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Tag: जितेंद्र शिवहरे

कवि और चप्पल
व्यंग्य

कवि और चप्पल

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   एक कवि मित्र ने स्व प्रयासों से जैसे-तैसे कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मैं भी निमंत्रित था। मंचीय स्टेज पर चढ़ने से पूर्व चरण पादुकाएं नीचे एक ओर व्यवस्थित रख दी थी। सम्मेलन निपटाकर ज्यों ही चप्पलें ढूंठी, नहीं मिली। सारा पांडाल खगांल मारा। किन्तु चप्पलों का नामों निशान तक न था। हडकंप मच गया कि चोरल वाले कवि महोदय की चप्पलें चोरी चली गयीं। मेरे लिए बिना चप्पलों के एक पग चलना भी दूभर हो रहा था। नंगे पैर घर कैसे जाता? कवि मित्र से प्रार्थना की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने बहुत देर तक विचार किया परन्तु कोई युक्ती नहीं निकली। रात्री के तीन बजे चप्पलों की दुकान कहां खोजते? अन्य कवि मित्रों ने आयोजक कवि मित्र पर दबाव बनाया की मानदेय भले न दें, लेकिन कवि महोदय की चप्पलों की व्यवस्था तो करें। आयोजक कवि मित्र मान...
लाॅकडाउन का संयुक्त परिवार
लघुकथा

लाॅकडाउन का संयुक्त परिवार

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ********************                   सुनैना अभी-अभी छाछ की हाण्डी रखने आयी थी। तीनों भाभीयां ने सुनैना को देख लिया। उसे रोककर वे तीनों उससे बातें करने लगी। तीनों भाभीयां चूपके से अनिल को शरारात भरी आंखों से देख रही थी। अनिल शरमा के यहाँ-वहां हो जाता। सौमती का पुरा परिवार आज उसके साथ था। लाॅकडाउन चल रहा था। दोनों बेटे अपने परिवार सहित विधवा मां सौमती के यहां पैतृक गांव आये थे। उन दोनों बेटों के चार बेटे और तीन बेटों की पत्नीयां तथा इन तीन जोड़ों के कुल पांच बच्चों से सौमती का सुना घर खुशियों से भर उठा था। सौमती का छोटा बेटा रामचंद्र अपनी मां के साथ ही था। उसकी पांच बेटीयां थी। सौमती के मंझले बेटे दयाराम का पुत्र अनिल विवाह योग्य हो चला था। सौमती ने उसी गांव की सुनैना की बात अनिल के लिए चलाई थी। मगर दयाराम अपने पढ़े-लिखे अनिल के लिए वैसी ही बहु चाहते थे ताकी सम...
मैं ही मैं हूं
कविता

मैं ही मैं हूं

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** मैं महान हूं मुझे समझना होगा तुम्हें अपने अभिमान को परे रख मेरी हर बात सुनो तुम तुम क्या हो? मेरे आगे तुम्हारी कोई अस्तित्व नहीं मेरे आगे मेरी धन-वैभव-संपदा को देखो तुम्हारे पास भी होगा सबकुछ किन्तु मेरे जितना नहीं इन प्रसाधन की गुणवत्ता और मात्रा तुमसे कहीं अधिक है मेरे संसाधन आलौकिक है इन्हें साष्टांग प्रणाम करो मेरा घर, घर नहीं एक महल है तुम्हारे पास भी होगा किन्तु मेरे जितना भव्य नहीं तुम्हारी राय का कोई मुल्य नहीं तुम्हारी में कभी नहीं सुनूंगा मेरा ज्ञान सर्वज्ञ है तुम जानते ही कितना हो? तुम्हारा ज्ञान शुन्य है मेरे आगे मेरी महत्ता सार्वभौमिक है तुम नगण्य हो तुम शून्य हो और मैं अनंत मेरी संतान ही संसार का कल्याण करेगी क्योंकी वो मेरा अंश है इसलिए वो भी महान है उसका किसी से कोई मुकाबला नहीं वो सर्वशक्तिमान है मेरी तरह वह भी प्रार्थनीय...
अबाॅर्शन
कहानी

