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Tag: डॉ पंकजवासिनी

कान्हा की सीख
कविता

कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** छूटने का दर्द जानते हो??? कितना पीड़ादायक! कितनी टीसभरी !! कितना टभकता हुआ!!! क्या जीवन में कुछ छूटने के बाद भी मुस्कुरा सकते हो??? एक बार देखो ----- कान्हा को! सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का! (जन्म से पहले ही) फिर माँ बाप!! फिर छूटे पालक माता-पिता! बचपन का आंगन छूटा!! संगी साथी छूटे!!! छूट गए सब ग्वाल-बाल ! छूटा पास-पड़ोस सारा !! छूटी यमुना अति प्यारी !!! और छूटे सरस सघन लता-कुंज सारे ! भरी जिनमें जीवन की प्याली!! छूट गईं... गोकुल की भोरी गोपियां! गोकुल का मिश्री-माखन!! और छूटी.... आत्मा की संगी! प्रिय राधा रानी!! आह! " चिर बिछोह"!!! क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा! कर्म भूमि मथुरा छूटी!! सबको आह्लाद की सरिता में अंतरात्मा तक डुबोती! *जीवनदायी मुरली!! भी छूट गई हाय!!! कान्हा! जाने कितनी पीड़ा तुमने झेली!! कितना पीड़ादायक रहा होगा तुम्हारे लिए जी...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** रक्षाबंधन है आज! कई बार कह देते हैं लोग: "दो और लो" का पर्व इसे! लेकिन नहीं, मैं नहीं मानती यह!! आज तो "बहना" ने अपने हृदय की अनंत शुभेच्छाएं... उज्ज्वलतम स्नेहिल भावनाएँ... अनंत आशीष... दिव्य प्रार्थनाएँ... "भाई" के प्रति रेशम की पावन डोर में पिरो कर बांध डाली है उसकी कलाई पर ! अपने उत्कट स्नेह की अभिव्यक्ति की है उसने!! "परीक्षा" भी लेती है वह अपने "स्नेह" की!! जब पीहर सूना हो जाता है बाबुल की समर्थ दुलार से... और माँ की विकल प्रतीक्षा से...!! भाई का भी प्रण कुछ उपहारों के रूप में आया है बहना के समक्ष! उसकी हर परिस्थिति में रक्षा की... "बरगदी छत्रछाया" देने का आश्वासन बनकर! वह रक्षा करेगा उसकी: तमाम विपदाओं और प्रतिकूलताओं से... उबारेगा उसे तमाम दुर्बलताओं से... भरेगा अकूत, अटूट विश्वास उसके मन में: बनेगा हर सुख-दुख में उसका संबल और सह...
कथासम्राट प्रेमचंद
कविता

कथासम्राट प्रेमचंद

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उन्हें कोटिशः नमन! हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन - हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर : कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों और मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परि...