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Tag: चेतना ठाकुर

परदेशी पिया
कविता

परदेशी पिया

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** उम्र आधी वहाँ गुजारी, आधी मे कैसे पूरी करू जिम्मेदारी। माँ बहुत याद आ रही है तुम्हारी। सात वचन अनेक विधियाँ है झूठी, सच्चे है माँ-बाप दृश्य-अदृश्य हमेशा साथ निभाते है। परदेशी पति से मै हूँ कुछ नाराज़ वादा किया था तुमने हाथो मे देकर हाथ अब वक्त पे नही देते साथ क्यू अपनी समझ नही समझाते जब बिगड़ जाती है बात कंधे का सहारा न साथ तुम्हरा कितनी तन्हा है हमरी रात उम्र आधी वहाँ गुजारी आधी मे कैसे पूरी करू जिम्मेदारी माँ बहुत याद आ रही है तुम्हारी परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम : गंगापीपर जिला :पूर्वी चंपारण (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
सुखद एहसास
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सुखद एहसास

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** क्षणिक ही लेकिन यह सुखद एहसास अच्छा है। पहली बार ससुराल से मायका आना मां की ममता, पिता का लाड़, क्षणिक ही लेकिन अच्छा है फिर लौटना ससुराल अच्छा है भाई बहन की तकरार, फिर ढेर सारा प्यार, अच्छा है फिर यहां से न जाने की ख्वाहिश का दब जाना अच्छा है। क्षणिक ही लेकिन यह सुखद अहसास अच्छा है। यह घर अपना, वो घर अपना लड़कियों के साथ किया छलावा अच्छा है। दम घुट रहा, दिल टूट रहा ना आंसू बहाना अच्छा है अपनी दिल की बातें ना यहाँ बताना, न वहां बताना, अच्छा है। दिल के अंदर दफनाना अच्छा है। क्षणिक ही लेकिन यह सुखद अहसास अच्छा है। परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम : गंगापीपर जिला :पूर्वी चंपारण (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मुझे छूने की गुस्ताखी में
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मुझे छूने की गुस्ताखी में

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** मुझे छूने की गुस्ताखी में तुझे क्या सजा दूँ ? थाने में रपट लिखा दूँ, या पंडित बुला तुझे उम्र कैद की सजा दूँ ? मेरी जज्बातों को बहकाने के जुर्म में, तुझे क्या सजा दूँ ? तेरी सबसे प्यारी चीज तुमसे छीन लू, या तुझे अपना बना लू ? मेरी आंखों के सपनों को चलचित्र जैसे दिखाने की। क्या सजा दूँ ? झूठी रिवाजों से पर्दा उठा दूँ तू कहे तो तेरे संग, एक नायाब रिश्ता बना लू ? मुझे छूने की गुस्ताखी में तुझे क्या सजा दूं ? तुझे से बहुत दूर चली जाऊं, या तुझे गले से लगा लूं ? मेरे हृदय में जगह बनाने, तड़पाने की क्या सजा दूँ ? तुझे कह दो अलविदा, या तुझसे लिपट तुझे आधा अंग बनाना लू ? मुझे छूने की गुस्ताखी में, तुझे क्या सानू सजा दूं ? थाने में रपट लिखा दूँ, या पंडित बोला तुझे, उम्र कैद की सजा दूँ .....? . परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पू...
इंतजार
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इंतजार

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** धूप में कैसी मिठास आई है। हवा में यह कैसी प्यास आई है। देख बगीचे में आई अमराई है। मंजर की सुगंध में कैसी खटास आई है। एक मौसम न जाने कितने स्वाद लाई है। महुआ के फूलों की नशा छाई हैं । नीले अंबर को घेरे काली घटा आई है। आंधी की झोंकों ने बूंदों की थपकी ने, किसी भूले की याद दिलाई है। कच्चे आमों की खटास, पके आमों में मिठास , अंदर गुठली ,प्रकृति या वक्त जो एक फल में इतने सारे बदलाव लाई हैं। कोयल की कुहू ,झिंगुर की झनझनाहट। बेहद गर्मी ,उसमें हवा की सरसराहट। फिर बूंदों की पहली बौछार। एक मौसम का इतना सारा प्यार। जिसका बेसब्री से कर रहे हम इंतजार.......इंतजार . परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
रंग दे मोहे लाल से
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रंग दे मोहे लाल से

