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माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं
कविता

माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं

गौरव हिन्दुस्तानी बरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी देह का बढ़ता ताप जब कभी ज्वर का रूप धारण करता माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। तुम्हारी कोमल हथेलियाँ स्पर्श करती तपते माथे को तुम जान लेतीं मेरे देह के उच्च-निम्न ताप को, थर्मामीटर की आवश्यकता फिर कहाँ रहती माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। औषधियाँ भी हार जाती दहकती देह से, वैध होते जब संदेह में, तब ठण्डे पानी में डूबा तुम्हारा साड़ी का पल्लू जैसे संजीवनी बूटी हो जाता, कितना आराम पहुँचाता। कभी मेरा कुह्म्लाया चेहरा कभी मेरी देह को पोछती, तुम अपनी ममता के आँचल से, तुम्हारी आँखों से गिरतीं पानी की बूँदें, देह के उच्च ताप को निम्न कर देतीं माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। मैं डूब जाता जब कभी निराशा के भँवर में तैरता, डोलता, उदासीनता की तरंगों में, हतोत्साह से घिर जाता थक कर बैठ जाता किसी भटकते पथिक की भांत...
सूक्ष्म पुरुस्कार
कविता

सूक्ष्म पुरुस्कार

गौरव हिन्दुस्तानी बरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** युगों-युगों से अडिग खड़े हो, भयंकर आँधियों में, भीषण तूफ़ानों में, बारिशों में, विनाशकारी ओलावृष्टियों में, और तनिक भी न हिले हलाचला आने के बाद भी नहीं, प्रतिवर्ष, प्रतिदिन प्रतिपल देते रहे तुम, शीतल छाया, प्राणदायिनी वायु सभी को, और देते रहे अनुमति पक्षियों को, घोसले बनाने की अपनी विशाल शाखाओं पर बाँधें रहे मिट्टी के एक-एक कण को, अपनी जड़ों से, ऐसी श्रेष्ठतम, सर्वोत्तम, निस्वार्थ सेवा पर, हे बरगद के प्राचीन विशाल वृक्ष मैं अलंकृत करता हूँ तुम्हें पद्मश्री, पद्मविभूषण तथा भारत रत्न जैसे सूक्ष्म पुरुस्कारों से। परिचय :- गौरव हिन्दुस्तानी निवासी : बरेली उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...