अन्तर्मन
जितेन्द्र गुप्ता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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संभल जाती है वो
जब भी आती है कोई चिट्ठी,
या आता है कोई फोन।
सिमट जाती है वो
जब भी.....
हंसते सब हैं घर में...
या बनते हैं पकवान.….
समझ जाती है वो
फिर कोई आयेगा.....
सपना दिखाया जायेगा..
नये जीवन का.. उम्मीद का
संवारी जाती है वो..
सजायी जाती है वो...
बेजान पुतलों सी...
फिर होगी नापतौल..
मोल तोल...।
सहम जाती है वो...
सिहर जाती है वो...
अगले पल को सोच
फिर.... फिर.... फिर...
होती है नापसंद और
बिखर जाती है वो...
और
फिर शुरू हो जाता है..
इंतजार.......
इंतजार...
बस
इंतजार..!!!!!!
.
परिचय :- जितेन्द्र गुप्ता
निवासी : इंदौर म.प्र.
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