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Tag: डॉ. प्रभा जैन “श्री”

दिया जरूर जलाना है
कविता

दिया जरूर जलाना है

डॉ. प्रभा जैन "श्री" देहरादून ******************** की मनमानी हर क्षण अब तो संभल जाओ सताया जीवों को बहुत पेट को कब्रिस्तान बनाया। आज छाया घोर अंधेरा मुश्किल हो गया साँस लेना, घर के अन्दर सब बन्द है पशु-पक्षी ख़ुश है। हटाओ, फैला जो अंधेरा हवन यज्ञ पूजा दान, कुछ अच्छा कर जाओ आज दिया जरूर जलाना है। प्राण वायु को करो शुद्ध शुद्ध जल का करो सेवन ज़िंदगी के तम को हरना हैं दिया जरूर जलाना है। . परिचय :- डॉ. प्रभा जैन "श्री" (देहरादून) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी...
बचपन
कविता

बचपन

डॉ. प्रभा जैन "श्री" देहरादून ******************** क्या बचपन का जमाना था ना अपना, ना पता क्या सुहाना था भागते कभी तितली के पीछे कभी उड़ाते, छत पर पतंग। कभी झूलते सावन के झूले कभी रिमझिम वर्षा में नहाते, बना कागज की नाव बहाते रख पैर रेत में घर बनाते। कोई तोड़ता कट्टी क़र जाते मन था निर्मल गंगा समान, फिर से हप्पा क़र जाते था तनाव रहित जीवन। बदला समय, जीने का ढंग जन्म लेता आज बच्चा, समय बाद ए बी सी डी करने लगता, लाद भारी बस्ता स्कूल जाता दादी-नानी से कहानी सुनता बचपन। देख जिन्हें दिल खिल जाता भंवरों की तरह मचल जाता, बड़ों की तरह बात करता बचपन कुछ का बचपन सड़क पर सोता स्कूल का सपना चाँद का सपना हर चीज में दो समय की रोटी दिखती कहीं छोटी-छोटी टोकरी में नींबू धनिया बेचता बचपन। क्यूँ होता अपहरण क्यों चौराहे पर फैला हथेली खड़ा बचपन। कहाँ खो गया वो मासूम सहज सरल बचपन, कहाँ खो गया देखते-देखते वो गु...