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मौन पाषाण मन‌
कविता

मौन पाषाण मन‌

डॉ. रमेश चंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रात के सन्नाटे में भूत होते देवदार चांद को चिढ़ाकर परछाईं देख रहे। झिझकते तारे गगन छोड़कर अधरों से जला रहे पहाड़ की गोद को। पत्तियों पर रैंगती अनगिनत चींटियां जीवन तलाश रही टहनियों से चिपक। असीम व्यथा समेटे सिसकते पहाड़ अब हवाओं की मार से चीखकर सुलग रहे। मौन पाषाण पर्वत आंसूओं को पीकर प्रेम की प्रतिक्षा में एकांत काटते विवश। मिलन को उतावले विकल कीट पतंग असमय होम हो रहे दावानल में डुबकर। परिचय : डॉ. रमेश चंद्र शर्मा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...