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Tag: डॉ. सुरेखा भारती

हीलिंग से स्वस्थता
योगा

हीलिंग से स्वस्थता

डॉ. सुरेखा भारती *************** हीलिंग से स्वस्थता, अपनी और दूसरों की ... आज के व्यस्ततम जीवन में व्यक्ति अनेक तनावों से घिरा हुआ है। वह अपने मन की शांति चाहता है। शांति व्यक्ति को प्राप्त होती है, उसके आध्यात्मिक विचारों से। इसके अलावा ऐसी कोई वस्तु या विचार नहीं हैं जिससे उसे चिर शांति का अनुभव हो। मन का सुख व्यक्ति प्राप्त करता है और थोडे समय बाद वह पुनः बैचेन हो उठता है, फिर वह विचलित, अस्थिर मन के कहने पर चलता है। कभी दुःखी होता है तो कभी सुखी होता है। जीवन का अधिक से अधिक समय वह इसी उधेडबुन में नष्ट करता है कि कहीं चिर शांति प्राप्त हो। बीमार होने पर अनेक औषधियों के सेवन से भी वह दुःखी होता है। तब वैकल्पिक चिकित्सा ढूंढता है। आज वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में हीलिंग पद्धति स्वयं को स्वस्थ्य, उर्जावान रखने के लिए बहुत कारगार सिद्ध हो रहीे है। हीलिंग के बारे में यदि कुछ कहते हैं तो...
बेग से मिली मन की विषालता
कहानी

बेग से मिली मन की विषालता

डॉ. सुरेखा भारती *************** दरवाजे के बरामदे में अपने जूते निकालकर, वह बैठक वाले कमरे में ही सौफे पर दोनों पैर पसार कर लेट गया। लेटे-लेटे ही उसने अपने टाॅय को खोलकर एक तरफ पटक दिया। आँखें बंद की और आवाज दी। नीत....नीता ऽ जरा पानी लाना.... नीता हाथ में ग्लास थामे उसी और आ रही थी लो...... मुझे पता था आप आ गए है, मैंने पैरों की आहट जो सुन ली थी। यह कह कर उसने ग्लास रोहित के हाथों में थमा दिया। रोहित उस की ओर देख कर बोला - ‘आज मैें इतना थक गया हूँ,...... दिल्ली वाले बाॅस जो आए थे, उन्हें शहर में शापिंग करवानी थी और किसी अच्छे रेस्टारेंट में जाकर लंच करवाना था। हाँ बिल की पेमन्ट तो मिल जाएगी, पर उनकी बातें सुनते-सुनते मैं बहुत उब गया हूँ....।, रितेश को कहा था की तुम बाॅस के साथ चले जाओ...। तो सुना.. उसने भी बहाना बना दिया - ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं हेै, वैसे भी तुम्हे करना क्या है, उनके साथ ...
कोयल की कॅूक
लघुकथा

कोयल की कॅूक

डॉ. सुरेखा भारती *************** दीदी sss ......ओ दीदी ! आंगन में झाडू लगा रही मुन्नी, आवाज लगी रही थी। अब इसको क्या हो गया..... मैंने झल्लाते हुए अन्दर से ही बोला, क्या है? क्यो चिल्ला रही हो..? दीदी बाहर तो आओ sss ..... मैं बाहर आंगन में पहुंची, देखा मुन्नी दीवार के एक कौने मैं चुपचाप खड़ी है। ‘देखो...देखो कोयल कॅूक रही है.....’। उसे देखकर मैं ने भी सहसा कोयल की बोली सुनने का प्रयत्न किया। दूर कही कोयल बोल रही थी, कुछ पल के लिए मुझे भी अच्छा लगा। थोडी देर मुन्नी उसकी आवाज सुनती रही। कोयल की बोली बंद हो गई। उसने मेरी तरफ देखा और कहने लगी - दीदी, गाँव में हमारे आंगन में बड़ा सा आम का पेड़ था। इन दिनों कोयल उस पर बैठ कर कॅूकती थी, मैं भी उसके जैसी आवाज निकालकर उसे चिढ़ाती थी, फिर वह चूप हो जाती, फिर थोडी बाद कूँकती थी। अब शहर में आ गए हैं, अब कहाँ कोयल की कूक सनाई देती है। मेरा सारा दिन तो इस...
अब की कैसी राखी
लघुकथा

अब की कैसी राखी

======================= रचयिता : डॉ. सुरेखा भारती विवेक को राखी बांधते हुए, प्रिया के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शादी के ग्यारह साल बाद पहली राखी पर वह अपने भाई के हाथों में, अपने मायके आकर राखी बांध रही थी। राखी का त्यौहार इतना सूना हो जाएगा यह उसने सोचा भी नहीं था। शादी बाद पहली बार, आने के एक महिने पहले से उसने क्या-क्या सोच कर रखा था, माॅ के लिए, छोटे भैया के लिए, पापा के लिए। अपनी बड़ी बहनों से गिप्ट और माॅ के गोदी में सिर रख कर बहुत सारी बातें। कितनी ही यादें ताजा होकर उसके हृदय को सावन की बूँदों की तरह भिगा जाती, वह पुलकित हो जाती। अभी राखी को पन्द्रह दिन ही तो बाकि थे कि भैया का फोन आया पापा की तबीयत ठीक नहीं तुम देखने चली आओ। उसने कहा- ‘आ तो रही हूँ राखी पर, तब मिलना हो ही जाएगा।’ मम्मी, कमर में फेक्चर होने के बाद अब तो उठने-बैठने लगी है, पर मुझे दुःख है कि मैं उन्हें दे...