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Tag: डॉ. बीना सिंह “रागी”

मुट्ठी भर राख
कविता

मुट्ठी भर राख

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** नीले अंबर की लालिमा देखकर भाव से भाव का हम समर्पण करें सूरज उगते को सब ने नमन है किया डूबते को जी आओ नमन हम करें अभिलाषा उत्कंठा धन संपदा छल प्रपंच छद्म और उच्च शृंखलता अंतर्मन का ए मन मालिन सा हूआ शक्ति भक्ति प्रेम कर्महीन सा हुआ हर्षिता द्वार पे आ खटखटाती रही नवल रश्मियों का आओ आचमन हम करें नीले अंबर की वक्त अंजुरी से फिसलते गए हाथ में काल के हम सिमटते गये सत्यता सहजता दिव्यता छोड़कर चादर आडंबर का हम ओढ़े रहे कदम दर कदम राह झूठ की त्याग कर सत्य पथ का चलो अनुसरण हम करें नीले अंबर... बदचलन ख्वाहिशें उफान मारती रही सतरंगी लालसाएं तूफान लाती रही बेदर्द धड़कने इतराते रहे रूह निगोड़ी सांस संग मुस्कुराती रही मुट्ठी भर राख का सब खेल है जल अंजुरी में ले तर्पण हम करें नीले अंबर ... ...
करोना करोना करोना
कविता

करोना करोना करोना

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** हां तुम करोना हो हां तुम करोना हो हां हां तुम ही करोना हो मेरे देश का नहीं किसी और देश का सपना सुंदर सलोना हो हम तो वैदिक सनातन संस्कृति मर्यादा के पक्षधर हैं पूजा इबादत भजन कीर्तन मंत्र में अग्रसर हैं और तुम विदेशी माहौल में पलने वाले खतरनाक विषधर नमूना हो हम हाथ जोड़ शीश झुका कर दूर से ही करते हैं अभिनंदन नहीं करते हाथ मिला कर एक दूजे के गालो का चुंबन तुम जान से खेलने वाले एक कातिल खिलौना हो हमारे जमीन पर चांद सूरज सर्दी गर्मी वर्षा सभी तशरीफ लाते हैं घर-घर नित्य धूप दीप नैवेद्य लोहबान जलाए जाते हैं तुम सर्दी ठंडी में पनपने वाले जिव एक घिनौना हो चैन ओ सुकून नहीं मौत के नींद में सुलाने वाले बिछोना हो हां तुम करोना हो हां तुम करोना हो परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्ती...
निंदा शिकवा शिकायत
दोहा

निंदा शिकवा शिकायत

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** बुराई दूजे की ना करो जो मुझ में कछु अच्छाई ना होय निंदा पर निंदा क्यों करें जो जग में आप ही नींदीत होय देख-देख ईर्ष्या मन में धरे जो औरन की तरक्की होय धीर धरे जो मन में आपन आप हो आप उन्नति होय छोटे नीच लघु ना समझो जो तुमसे लघु होय मान आदर सभी का करें चाहे वह गुरु या लघु होय मनका मनका फेर कर दोष पराये की ना देखो कोय शिकायत की गठरी बना तुम काहे आपन सिर पर ढोय कहे बीना सुनो भाई लोगों जिंदगी चार दिनों की होय तोल मोलके बोलिए दिल में पीड़ा ना किसी की होय . परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलां...
खत चिट्ठी
कविता

खत चिट्ठी

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** याद आते हैं वह दिन जब हम हाथों से खत लिखा करते थे एक एक अक्षर से जैसे प्रेम स्नेह नेह के पुष्प खिला करते थे मास दो मास मैं कागज की जमीन पर मन की बातें लिख पाते थे जिसके नाम का संदेशा होता था वह खुशी से फूले नहीं समाते थे प्रिया की प्रेम भरी पाती पढ़कर प्रियवर झूम कर इतराते थे संदेशा हो अपने संतान का तो माता-पिता हृदय से मुस्कुराते थे डाकिया डाक लाया का इंतजार करना बढ़ा अच्छा लगता था पोस्टकार्ड हो या लिफाफा मे लिखा प्रेम ही सच्चा लगता था हमने माना खत के आने जाने में वक्त की अपनी मजबूरी थी फिर भी संबंधों में पावन खुशबू और दिलों में ना कोई दूरी थी हम कुछ पागल कुछ नादान हर हाल में इंसान हुआ करते थे याद आते हैं वह दिन जब हम हाथ से खत लिखा करते थे. परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दु...
हिंदी मेरा अभिमान
कविता

हिंदी मेरा अभिमान

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** हिंदी मेरा प्यार है हिंदी मेरा अभिमान हिंदी मेरा व्यवहार है हिंदी स्वाभिमान हिंदी सरल सहज और मीठी जुबान है लोगों को फिरअंग्रेजी पर क्यों है गुमान हिंदी है मेरे माथे की बिंदी है मेरा श्रृंगार हिंदी मेरे सभ्यता संस्कृति की है पहचान भाषा में प्रख्यात और विख्यात है हिंदी क्यों जूझ रही है पाने को अपना स्थान हिंदी सुर है सरगम है संगीत है ताल है हिंदी से ही मेरा हिंद और मेरा हिंदुस्तान . परिचय :-  डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलांग जोड़ियों का विवाह कराना उपलब्धि : विभिन्न संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय...
दर्द-ए-ग़म
ग़ज़ल

दर्द-ए-ग़म

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** जब भी दर्द-ए-ग़म मिला हम सोचते रहे कब कैसे और कब मिला हम सोचते रहे शायद उम्मीद ए वफ़ा लगा रखी थी हमने मिली बेवफाई तो वजह हम खोजते रहे राज ए मोहब्बत जो ना बता सके उसे ख्वाबों में उससे बाराहा हम बोलते रहे रूख ए मौसम साखे गुल सा बदन मेरा यू अर्रजे नियाजी इश्क को हम रोकते रहे इश्क मोहब्बत माना एक छलावा है बीना गुनहगार समझ खुद को ही हम कोसते रहे. परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलांग जोड़ियों का विवाह कराना उपलब्धि : विभिन्न संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मान द्वारा सम्मानित टीवी ...