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** हृदय के कोरे कोने को रंग दे तू लाल। मैं रहना ना चाहूं कोरी तेरे अंग-अंग लग मैं भी बनना चाहूं गोरी मैं एक अलबेली छोरी मैं रंगना चाहूं अपने पिया के प्यार से ना कि इस कृत्रिम रंग गुलाल से। मेरे हृदय के कोरे कोने को रंग दे तू लाल से। अपने प्रीत तथा अंगुलियों की जुबान से भावनाओं की गुलाल से आज रंग दे तू मोहे प्यार से आज बड़े-बड़े शराबी भी हमसे मात खाते हैं। मैं ऊंचे दर्जे की शराबियों में गिनी जाती हूं अरे यह क्या मैं कहां कभी पीती हूं। अब कहां नशा चढ़ता शराब का जबसे नशा चढ़ा है मेरे सर पर मेरे जनाब का .... . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कैसी ये होली
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कैसी ये होली

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अब कहां मिलते कोकिल स्वर है। कौओ की हमजोली अब कहां राग कहा फाग कैसी ये होली ऐसा लगा जैसे आसमान से प्रीत की बूंद-बूंद बरसी हो तेरे छूने के संग। और मैं भीगी की धरती सी रंग गई तेरे रंग। जहां-जहां तू छुए ना जाए तेरा रंग ना सुगंध। आज मैंने भी भांग पी रखी है तेरे दो नैनो के प्यालो से। आज तेरा नशा सर चढ बोल रहा है। आज सारी दुनिया डोल रहा है। अपने जी का पोल खोल रहा है आज मैं झगड़ना चाहूं जी खोल के तुमसे भी बुलवाना चाहू तुम्हारे एहसास अपना बोल के तुम्हारे नजरों के नटखट से आजाद होने आई हूं। तुम्हें छूने की इजाजत आज मैं घर से लेकर आई हूं कहीं हो ना जाऊ बदनाम भी फिकराना छोड़ कर आई हूं। आज तेरे संग मे तेरे रंग में रंगनेआई हूँ । . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
अजनबी – अपने
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अजनबी – अपने

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अजनबी के मोहब्बत से डर गई। अपनों के नफरत से डर गई। किसी के इजहार से डर गई। अपनों के इनकार से डर गई। इसी डर से न अजनबी की हुई, ना अपनों की। दूसरों पर विश्वास ना किया और अपनों की बेवफाई से डर गई । मैं ढूंढती रही सारी रात ,सुबह को और अंधेरे के गहराई से डर गई। . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल प...
मेरे लबों को
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मेरे लबों को

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** मेरे लबों को छूकर तूने- बहुत बड़ी गलती कर दी। अब न सोंऊगी मैं - न नींद तुझे आयेगी। रात रात भर जगूंगी मैं- और आंख लाल तेरी हो जाएगी। ना हूं तुम्हारे पास फिर भी - तेरा एहसास करूं। न जाने कैसी है प्यास- ना मिटे किसी द्रव ना पानी से मिट सकती है बस- तेरी मेहरबानी से। श्याम की मीरा शिव की सती- देवों के देव्यायनी बना दी। एक सीधी सी लड़की को- दीवानी बना दी। मेरे लबों को छूकर तूने...... . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) की...
सर्दी के मौसम में
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सर्दी के मौसम में

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सर्दी के मौसम में, तू बैठ ना मेरे पास। कहीं मैं जल गई तो? कहीं मैं पिघल गई थी। इस सर्द हवाओं की सिहरन में, उस सूरज की किरणों की तपन में, अब कहां वो बात? क्या सच में लंबी हो गई है रात? जब से हुई है तुमसे मुलाकात। सब कहते हैं, कितना मासूम चेहरा तेरा है। सबसे कैसे कह दूं, तेरी नजरों की छुअन है। सब कहते हैं बड़ी सौगंध है, तेरे रूह में। कैसे कह दूं, तेरी सांसो की छुअन है। सर्दी के मौसम में, तू बैठ ना मेरे पास। कहीं मैं जल गई तो...... . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
सपनीली दुनिया
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सपनीली दुनिया

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सपनीली दुनिया, होती है यह पल सपनों में बसर। ख्याली पुलाव, सपनों का तड़का बस इस उम्र में सपना ही सपना होता है। थर्टीन से नाइनटीन सुहाने सुहाने सपने संजोग ने के दिन होते हैं। किसी को तलाश करती यह नजर बस जिंदगी बड़ी प्यारी लगती है फिर लड़कों को नमक तेल लकड़ी (गैस) लड़कियों की चावल दाल सब्जी जिंदगी इसी में सिमट के रह जाती हैं। जीवन का वसंत तो जवानी है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद...
सावन
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सावन

