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Tag: डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय

उपहार
लघुकथा

उपहार

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** दीपावली की तैयारियों के लिए कमल अनोखीलाल सेठ के बंगले पर रंग बिरंगी झालर लगाने में व्यस्त था। सेठ जी कमल को उचित दिशा निर्देश देकर बगीचे की ताजी हवा का आनंद ले रहे थें। शालू खेलते-खेलते अपने दादाजी के पास आई। सुंदर गुलाबी रंग के कपड़ों में वह परी-सी लग रही थी। सेठ जी ने उसे-स्नेह से गले लगा लिया। यह देख कमल का दिल भर आया। उसे याद आया की उसकी बेटी पूजा ने भी कहा यहां की "बाबा इस बार तो मुझे अच्छे नये कपड़े दिलवाओंगे ना?" इसी उधेड़बुन में वह कार्य करना भूल गया। अनोखीलाल-"कमल कार्य समाप्त हो गया क्या?" "नहीं मालिक थोड़ा-सा ओर बचा है?" शाम को लौटते समय सेठजी ने उसे मेहनताना दिया। कमल धन्यवाद देकर जा ही रहा था कि घर की सेठानी कांशीदेवी ने रोका- "भैय्या ये छोटा-सा उपहार भी लेते जाओ। "कमल प्रसन्न हुआ और शीघ्र...
बदलाव
लघुकथा

बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया। "आज कैसे फुर्सत मिल गई?" शम्भू ने कहा- "कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।" "बोलो क्या बात है?" "आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।' उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए। बहु अनामिका सोचने लगी- "पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!" इतने में काशीनाथ जी घर आ गए। "शम्भू कहा है?" "ऑफिस गए है" बहू ने कमरे से जवाब दिया। शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- "...
एक घरौंदा ऐसा हो
कविता

एक घरौंदा ऐसा हो

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** एक घरौंदा ऐसा हो जहां हरियाली का वास हो पर्यावरण प्रदूषण का नाश हो बगीचों में खिली फुलवारी हो अपनत्व की एक क्यारी हो ... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ पीपल का घनेरा वृक्ष हो मस्त हवा का झोंके हो मन को जो लुभाते हो हरियाली में बुलाते हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ लहलहाते खेत-खलिहान हो नदी के पानी में मिठास हो वृक्ष पर लदे फल-फूल हो नन्हे परिंदों का कलरव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ जेब से कोई तंगहाल ना हो रिश्तों का फैलाव हो खुशियों को बौछार हो आत्मीयता का बहाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ राजनीति का प्रभाव ना हो बुराई पुराण की कथा ना हो सास-बहू की व्यथा ना हो परस्पर स्नेह का भाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ तनाव का नामों निशान ना हो कष्टों का झंझावात ना हो लड़ाई, झगड़ा, लूट, हत्या न...
नई मिसाल
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नई मिसाल

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** गगनचुंबी इमारतों की भीड़ में, आक्सीजन के अभाव में, लम्बे-लम्बे कतारबद्ध पेड़-पौधों से युक्त हरियाली वाला शहर विकास की राह में जाने कहाँ खो गया? भरी दोपहरी में एक ठंडी छाँह ढूंढ़ रहा युवक आज साँसे मांग रहा हैं, नन्ही चिरैया, तोता,कबूतर अपना ठिकाना ढूँढ़ रहे है, हे ! अट्टालिका वीरों दो इंसानियत की नई मिसाल, झगझोरों अपने नवस्वप्न को करो नवसंकल्प पहले हरे वृक्ष, खुली हवा, शुद्ध आक्सीजन मिले सभी को फिर हो शहर का विकास। परिचय :- डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय शिक्षा : पीएच.डी, एम.ए हिन्दी साहित्य, बी.जे.एम.सी, आयुर्वेद रत्न। निवासी : इंदौर, (मध्यप्रदेश) रुचि : लेखन,पठन,पर्यटन प्रकाशन : विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में नियमित बाल कहानी, लघुकथा, कविता का प्रकाशन। सम्प्रति : निजी महाविद्याल...