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Tag: डॉ. कुसुम डोगरा

कविता क्या है
कविता

कविता क्या है

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** कविताएं तो होती हैं एहसास मन के उड़ान दी गई हो जिन्हें पंछियों की जैसी चुन-चुन के कलियां बागों से पिरोया गया हो जिन्हे शब्दों के हार जैसे सुरों की मधुर सरगम देकर एक लय में डाला गया हो संगीत जैसे हृदय के कोमल स्पर्श से छू कर पानी की ठंडी छींटो से नहलाया हो जैसे कविताएं तो है दास्तां प्यार भरी नव विवाहित जोड़े की हंसी हो जैसे दिल के किसी कोने में पड़ी राह तलाशती हो मंजिल जैसे सकून मिलता हो जहां जीवन का प्रफुल्लित हो जाते बाग बगीचे जैसे लोरी सुनाकर कोई बचपन की मां ने गोदी में सुलाया हो जैसे परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
मेरी परछाई
कविता

मेरी परछाई

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** मेरी परछाई बन मेरे साथ रही मेरी गुड़िया अब तक ना जाने पति का घर देखते ही क्यूं मुझसे दूर हो गई क्यूं मेरे आंचल को उदास कर गई वो उसका आंचल में छिप जाना और लोगों के देख घबरा कर पल्लू को जोर से पकड़ लेना आज मेरी परछाई क्यूं मुझसे दूर हो गई मेरा आंचल उदास कर गई। वो छुई मुई सी कली का रेत के घरौंदे बनाना भाई के दोस्तों संग क्रिकेट खेलना कुत्तों को दूर से ही देख घबरा जाना घर के अंदर ही बात बात पर इजाज़त लेना मुझे किसी के साथ देख कर ईर्षा करना घर में मेरी छवि बन इठलाना चुपके-चुपके मेरी नकल करना आज मेरी परछाई मुझसे दूर हो गई क्यूं मेरा आंचल को उदास कर गई.... परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
मां की अभिलाषा
कविता

मां की अभिलाषा

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** मां की हसरत सिर्फ इतनी सी रही होगी बेटे की गोद में सिर रख कर रोऊं लिपट जाऊं उसके कंधे से कुछ इस तरह कि जैसे बच्चा हो जाऊं उसकी देखरेख में दिन बिताऊं लोरी दे कर वो मुझ को सुलाए खाने का कोर अपने हाथ से खिलाए जब मैं वृद्ध हो जाऊं बचपन में मां बच्चे का जो संबंध है बनता बिना किसी अपेक्षा लिए है होता कुर्बान कर जाती मां अपनी हस्ती भूल कर अपने जीवन की हर मस्ती सुबह उसी से, रात्रि उसी के संग लाड-लड़ाती बदल-बदल कर रंग मां की ममता का ही मोल चुकाना चाहे अगर कोई किशोर तो मां से ना करे तकरार किसी भी रोज़ तो मां से ना करे तकरार किसी भी रोज़ परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
गुदड़ी का लाल
कविता

गुदड़ी का लाल

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो सफर अपने का विराम पाने आ रहे हो कुछ पल दुनियादारी को भूल जाने मन की कैद से निकल तन्मयता से वात्सल्य का आनंद पाने आ रहे हो संवेदननाओ को महसूस करती शुन्य की अवस्था से दूर ममता की ओर एक कदम बढ़ाने आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं और नहीं मेरे पास आ रहे हो घर के झमेलों से निकल बही खातों के हिसाब से दूर अपनी गुदढी से रूबरू होने आ रहे हो खातिरदारी से दूर परिचित अंदाज में स्वयं को महसूस होने के लिए आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो...। परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
पिता
लघुकथा

पिता

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** एक पुरुष के दो बच्चे थे। वह पुरुष रोजाना अपने बच्चों के उठने से पहले काम पर चला जाता और शाम को बच्चों के सो जाने के बाद घर आता। बच्चों की मां उन बच्चों के पूरा दिन काम करती। उनके लिए खाना बनाती, स्कूल भेजती, उनके वस्त्र बदलवाती और उनको पढ़ाई करवा कर उन्हे सुला देती। बच्चों ने कभी अपने पिता को नहीं देखा था। बच्चों का बचपन बीता। बच्चे बढे होने लगे। एक दिन बच्चों ने अपनी मां से कहा कि मां हम दोनो ने आपको अपने साथ काम करते, समय बिताते देखा है। पिता जी को कभी भी नही देखा। ऐसे में तो उनके बिना भी हम बड़े हो सकते हैं। उनका हमारे जीवन में क्या कोई काम है? मां को उस दिन आश्चर्य हुआ और एहसास हुआ कि बच्चे तो अनजान है पिता के उनके जीवन में योगदान के। मां ने बच्चों को अपने पास बिठाया और समझाने लगी। कि तुम्हारे पिता अपना पूरा समय तुम्हारा जीव...
नशा
कविता

नशा

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** बुझ गए घरों के घर जो नशाखोरी ने कहर ढाया है उस गरीब मां का सीना जो इसने अपनी आग से जलाया है मत पूछ जो जिंदा लाश दिख रही उस बाप ने जो कमाया है खर्च दिया बच्चे की इस लत पर जो भी जीवन में कमाया है रात रात भर नयनो को जिसने पत्थर के जैसा बना डाला उस अर्धांगिनी ने अपने ह्रदय का जज़्बात ना जाने कहां बुझा डाला ना सोई ना जागृत अवस्था में उसने कोई सपना संजोया है मार दिए सभी दिल के अरमान जिसने कभी मन नहीं खोला है बच्चों को बढ़ते देख कर अपना गौरव था उसने कायम किया वो नशे की लत ने दस्तक देकर मिट्टी में जाकर रोल दिया ना जाने... ना जाने कब नशे की लपटों से देश हमारा बच पाएगा नौजवान हमारा बच पाएगा... परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...