हाँ वो पैसे बचाते थे
जनार्दन शर्मा
इंदौर (म.प्र.)
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पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते थे,
ब्रांडेड नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते थे
टूटे चश्मे से हीअख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते थे
टोपाज के ब्लेड से ही वो दाढ़ी बनाते थे
हा वो पिताजी पैसे बचाते थे ….
कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते थे,
बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते थे
आटा नही खरीदते, वह तो गेहूँ पिसवाते थे..
वो पिताजी ही थे जो पैसे बचाते थे…
वो स्टेशन से घर तक पैदल ही आते थे
सदा ही रिक्शा लेने से कतराते थे।
अच्छी सेहत का हवाला देते जाते थे ...
बढती महंगाई पे हमेशा चिंता जताते थे
वो बाबूजी थे जो सबके लिये पैसे बचाते थे ...
कितनी भी गर्मी हो वो पंखे में बिताते थे,
सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते थे
एसी/हीटर को सेहत का दुश्मन बताते थे
लाइट खुली छूटने पे नाराज से हो जाते थे
वो पप्पा ही थे जो भविष्य के लिये पैसे बचाते थे....