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Tag: गीता कौशिक “रतन”

गोलगप्पे
कहानी

गोलगप्पे

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ********************                                  ग्यारह वर्षीय शैली अपनी सभी सहेलियों में क़द-काठी में सबसे लम्बी थी। खेलकूद प्रतियोगिताओं और पढ़ाई में सबसे होशियार परन्तु साथ ही सबसे अधिक शरारती भी। चित्रकारी और शायरी का इतना शौक़ कि गणित की कक्षा में भी बैठी हुई कापी के पिछले पन्नों पर टीचर की तस्वीर बनाकर उसके नीचे शायराना अंदाज में कुछ भी दो पंक्तियाँ और लिख देती। कक्षा के सभी छात्र शैली के द्वारा की गई चित्रकारी और शेरो-शायरी की ख़ूब सराहना करते और इसी के साथ उसकी कापी वाहवाही बटोरतीं पूरी कक्षा में घूमतीं रहती। टीचर जब कक्षा के सभी बच्चों की कापी चैक करने के लिए माँगती तो शैली भी बड़ी होशियारी से सबकी कापियों के नीचे सरका कर अपनी कापी भी रख देती। घंटी बजते ही चुपके से उसे वापस भी निकाल लेती। एक दिन की बात है कि कक्षा में टीचर ब्...
मास्टर जी की धोती
लघुकथा

मास्टर जी की धोती

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ******************** माँ रोज़ सुबह सवेरे ही रतन को नहला-धुला कर तैयार करके बिठा देती। एक स्टील की डिबिया में चूरमा भरकर ओर साथ में घी में डूबी दो रोटी भी बाँधकर बस्ते में रख देती। साथ ही रतन के गले में बस्ता लटका कर स्कूल के लिए चलता कर देतीं। बार-त्योहार के अलावा कभी-कभार माँ जब ज़्यादा प्यार दिखातीं तो छींकें पर लटके कटोरीदान में से इक्कनी निकाल कर रतन के हाथ में रख देती। कहती “ बेटा, भूखा मत रहना, बाग से अमरूद लेकर खा लेना”। गाँव से ही, रतन के दो और साथी उसी की कक्षा में पढ़ते थे। तीनों मिलकर स्कूल भी साथ आया-ज़ाया करते। राह में धूलियाँ उड़ाते दो कोस का स्कूल का रास्ता झट से पार हो जाता। कभी-कभी रास्ते में ये तीनों साथी ज़ोर ज़ोर से पहाड़े गा-गाकर याद करते जाते। इस बार छुट्टियों में मॉं के साथ जब रतन नाना-नानी के घर गया, तो नानाजी ने अ...