अबाॅर्शन

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** कान्ताप्रसाद अभी-अभी बाज़ार से लौटे थे। मंद ही मंद बड़बड़ाएं जा रहे थे। "क्या समझते है अपने आपको? हमारा कोई मान-सम्मान है की नहीं! बड़े होंगे अपने घर में! हम भी कोई ऐरे-ग़ेरे नत्थू खेरे नहीं है।" कान्ता प्रसाद का क्रोध सातवें आसमान पर था। जानकी ने गिलास भर पानी देते हुये पुछा- "क्या बात हो गयी माया के पापा! इतना गुस्सें में क्यों हो?" "अरे! वो माया के होने वाले ससुर! मुझसे कहते की हाइवे वाली सड़क पर जो हमारी जमींन है उन्हें बेच दूं! हूंsssअं! कहने को तो कहते है कि हमे दहेज नहीं चाहिये। तो फिर ये क्या है?" कान्ता प्रसाद दहाड़ रहे थे। माया ने चाय की ट्रे सामने टी टेबल पर रख दी। जीया कुछ दुरी पर खड़ी होकर सब देख सुन रही थी। "क्या उन्होंने आप से स्वयं जमींन की मांग की!" जानकी ने पुछा। "हां! जानकी। मुझे लगा की कोई जरूरी बात के लिए मुझे वहां बु...
संयुक्त परिवार
लघुकथा

संयुक्त परिवार

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** सुनैना अभी-अभी छाछ की हाण्डी रखने आयी थी। तीनों भाभीयां ने सुनैना को देख लिया। उसे रोककर वे तीनों उससे बातें करने लगी। तीनों भाभीयां चूपके से अनिल को शरारात भरी आंखों से देख रही थी। अनिल शरमा के यहाँ-वहां हो जाता। सौमती का पुरा परिवार आज उसके साथ था। लाॅकडाउन चल रहा था। दोनों बेटे अपने परिवार सहित विधवा मां सौमती के यहां पैतृक गांव आये थे। उन दोनों बेटों के चार बेटे और तीन बेटों की पत्नीयां तथा इन तीन जोड़ों के कुल पांच बच्चों से सौमती का सुना घर खुशियों से भर उठा था। सौमती का छोटा बेटा रामचंद्र अपनी मां के साथ ही था। उसकी पांच बेटीयां थी। सौमती के मंझले बेटे दयाराम का पुत्र अनिल विवाह योग्य हो चला था। सौमती ने उसी गांव की सुनैना की बात अनिल के लिए चलाई थी। मगर दयाराम अपने पढ़े- लिखे अनिल के लिए वैसी ही बहु चाहते थे ताकी समय आने पर वह नौक...
भूल
कहानी

भूल

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ********************   पति का निधन मधु के लिये बहुत बड़ी आपदा थी। सब ने मिलकर उसे संभाला। बच्चों का वास्ता दिया। तब जाकर वह सामान्य हुई। उसने नौकरी में मन लगाने की पुरी कोशिश की। बड़ी ही सावधानी से वह अपने दोनों बच्चों को पालन-पोषण कर रही थी। तब ही अभिषेक उसके जीवन में आया। उसकी दोस्ती ने मधु के जीवन में उर्जा का नया संचार किया। अब वो पहले की तरह संजा- संवरा करती। यदा-कदा उसके इस व्यवहार से कुछ लोग क्षुब्ध भी थे। किन्तु मधु ने ध्यान नहीं दिया। उसे विश्वास था अभिषेक उसे स्वीकार कर समाज के सामने एक नया आदर्श प्रस्तुत करेगा। अभिषेक ने इस तथ्य से कभी इंकार नहीं किया की वह भी मधु से प्रेम करता है। किन्तु विवाह को लेकर वह जल्दी में नहीं था। पहले उसे अपना कॅरियर बनाना था। उस पर दो बच्चों को ग्रहण करने का साहस भी फिलहाल उसमें नहीं था। मधु अपना सर्वस्व अभिषेक को समर्पित...
सफेद दाग़
कहानी

