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Tag: गौरव श्रीवास्तव

शिव स्त्रोत
स्तुति

शिव स्त्रोत

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** ठंडी ये पवन कहें, ये बारिशों की छन कहें, नमो नमः भी बोल दो ये दिल कहें या मन कहें।। हरा भरा गगन हुआ, चली पवन सुखन हुआ। अवलोक दृश्य का किया प्रसन्नचित्त मन हुआ।। जिनके शीश गंग है, लिपटा गले भुजंग है। भस्म से सजा हुआ ही जिनका अंग-अंग है। नैना बने विशाल हैं, मस्तक पे चन्द्र भाल है। मन्त्र मुग्ध कर रहा, शिव रूप ही कमाल है।। त्रिनेत्र धारणी शिवा, हैं मोक्ष दायनी शिवा। विष का पान करनें वालें शोध दायनी शिवा।। एक हस्त डमरु साजे, दूसरे त्रिशूल हैं। त्रिनेत्र धारणी शिवा हरते सबके शूल है।। वो राक्षसों को मारते, वो संकटों को तारते। अधर्मियों को धर्म के त्रिशूल से जो मारते।। चरित्र भी विचित्र है, शिव रूप ही पवित्र हैं। शिव रूप की ये सौम्यता, हृदय में एक चित्र है।। शिव देखते जहां कहीं, ये जग चले वही वहीं। वो ...
छोटी काशी (गोला)
कविता

छोटी काशी (गोला)

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन उत्सुक था घोर चपलता, सम्भव नहीं इसे समझाना, महादेव का था ये बुलावा, अब तो हमको था ही जाना। दुःख के काले बादल उड़ गए, मिट गयी मन की घोर उदासी, काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। देख दृश्य छोटी काशी का, मैल मिट गया सारा जी का। मन व्याकुल था आंखें तरसी, दर्शन मिलें तों आंखें बरषी। इससे जुड़ी है राम कहानी, जो चौदह वर्ष हुए वनवासी।। काशी-काशी, काशी काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। दूर-दूर से आते हैं जन महादेव के दर्शन पाने। कई संन्यासी दिखें यहां जो खुद को हर के रंग में ढालें। कुछ तो देखें घोर तपस्वी, कुछ तो मिलें यहां संन्यासी काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
मां की ममता
कविता

मां की ममता

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मां की ममता धरा पर अमर हो गई, बात वर्षों पुरानी बहुत हो गई, मां के आंचल में मुझको पता न चला, दिन ये कब ढल गया रात कब खो गई। युग से चलती चली आ रही ये पृथा, मां ही हरती है बेटे की हर दुख व्यथा, त्रेता युग की कहानी सुनाता हूं मैं, राम के प्रेम की है ये सारी कथा। राम के जन्म से लोग हर्षित हुए, राम के चरणों में सब समर्पित हुए, माई कौशल्या मन में करें कल्पना, प्रभु श्री राम के पाद अर्पित हुए। दिन ये ढलने लगे राम हो गए बड़े, मझली मां के सदन भाग होते खड़े, देखकर स्वप्न में मातु कैकेई को, जाना है रात में अपनी जिद पर अड़े। कुहुकनी ले तेरा ये कुहुक है जगा, देख कर स्वप्न तेरा भवन से जगा, राम को छोड़ कर बहन के द्वार पर, राम के प्रेम में मां भिगोती धरा। बात द्वापर की जब याद आती मुझे, मां यशोदा की ममता लुभाती मुझे...
देश बदल भी सकता है
कविता

देश बदल भी सकता है

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** सीमा पर तैनात खङे हैं, वीर सपूत जो भारत के। मृत्यु से वे भय न करते लिए तिरंगा हाथों में। तन मन धन से समर्पित है वे, भारत माँ के चरणों में। हर मानव हो सजग अगर, परिवेश बदल भी सकता है। वीरों की करें पूजा, तो देश बदल भी सकता है।। राजनीति की उपमा को, देश प्रेम से मत जोङो। वीरों के बलिदानों का सबूत मांगना अब छोङो। बलिदानो के कितने उदाहरण, ढूँढ ढूँढ कर लाऊं मैं। मर गया हो जिसकी आँख का पानी, उसे पुलवामा का दृश्य दिखाऊँ मैं। सीमा पर तैनात खङे, वीरों का जो सबूत मांगे। कानून अगर होता कर में, उनको फांसी दिलवाऊ मैं। आने वाली पीढी का वेश बदल भी सकता है। वीरों की करें पूजा, तो देश बदल भी सकता है।। इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर, वीरों का नाम लिखा जाए। हर मनुष्य के अधरों पर स्वदेश प्रेम ही छा जाए। गौरव चाहेगा धरती...
हम भूल रहें संस्कृतियां
कविता

हम भूल रहें संस्कृतियां

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** हिमगिरी भी मौन वेश में था, पक्षी का कलरव व्याकुल था। वीरान पङी थी वे राहें, जिससे गुजरा सेना दल था। कुछ भी न बचा है मन में, है बची शेष स्मृतियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। रो रही माओं की आँखे, जो पुत्र की राहें तकती। ना रहा पुत्र अब उनका, बहना भी मन में व्यथित थी। क्यों नहीं समाप्त है होती, इस देश में है जो त्रुटियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। पुलवामा हमला हुआ जब, वीरों ने प्राण गँवाए। ठुकराके शहादत उनकी, वैलेंटाइन डे सभी मनाए। पुलवामा के दृश्य याद कर, गौरव ने लिखी कुछ कृतियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
धरती की पुकार
कविता

धरती की पुकार

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन मे कुछ उमंगे सी जग उठीं हैं, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है। प्रतिदिन पर्यावरण बिगङ रहा है, वृक्ष काटे जा रहे हैं, रो रही धरा है। इस धरा पर कोई तो महा रथी है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। इस धरा पर पाप इतना बढ़ रहा, हर व्यक्ति पाप की सीढ़ी चढ़ रहा। पाप करके लोग यहाँ साधु कहलाते, साधुओं के वेश में अधर्मी पूजे जाते ये धरा पवित्रता की भूमि सी है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। नारी सम्मान क्षीण हो रहा, अधर्मी व्यक्ति उत्तीर्ण हो रहा। धर्म का प्रचार कोई न करें, धरा पर धर्म संकीर्ण हो रहा। सहनशीलता की ये तो मूर्ति है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। सहनशीलता का ये प्रमाण हैं, ये धरा सुधा के ही समान है। धरती माँ का कष्ट क्या है देखलो, गौरव के काव्य में ये विघमान है। जन्म होता है धरा पर,धरती माँ ही ...