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भीगता मन-दर्पण
कविता

भीगता मन-दर्पण

डॉ. आनन्द किशोर मौजपुर, नॉर्थ (दिल्ली) ******************** फिर से गर्मी में ठंडक आई। आषाढ़ की बारिश ख़ुशियाँ लाई।। पिघला जाए बारिश में ये तन, खिलता जाए है विरहन का मन। भीग रहा है ये मन का दर्पण, मेघों ने बूँदें हैं बरसाई।। फिर से गर्मी में ठंडक आई। आषाढ़ की बारिश ख़ुशियाँ लाई।। गर्मी ने हालत पतली कर दी, कब से तपती है मन की धरती। मन की ज़मीन है प्यासी प्यासी, मन में फिर से हरियाली छाई।। मन का दर्पण है सीला सीला, चिंहुक उठा है मन ये अलबेला। कितनी अद्भुत वर्षा की लीला, आषाढ़ की बारिश हंसती आई।। फिर से गर्मी में ठंडक आई। आषाढ़ की बारिश ख़ुशियाँ लाई।। परिचय :-  डॉ. आनन्द किशोर जन्मतिथि : ०४/१२/१९६२ शिक्षा : एम.बी.बी.एस (दिल्ली) निवासी : मौजपुर, नॉर्थ (दिल्ली) प्रकाशन : एकल ग़ज़ल संग्रह- 'मोहब्बत हो गई है', साझा ग़ज़ल संग्रह - ४५ प्राप्त पुरस्कार/सम्मान : (१) बेकल उत्...