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Tag: डॉ. अलका पाडेंय

जन्मदिन
लघुकथा

जन्मदिन

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रामअवतार जी आज ७० साल के हो गये थे पर जब से उनकी धर्मपत्नी चल बसी उन्होने कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया, मनाता भी कौन एक ही बेटा वह भी शहर में सर्विस करता था छुट्टियों में आता रहता कभी-कभी ... पर इस बार पता नहीं क्यों बार बार लग रहा था कोई तो उनका जन्मदिवस मनाऐ ... सालों से वो अकेले रह रहे थे परन्तु इस बार बच्चे जनता कर्फ़्यू में आये थे मिलने पर लाकडाऊन की वजह से जा नहीं पाये .. बहुत दिनों बाद रामअवतार जी के घर में रौनक़ आई थी यही कारण था की वो मन ही मन अपना जन्मदिन मनाना चाह रहे थे पर सुबह के दस बज गये बहू बेटे किसी ने उन्हें बधाई नहीं दी न पैर ही छुआ, था तो वो थोडा मायूस से हो गये, कामवाली से बोले कला ज़रा चाय बना दे छत पर टहल आता हूँ आज तारिख कौन सी है, कला बोली क्यों बाबू जी तारिख का क्या करोगे कुछ नहीं पेपर नहीं आ रहा है न तारिख ...
पलायन
लघुकथा

पलायन

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आज दसवाँ दिन था किरण के कारख़ाने को बंद हुऐ, लाकडाऊन के कारण कारख़ाने के कारीगर भी बहुत परेशान थे किरण ने सबको बहुत समझाय बहार कोई व्यवस्था नहीं है, तुम लोगों को यही रहना है तभी कोरोना से बच पाओगें गाँव जाओगें भी कैसे कोई साधन नहीं तुम लोग ज़ब तक यहाँ रहोगे मेरी जवाब दारी है खाना वग़ैरा देने की एक बार बहार गये मेरी कोई जवाबदारी नहीं मेरी बात समझ में आई..... पर कोई सुन नहीं रहा था दो घंटे मिटींग लेकर सबको सेनेटाईज मास्क देकर सारे निर्देश अच्छे से समझा कर बस घर आकर बैठी ही थी कि कारख़ाने से फ़ोन आता है मेडम छ: लोग भाग गये जो पलायन कर गये उन्हें जाने दो पर तुम लोग बहार, मत जाना और वो लोग आये तो अब वापस नहीं लेना क्योंकि तुम्हें भी बिमार पड़ने का ख़तरा हो सकता है, ठीक है मेमसाहेब, किरण ने नौकरानी को आवाज़ दी बेटा चाय पिला कितना समझा कर ...
विशाल रोटी
लघुकथा

विशाल रोटी

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मोहन आज बहुत थक गया मानिक रुप से भी व शारीरिक रुप से भी ! बॉस तो ऐसे काम कराता है की कई बार मन करता है नौकरी छोड़ के भाग जाऊ पर मजबूरी है दो “रोटी “कमाने तो यहाँ पर आया है ! घर की हालत बहुत ही ख़राब, घर गिरवी रखा है, मेरी पढ़ाई के लिये बाबू जी ने वह छूडाना है सबसे पहले, फिर छोटी बहन कंचन की शादी करनी है, माँ बाबू जी को सुख व ख़ुशियाँ तो दू ! पर यह बाँस लहू निचोड़ लेता है अपमानित करता है जो अलग, यही विचार उसके मन में उथल पुथल मचा रहे थे, की राकेश आ गया पीट पर धौल जमा बोला क्या हुआ, मोहन बाँस ने कुछ कह दिया क्या अरे छोड़ उसको चल कैंटीन में चल चाय पीते है, मोहन बोला मुझसे मेहनत चाहे जितनी करा लो पर साला अपमान बर्दाश्त नहीं होता मेरी मजबूरी न होती तो कब का लात मार नौकरी को चला जाता ! राकेश ने कहाँ मोहन तु यहाँ रोटी कमाने आया है, बोल हाँ...
कुछ लिख रही हूँ
लघुकथा

कुछ लिख रही हूँ

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पति थका हारा आफिस से आता है पत्नि को आवाज़ देता है... सोनम ज़रा एक गिलास पानी और चाय देना आज बहुत थक गया हूँ, सर दर्द कर रहा है, चाय दे कर थोड़ा सा बाम सर में मल दो थोडा सो जाऊँगा तो आराम हो जायेगा। सोनम मैं कुछ लिख रही हूँ। आप पानी लेकर पी लो मैं बस यह लिख कर आप को चाय बना कर लाती हूँ फिर बाम लगा कर सर दबा दूंगी। पति जी पानी लेकर पी लेते हैं और कमरे में आकर कपडे बदल कर हाथ मुँह धोकर भगवान को अगरबत्ती भी जला देते है पर सोनम चाय लेकर नहीं आती। वो फिर आवाज़ देते है क्या हुआ चाय नहीं बनी... अरे बना रही हूँ, ला रही हूँ आप आराम करो ला रही हूँ... काफ़ी देर बात सोनम चाय लेकर आती है तो पति देव पूछ ही बैठते हैं... आप सारा दिन क्या लिंखती रहती है क्या कोई किताब लिख रही है? सोनम नहीं किताब नहीं सारा दिन मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती है, फ़ेस बुक, वाट...