सफेद दाग़

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** दीपक ने आज भी कुछ नहीं कहा। हमेशा की तरह वह आज भी हंसता और हंसाता रहा। शाम के चार कब बजे पता ही नही चला। स्कूल की छुट्टी का समय हो चूका था। अवन्तिका बुझे मन से अपना सामान समटने लगी। मगर वह निराश नहीं थी। उसे विश्वास था कि दीपक आज अपने दिल की बात बता देगा। वह अवन्तिका से मिला भी किन्तु उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। दीपक ने अभी छः माह पुर्व ही स्कूल ज्वाइन किया था। यहां तीस से अधिक शिक्षकों का स्टाॅफ था। दीपक को अनुभव और पद के अनुरूप अपनी लाॅबी की शिक्षकों में सम्मिलित होने हेतु आमंत्रण मिला। दीपक इसके लिये कतई तैयार नहीं था। वह मिलनसार था। उसकी प्रत्येक गुट में घुसपैठ थी। सभी शिक्षक उसे पसंद करते। उससे किसी शिक्षक का कभी मनमुटाव नहीं हुआ। दीपक सर्वप्रिय था। अवन्तिका के साथ भेदभाव का व्यवहार देखकर दीपक को अप्रसन्नता हुई। अवन्तिका अपने सफेद दाग़ छ...
सड़क का गढ्ढा
व्यंग्य

सड़क का गढ्ढा

********** जितेंद्र शिवहरे महू (इंदौर) मुख्य बाजार की सड़क से गुजरना हुआ। वहीं कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा थी। सड़क के इर्द-गिर्द बहुत से लोग खड़े थे। सभी की आखें नीचे सड़क पर थी। मुझे भी उत्सुकता हुई। मैंने वहां भीड़ के नजदीक जाकर देखा। सड़क के बीचों-बीच एक गहरा गढ्ढा हो गया था। राहगीर जैसे-तैसे बचते बचाते निकल रहे थे। दो पहिया वाहन तो गढ्ढे के आसपास से निकल जाते मगर चार पहिया वाहन युं ही सड़क की दोनों ओर पंक्ति बध्द खड़े थे। चार पहिया वाहन स्वामियों को अमिट विश्वास था कि कोई न कोई उस गढ्ढे को भरने अवश्य आयेगा। तब वे आराम से निकल जायेंगे। इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी-अपनी कार में बैठे थे। कुछ लोग गाड़ी से नीचे उतर कर सड़क किनारे भुट्टें की दुकानों पर टूट पड़े थे। मैंने साहस कर कहा- "अरे भाई कोई म्यूनिसिपल ऑफिस को फोन करो। वहां से कोई आयेगा तब ही पेंच वर्क शुरू होगा।" मेरी बात वहां सुन...
काव्यगोष्ठी सम्पन्न
साहित्यिक

काव्यगोष्ठी सम्पन्न

पाटीदार कोचिंग संस्थान सुदामा नगर सेठी गेट काव्यपाठ आयोजन में कवि/शायरो ने ताजातरीन रचनाएं प्रस्तुत कर सावन के महीने को और भी सुहाना बना दिया। गिरते पानी के बीच कविगण काव्यपाठ में सम्मिलित हुये। जितेंद्र राज, प्रेम सागर, संजय जैन बैजार, धर्मेंद्र अम्बर, दिनेशचन्द्र शर्मा आदि प्रसिद्ध रचनाकारों ने रचनापाठ किया। राहुल मिश्रा की इन पंक्तियों ने पर्यावरण में कम होते पेड़-पौधों के प्रति चिंता व्यक्त की-  शजर ने शजर से मुस्का के बोला हुआ क्या है जो जग में कटने लगे हैं कभी लोग जुट ते मेरी छाव मे जो हुआ क्या है जो लोग बटने लगे हैं बृजमोहन शर्मा बृज ने रचनापाठ किया- मैं अपनी हदों से पार हो गया हूं ए जिंदग तेरा गुनहगार हो गया हूं मैंने अपने उसूलों को तोड़ा है जबसे सचमुच जमीं पर मैं भार हो गया हूं खल्क की खिदमत करना थी लेकिन मैं स्वार्थ के हाथों गिरफ्तार हो गया हूं हकीक़त को भुला कर ...