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धूप विसर्जन दिन है गुजरा
कविता

धूप विसर्जन दिन है गुजरा

जितेंद्र परमार समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) ******************** धूप विसर्जन दिन है गुजरा देख निशा होने को आई खग पुनः जो लौटे नीड़ को संध्या ये गगन में छाई अद्भुत अनोखा ये नजारा कुदरत रूप सजाने आई मनभावन ये समय सुहाना चाँद तारे भी संग में लाई कष्ट थकान भरे इस तन को कर्म मुक्ति अब मिलने आई सकल दिवस की एक कामना आंखों में नींद सहसा छाई परिचय :- जितेंद्र परमार निवासी : समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या ग...