Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: जीतेन्द्र कानपुरी

हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है
कविता

हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है

*********** जीतेन्द्र कानपुरी हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है यहॉ सब साथ देने वाले है सभी का स्वभाव सच्चा है। हमारी गली हमारा घर हमारा मोहल्ला भी अच्छा है।। इसलिये हम नहीं जाते खुद की जमीं छोड़कर कहीं। जाओ जिसे जाना हो जहॉ हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरम...
एक बरस बीत गयो
कविता

एक बरस बीत गयो

*********** जीतेन्द्र कानपुरी मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो। एक बरस बीत गयो।। कथरिया धोउन लगी अम्मा पयॉर बापू लाये। साल निकारो, सूटर और जूता मोजा लाये।। मफलर की कही ती सो न ल्या पाये। बापू बाजार गये मफलर ही भूल्याये।। सो साफी बॉधयो कछु दिन काट्हों। जा दिन बाजार गयो ऊ दिन लै आ हों।। मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो एक बरस बीत गयो।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द...
कुछ लोग दूसरो को मिटाते मिटाते खुद ही मिट जाते है
कविता

कुछ लोग दूसरो को मिटाते मिटाते खुद ही मिट जाते है

*********** जीतेन्द्र कानपुरी जिसमे कुछ करने का साहस नही होता वो लोग दूसरों पर उगलियॉ उठाते है ।। धूल मे उड़ जाती है सारी जिन्दगी । फिर भी अपनी पीठ थपथपाते है ।। याद रखना जिन्दगी बहुत कीमती है जो नही समझते , वही मात खाते है ।। जिन्हें खबर नहीं होती सूरज निकलने की वो दिन को भी रात बताते है ।। रोशनी मे रहकर भी ,अधेरा खाते है । इनका भरोसा नहीं ,किसी से भी उलझ जाते है कुछ लोग होते ही है ,,,,,,ऐसे बेपरवाह । दूसरों को मिटाते मिटाते ही खुद मिट जाते है ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही ...
मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ
कविता

मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ

============================= रचयिता : जीतेन्द्र कानपुरी खतरो से खेला हूँ बहुत दर्द झेला हूँ ।। मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ ।। लोग मिलते है हजारो मगर सब स्वार्थ से बस इसी बात का गम बहुत झेला हूँ ।। मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३० -०९ १९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश मह...
इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ों को खोद लेे
कविता

इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ों को खोद लेे

============================= रचयिता : जीतेन्द्र कानपुरी आज भी मै अपने हालातो से लड़ रहा हूँ । कोई मेरी जड़े खोद रहा है मै और भी गहरा हो रहा हूँ ।। इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ो को खोद ले । क्योंकि मै पाताल के पानी से सिंचित हो रहा हूँ  ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३० -०९ १९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश महि...