं नाम राज

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** छोड़कर साकेत नगरी राम लौटे फिर धरा पर, फिर कोई रावण ही होगा लौट जाऊंगा हरा कर। पर अयोध्या सीमा में घुसते ही पुष्पक रोक दिया, पांच सौ देने पड़े एक गार्ड ने था टोक दिया। जब महल ढूंढा मिला जर्जर सा एक पाषाण खंड, आवेग जो अब तक दबा था हो गया आखिर प्रचंड। दूर एक नूतन महल बनते जो देखा राम ने, दुख भंवर का मिला किनारा सोचा था श्री राम ने। पूछा जब एक मजदूर से क्या ये भवन मेरे नाम होगा, ५००० दोगे तो निश्चित एक पत्थर तेरे भी नाम होगा। खूब आदर पा के राजा राम हनुमत को पुकारें, अब तो बजरंग ही हमारे संकटों को आकर निवारे। जब हृदय की गहरी पुकारें सुन के भी हनुमत न आये, राम फिर बोलें सिया से है प्रिये हम व्यर्थ आये। नंगे पग तब एक बाह्मण भागता आता लगा, राम पहले चौकें थे फिर भाव से हनुमत लगा। गिर चरण में रो पड़े हैं प्रभु आप क्य...
दुर्योधन नही सुयोधन
कविता

दुर्योधन नही सुयोधन

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** मैं समय ठहर सा गया युद्ध जब भीम सुयोधन बीच हुआ, उस रणभूमि का कण-कण साक्षी क्या उसका परिणाम हुआ। अंत समय तक वीर लडा़ सौ बार गिरा फिर खड़ा हुआ, हो धर्म विजेता या पाप पराजित पर वीर सुयोधन अमर हुआ। क्षण मृत्यु का निकट हुआ माधव को निकट बुलाकर बोला, संतप्त हृदय से पीड़ा निकली तत्काल संभलकर यु बोला। हे गिरिधर एक बात सुनो मैं नीच नराधम दुर्योधन हूं, मैं पाप मूर्ति में कली रूप मैं अधर्म का संचित धन हूं। मैं विषघट हूं कुलनाशक मैं अनीति का वृहद वृक्ष हूँ। भातृशत्रु मैं कुटिल कामी मैं क्रोध लोभ का प्रबल पक्ष हूं। है कितने ही अवगुण अपार मैं महाभारत का हूँ आधार, मेरे कारण गीता कही मैं पाप स्वयं सत का आधार। तुम धर्म स्वयं को कहते हो सत्य सनातन बनते हो, पापों का दमन ध्येय तेरा इस हेतु देह नर धरते हो। क्या पाप कहो ...