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सावन की अगुवाई में, हरी हुई पूरी धरती है। मेहंदी लगा। हरी चूड़ी पहनने की कोशिश करती, हर नव युवती है। सावन की बाला को देखो, हरी चोली, घाघर, चुनरी, लहरा के, कैसे बलखा चलती है। जैसे डाली हो फुलो की, जैसे मोरनी हो उपवन की, सावन में मचलती है। सावन की अगुवाई में, हरी हूई पूरी धरती हैं। मौसम की जवानी, सावन में बसती है। सोमवारी का व्रत कर युवतियां, सावन मास के देव शिव से, साजन मांगा करती है। राग और नवराग लिए, झूला झूला करती है। सावन की अगुवाई में, हरी हूई पूरी धरती है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
अंतर्निहित
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अंतर्निहित

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** हमें उनसे अंतर्निहित हुआ प्रेम था। आज उच्छ्वास है। आज भी उनके जाने की वेदना उद्गित स्वर में जैसी रोती चेतना। कहां तिरोहित हो गए ? जब बढी आस्न्ताए चले गए हो कहां? दक्षता थी उनके अंदर। वो है कहां किसी में वे थी वियुक्त इसीलिए लगे उपयुक्त। नीर बहाए कंद्रन आहत जैसी निर्झरिणी बहती अविरल उनकी सुधि हम कैसे भूल जाए ? आज भी आगम की देखती हूं राहे । इतना ही ज्ञान सही  । राहे आज भी देख रही ••••••• . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु ...
महाभारत छ्ल का विज्ञान
कविता

महाभारत छ्ल का विज्ञान

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** महाभारत तो छ्ल का विज्ञान यह कैसा धर्म ज्ञान? माँ कुंती ने ली कसम इंद्र ने ले ली कवच यह कैसा इंसाफ? किसी ने ले ली पहचान, अर्जुन ने ले ली जान। यह कैसा धर्म ज्ञान महाभारत छ्ल का विज्ञान। अभिमन्यु ने ली मां के गर्भ में ज्ञान। इस खातीर बलिदान दिया, कर्ज चुकाया उसने गर्भ में ना रखा तूने, दीया गंगा की मझधार गंगा पुत्र ने पिता की खातिर, मैंने मां की खातिर बलिदान दिया। कर्ण हूँ मैं सूत पुत्र यही पहचान मिला। ना दिया था जन्म मृत्यु देना क्या उचित हुआ एक मां का कर्तव्य क्या समुचित हुआ। मैंने रुकावटों मे भी अपना पराक्रम दिखाया। तुम्हारे बेटों ने, ज्ञानी गुरुओं से, हमसे क्या ज्यादा सीख पाया। यहां तक की श्री कृष्ण कहे जाते हैं भगवान, कि किया भगवता का अभिमान। अपने पार्थ को दिया गुरु ज्ञान। गलत हो या सही, भगवान कहे वही धर्म रही हम अधर्म के सलाहकार। ना म...
रिश्तो की रस्सियां
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रिश्तो की रस्सियां

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** न जाने कितने रिश्तो की रस्सियां, मेरी तरफ है आ रही। बचपने की गिरह खोल, एक लड़की दुल्हन बनने जा रही। अरमानों की डोली सजाती सपनों में मुस्कुरा रही। सब कुछ होगा अच्छा यह दिल को समझा रही। सभी बड़े उस नन्ही सी जान को अपनी-अपनी समझ समझा रहे हैं। गीत और संगीत में भी कर्तव्य व ज्ञान गाए जा रहे हैं। उबटन लगाकर तन व ज्ञान देकर मन संवारा जा रहा है। एक लड़की दुल्हन के ढांचे में ढ़ाली जा रही है। शादी तक ये दुल्हन तैयार होनी चाहिए। एक में ही सुंदरता संस्कार प्रतिभावान यह सभी गुण विद्यमान होने चाहिए। घबराए मुस्कुराए सब को ये कैसे बताए। आधी उम्र गुजर गई आप सभी को अपनाने में, आधी उन गैरों को अपना बनाने में। पता ही नहीं चलता हमें हमारा वजूद, इस जमाने में। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कवि...
आग जो मेरे अंदर है
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आग जो मेरे अंदर है

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** आग जो मेरे अंदर है आंखों से बहती निर्झर है। आंसू ना होते तो, जल गए होते हम शायद मर गए होते हम कसक होने पर फूट-फूट के रोते हैं हम आंसू ना होते तो, घुट घुट के मर गए होते हम आंसू वो है - जो अंदर की आग बुझाते है। दिल बेचैन हो तो समझाते हैं। सीने की आग पिघलाते है। जीने का सबब बतलाते है। उलझन को छम-छम बरस सुलझाते हैं आंसू अकेले में भी साथ निभाते हैं। कभी अपने से लगते हैं आंसू तो कभी छलनी से लगते हैं आसूँ आग जो मेरे अंदर है । आंखों से बहती निर्झर है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...