गणतंत्र दिवस पर
डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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गणतंत्र दिवस पर सच्चाई की कविता पढ़ने आया हूँ।
उन नालायक़ के गालों पर एक थप्पड़ जड़ने आया हूँ।
जिनने मारा था, थप्पड़ उस दिन, सैनिक के गालों पर।
था शर्मसार बेज़ार देश .......... नाली के कीड़े सालों पर।
घाव हरा होना ही था, बच्चा बच्चा थर्राया था।
गद्दारों के हाथों ने, तब झंडा पाक उठाया था।
आग लगेगी मुल्क जलेगा, महबूबा फुफकारी थी
दिल्ली की गद्दी, क्रोधित हो बहुत खूब हुंकारी थी।
औलादें पढ़ें विदेशों में, दिल्ली में घर बनवा डाला।
निर्दोष बिचारे बच्चों को पत्थर का बैग थमा डाला।
अरे तुम्हारी मक्कारी ने दिल्ली को बिल्ली बना दिया।
थी नाइंसाफ़ी ज़ालिम की, हर इक़ पण्डित को भगा दिया।
है लिस्ट बड़ी संतापों की, गिन गिन कर बदला लिया नहीं।
हर पत्थर का गिन कर ज़वाब, शायद हाक़िम ने दिया नहीं।
ये तय है तेरे कर्मों का फल इक साथ मिला तो खलता है।
कश्मीर मुक्त, ल...